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Thursday, December 09, 2021

तिल का महत्व

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सर्दियों में शरीर को गर्म रखने के लिए हम कई चीजों का सेवन करते हैं ऐसे में तिल और गुड़ का सेवन करना सेहतमंद साबित होता है। ठंड के मौसम में तिल और गुड़ के बने लड्डू, तिल-गुड़ की चिक्की, गजक, रेवड़ी आदि अनेक तरह की डिश मार्केट में मिल जाती हैं।सर्दी में मिलने वाली इन चीजों के नाम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होते हैं। लेकिन इनका स्वाद दिल छू लेने वाला होता है।तिल और गुड़ के लड्डू भी बनाए जा सकते हैं। जिनका सेवन कर आप अनेक बीमारियों से निजात पा सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, सर्दियों में हमारे शरीर में वात का प्रभाव काफी तेजी से बढ़ जाता है। इसके कारण जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में जकड़न होती है. इस समय आप तिल और गुड़ का सेवन करते हैं, तो यह बीमारियां कंट्रोल में रहती हैं. तिल तीन प्रकार के होते हैं–काले, सफेद और लाल. यदि आप तिल और गुड़ से बने लड्डू का सेवन करेंगे तो यह आपके शरीर में आयरन की भी आपूर्ति करेगा।
तिल में कई प्रकार के प्रोटीन, कैल्शियम, बी कंपलेक्स, पोटैशियम आदि अनेक पोषक तत्त्व पाए जाते है। तिल का सेवन करने से तनाव दूर रहता और मानसिक दुर्बलता कम होती है।और गुड़ में ढेर सारा आयरन, विटामिन और मिनरल्स पाया जाता है, इन दोनों का एक साथ सेवन करने से कई बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती हैं।
तिल और गुड़ के सेवन का फायदे–
1. डायबिटीज के मरीजों के लिए तिल और गुड़ का एक साथ सेवन करना फायदेमंद होता है। यह शुगर की मात्रा को कंट्रोल में रखता है।शुगर के मरीज तिल और गुड़ का सीमित मात्रा में सेवन कर सकते हैं।
2. तिल और गुड़ का सेवन एक साथ करने से कोलेस्ट्रॉल को कम किया जा सकता है।इसका इस्तेमाल काफी हद तक वजन कम करने में भी किया जाता हैं।
3. गुड में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ऐसे में तिल के साथ इसका सेवन करने से शरीर में खून की कमी को पूरा करता है।
4. इसमें विटामिन बी और विटामिन ई पाया जाता है, जो त्वचा को जवां और चमकदार बनाता है।
5. सर्दी–जुकाम और असाइनीस की समस्या को दूर करने के लिए तिल और गुड़ के लड्डू का सेवन बेहद फायदेमंद होता है।
6. तिल में मौजूद कैल्शियम हड्डी को मजबूत बनाता है।और सिरदर्द भगाता है।
7. तिल में प्रोटीन, कैल्शियम और बी कांपलेक्स बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।प्रतिदिन 50 ग्राम तिल खाने से कैल्शियम की आवश्यकता पूरी होती है। तिल के सेवन से मानसिक दुर्बलता और तनाव दूर होता हैं। 8. तिल का नियमित सेवन करने से ब्लड प्रेशर कम होता है। यह शरीर में सोडियम की मात्रा को भी कम करने में मदद करता हैं।
9. गठिया रोगियों के लिए तिल और गुड़ से बने लड्डू का सेवन करना लाभकारी होता है।तिल खाने से पैरों की सूजन आदि कम होती हैं।
10. तिल और गुड़ की तासीर गर्म होती है ठंड के मौसम में इसका सेवन शरीर को अंदर से गर्म रखता है और सर्दी–जुकाम और कड़ाके की ठंड से बचाव करता हैं।

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Wednesday, December 08, 2021

अमरूद की बागवानी एवं उन्नत खेती

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समी प्रकार की भूमि पर पैदा होने वाला कठोर प्रवृत्ति का वृक्ष अमरूदविटामिन सी एवं अन्य पोषक तत्वों से भरपूर है।
प्रमुख किस्में :इलाहावादी राफेदा, लखनऊ 49, श्वेता, ललित, एपलकलर (सुखा), रेड फ्लेस्ड ।
जलवायु एवं भूमि :गर्म एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त । पाला वाले क्षेत्रअनुपयुक्त । उपजाऊ गहरी बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी. एच. मान650 के बीच हो तथा जल निकास अच्छा हो सर्वोत्तम होती है।
सामान्यत:हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है।
खाद एवं उर्वरक :खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग निम्नलिखित दर से उम्रके अनुसार प्रति वृक्ष प्रति वर्ष करना चाहिए–
आयु (वर्ष) गोबर की खाद (किग्रा) नाईट्रोजन (ग्राम) फॉस्फोरस (ग्राम) पोटाश (ग्राम)
1 10 60 30 60
2 20 120 60 120
3 30 180 90 180
4. 40 240 120 240
5 50 300 150 300
6 या अधिक 60 360 180 360

गोबर की खाद जुलाई में, फॉस्फेरस व पोटाश की पूरी मात्रा फरवरी में तथानाईट्रोजन की आधी मात्रा फरवरी तथा आधी अक्टूबर में देना चाहिए।
रोपण सामग्री का स्त्रोत : किसी विश्वसनीय पंजीकृत पौधशाला से स्वस्थएवं उपयुक्त कलमी पौधे जो भेंटकलम्, पैचबडिंग, स्टूलिंग अथवा क्लेफ्टचश्माविधि से तैयार किये गये हों, लेकर रोपण करना चाहिए । रोपण का
उपयुक्त समय जुलाई - अगस्त है सिंचाई सुविधा होने पर फरवरी – मार्चमें भी रोपण किया जा सकता है | रोपण से एक माह पूर्व 6x6 मीटर कीदूरी पर 60x60x60 सेमी. आकार के गडढ़े खोदकर उसमें 20 - 25 किग्रासड़ी गोबर की खाद गड्ढ़े के ऊपरी सतह की मिट्टी मे 200 ग्राम नीम कीखली तथा 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान धूल प्रति गडढ़े के हिसाब से भरकरगडढ़ा तैयार कर लेते हैं तथा वर्षा होने पर इसी में पौध रोपण करते हैं । वर्षारोपण होते समय रोपण न करें।
सिंचाई निराई-गुडाई :पौधे लगाने के वर्ष में शरद ऋतु में 15 - 20 दिन तथामेंगर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई थाला बनाकर करना चाहिए । अमरूद के तने केपास काफी संख्या में सकर्स निकलते हैं | इनको निराई-गुडाई कर निकालतेरहना चाहिए।
कटाई - छंटाई :पौधे को साधने तथा उचित ढाँचा बनवाने के लिए मई-जूनमाह में कटाई - छंटाई संस्तुति के अनुसार करनी चाहिए । अमरूद में फसलफलन नियन्त्रण हेतु आवश्यक शस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिए ।
रोग एवं कीट नियन्त्रण :
प्रमुख रोग :फ्रूटराट, एन्थोकनोज, स्कैब, तना एवं फल कैंकर, उकठा व्याधि ।
रोक थाम :मैंकोजेब (2.5 ग्राम/लीटर पानी) कापर आक्सीक्लोराईड (3 ग्राम/लीटर पानी) का छिडकाव करें । उकठा रोग के रोकथाम हेतु 8 पी. एच. मानसे अधिक वालीमृदामें अमरूद का बाग न लगायें | 20 30 ग्राम कार्बेन्डाजिम10 - 15 लीटर पानी में घोलकर जड़ों में मार्च, जून, सितम्बर व दिसम्बर में डालें।गोबर की खाद में ट्राईकोडर्मी एवं एसपरजिलस कल्चर मिलाकर डालें ।
प्रमुख कीट : फल मक्खी, छाल खाने वाली झल्ली, फल वेधक, मिलीबग ।
रोकथाम :प्रभावित फलों को एकत्र कर नष्ट कर दें । फल मक्खी हेतु अगस्तसितम्बर में वाग की जुताई कर चौढ़े मुँह के वर्तन में 1 मिली. मिथाइल यूजीनाल+ 2 मिली. मैलाथियान प्रति लीटर पानी मे मिलाकर घोल फल आने कीअवस्था में जगह-जगह बागों में लटका दें । कीटों के रोकथाम हेतु पतला तारडालकर छाल में बनी सुरंग को साफ कर मिट्टी का तेल या डाईक्लोरोवास सेभीगा रूई का फाहा सुरंगों में डालकर चिकनी मिट्टी से सुरंगो का बन्द करदें । फल बेधक कीट के रोकथाम हेतु डाईक्लोरोवास 1.4 मिली. /ली. पानी याफास्फेमिडान 0.7 मिली./ली. पानी की दर से घोल बनाकर मार्च-अप्रैल तथादूसरा छिड़काव जून-जुलाई में करें । मिलीवग हेतु अक्टूबर-दिसम्बर में बाग कीजुताई कर मिथाइल पैराथियान धूल 150-200 ग्राम प्रति वृक्ष पेड़ के चारों तरफछिड़काव करें । इसके अलावा क्रिप्टोलाइम्स स्पेसीज के प्रीडेटर 10-12 बीटिलप्रति पेड़ छोड़ने से 30-45 दिन में रोकथाम हो जाती है ।
फल तुडाई एवं उत्पादन :उत्तरी भारत में अमरूद की दो फसलें होती है।एकवर्षाऋतु में एवं दूसरी शीत ऋतु में शीतकालीन फसल के फलों कीगुणवत्ता अधिक होती है । फूल लगने के लगभग 4 से 5 माह बाद फल पककर तोडने के लिए तैयार होते हैं। तीसरे साल में लगभग 8 टन प्रति हेक्टे०उत्पादन मिलता है, जो सातवें वर्ष में 25 टन प्रति हेक्टे0 तक हो जाता है।

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Sunday, December 05, 2021

फसल अवशेषों को उपयोग करने के तरीके

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फसल अवशेषों का प्रबन्ध कर जमीन में जीवांश पदार्थकी मात्रा में वृद्धि कर जमीन की उर्वरता बनाये रखें।.
• कृषक भाई आधुनिक कृषि यन्त्रों जैसे सुपर स्ट्रामैनेजमेन्ट सिस्टम्, स्क्वायर बेलर/रैक्टंगुलर बेलर, पैडीस्ट्राचापर/मल्चर, श्रब मास्टर/कटर-कम स्प्रेडरहाईड्रोलिक रिवर्सिबलर एम.बी.प्लाऊ, रोटरी स्लैशरआदि का प्रयोग करें।
• वर्तमान में इस कार्य के लिये रोटरी स्लैशर, मल्चरआदि से खेत को तैयार करते समय एक बार में हीफसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट करमिट्टी में मिलाना काफी आसान हो गया है।
• धान के बाद अवशेष ठूढ वाले खेत में नमी होने कीस्थिति में सीधे जीरो टिल सीड ड्रिल, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर मशीन से बुवाई कर सकते हैं। धान केतूद कुछ दिन बाद भूमि में सड़कर खाद बन जाते है |
• वेस्ट डीकम्पोजर साल्यूशनः फसल की कटाई के बादखेत में बचे डंठल व अन्य अवशेषों पर छिड़कावकरने से फसल अवशेष की स्वस्थानिक कम्पोस्टिंगहो जाती है।
• फसल अवशेषों से कम्पोस्ट तैयार कर खेत में प्रयोगकरें। उन क्षेत्रों में जहां चारे की कमी नहीं होती वहांमक्का की कड़वी व धान की पुआल को खेत मे ढेरबनाकर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कम्पोस्टबनाकर उपयोग करना आवश्यक है।
• जब किसान भाई खरीफ, रबी, जायद की फसलों कीकटाई मड़ाई करते हैं तो जड़, तना, पत्तियां के रुपोंमें पादप अवशेष भूमि के अन्दर एवं भूमि में ऊपरउपलब्ध होते हैं। इनको लगभग 20 किग्रा यूरिया प्रतिएकड़ की दर से मिट्टी पलटने वाले हल सेजुताई/पलेवा के समय मिला देने से पादप अवशेषलगभग बीस से तीस दिन के भीतर जमीन में सड़जाते हैं, जिससे मृदा में कार्बनिक पदार्थों एवं अन्यतत्वों की बढ़ोत्तरी होती है जिसके फलस्वरुप फसलोंके उत्पादन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
• अत: प्रदेश के कृषकों से अनुरोध है कि किसी भी फसलके अवशेष को जलायें नहीं बल्कि मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि हेतु पादप अवशेषों को मृदा मेंमिलायें/सड़ाये।
फसल अवशेष न जलायें, बल्कि इनसे लाभउठायें
• फसलों की कम्बाइन आदि यन्त्रों से कटाई के उपरान्त बचेफसल अवशेष अत्यंत उपयोगी हैं।
• इनमें महत्वपूर्ण कार्बनिक पदार्थ तथा पोषक तत्व होते हैं।
• इनसे पोषक कार्बनिक खाद तैयार की जा सकती है।
• फसल अवशेषो से बायोकोल, बायो सी0एन0जी0 तथाबायो एथेनाल का व्यवसायिक उत्पादन किया जा सकताहै।
फसल अवशेष के लाभ
• फसल अवशेषों से कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट खादबनाकर प्रयोग करने से खेत की उर्वरता में वृद्धि होती है ।
• भूमि में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है।
• खेत की मृदा की भौतिक एवं रासायनिक संरचना सुधरतीहै।
• भूमि में जल धारण एवं वायुसंचार क्षमता बढ़ती है।
• फसल अवशेषों की मल्चिंग करने से खरपतवार कम होतेहै तथा जल का वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
फसल अवशेष जलाने से हानि
• फसलो के अवशेषों को जलाने से उनके जड़, तना,पत्तियों के लाभदायक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
• फसल अवशेषों को जलाने से मृदा ताप में वृद्धि होती हैजिसके कारण मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविकदशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
• पादप अवशेषों में लाभदायक मित्र कीट जलकर मर जातेमेंहै, जिसके कारण वातावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
• पशुओं के चारे की व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ताहै।
• फसल अवशेषों को जलाने से किसानों की नजदीकीफसलों में और आबादी में आग लगने की संभावना बनीरहती है।
• वायु प्रदूषण से अनेक बीमारियां तथा धुंध के कारणदुर्घटनाए हो सकती हैं।

फसल अवशेष जलाना दण्डनीय अपराधघोषित
• कृषि भूमि का क्षेत्र 02 एकड़ से कम होने की दशा मेंअर्थ दण्ड रु. 2500/- प्रति घटना।
• कृषि भूमि का क्षेत्र 02 एकड़ से अधिक किन्तु 05 एकड़तक होने की दशा में अर्थदण्ड रु. 5000/- प्रति घटना।
• कृषि भूमि का क्षेत्र 05 एकड़ से अधिक होने की दशा मेंअर्थदण्ड रु. 15000/- प्रति घटना।
• कम्बाइन हार्वेस्टिग मशीन का SMS (सुपर स्ट्रा मैनेजमेंटसिस्टम), मल्चर, जीरो टिल सीड ड्रिल, सुपर सीडर,हैप्पी सीडर, रीपर के बिना प्रयोग प्रतिबन्धित कर दियागया है।
• कृषि अपशिष्ट के जलाये जाने की पुनरावृत्ति होने कीदशा में (लगातार दो घटनायें होने की दशा में) सम्बन्धितकृषकों को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओंतथा सब्सिडी आदि से वंचित किये जाने की कार्यवाही केनिर्देश राष्ट्रीय हरित अधिकरण नई दिल्ली द्वारा दिये गये हैं। sabhar krishi vibhag up

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Friday, December 03, 2021

गेंदा की खेती

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गेंदा महत्वपूर्ण व लोकप्रिय व्यवसायिक पुष्प है। यह विभिन्न भौगोलिकजलवायु में छाया दार स्थानों पर एवं गृहवाटिका में भी आसानी से साल भर उगाया जासकता है। गेंदा पर कीट व रोगों का प्रकोप भी बहुत कम होता है।
जलवायु-साल भर-तीनों मौसम में खेती सम्भव । अनुकूल तापक्रम 20-38 सेन्टी।
उपयुक्त भूमि-अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान7-7 हो । रोपाई से पहले जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाये।
प्रमुख प्रजातियाँ (मुख्यताः दो)
अफ्रीकन गेंदा (हजारिया) फ्रेंच गेंदा या गेंदी
पौधे ऊंचे, गुथे हुए फुल बौने व छोटे फूल
पूसा बसती. पूसा नारगी. कसन ऑफगोल्ड, येलो सुपीम, डबल आफ्रीकनडबल पीला, कैकर जैक गोल्डन ऐज रस्टीडी.बटर स्कॉच, बटन बॉल,फॉयर ग्लो. रेड बोकार्ड, स्टार ऑफइण्डिया आदि।

बुआई का समय
बीज बोने का समय पौधे लगाने का समय पुष्पन का समय
मध्य जून 15 जुलाई बरसात के अलगे
मध्य सितम्बर 15 अक्टूबर ठण्ड में
जनवरी-फरवरी फरवरी-मार्च गर्मी में

बीज की मात्रा-एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेंद की फसल के लिये 1.5 किग्रा. बीजपर्याप्त होता है। बहुत पुरानाबीज नहीं लेना चाहिए, क्योंकि उनकी अंकुरण घट जाती है।
भूमि की तैयारी-
• बीज बोने से पहले जमीन को 2 प्रतिशत फार्मलीन से उपचारित करें।
• उपचार के बाद जमीन को दो दिन तक पॉलीथीन या प्लास्टिक के बोरे से ढक कररखें।
• अब हमीन को सूखा कर 15 सेमी ऊँची, एक मी. चौड़ी एवं 5-6 मी लम्बी क्यारियाँबनायें।
• दो क्यारियों के मध्य 30 सेमी. का अन्तररखें ताकि पानी देने एवं निराई-गुडाई केकार्य में आसानी रहे।
• नर्सरी / क्यारियों की गुडाई कर 10 किग्रा सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिलायें।

रोपाई, नर्सरी एवं पौध की तैयारी-
• 250-300 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से खाद भूमि में जुताई कर मिला देनीचाहिए।
• अधिक उत्पादन एवं वृद्धि के लिये नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा 12080:80 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
• फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा की तैयारी करते समय अच्छी तरह मिला देनीचाहिए।
• नाइट्रोजन का दो भागें में बांटक भाग क्यारियों में पौध लागाने के लिए एक माहबाद एवं दूसरा भाग दो माह बाद देना चाहिए।
पौधारोपण समय एवं दूरी-
पर्सरी में बीज बोने के 30-35 दिनों में 3-4 पत्तियों वाले पौधे तैयार हो जाते हैं
आफ्रीकन गेंदे हेतु फ्रेंच गेंदे हेत30 सेमी.
कतार से कतार की 45 सेमी 30 सेमी
पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी 30 सेमी
रोपण का कार्य शाम के समय होना चाहिए। नर्सरी में पौध उखाड़ते समय हल्कीसिंचाई करें ताकि उखाड़ते समय पौधे की जड़ों में क्षति ने पहुँचें। रोपाई के बाद भीहल्की सिंचाई आवश्यक है।
सिंचाई-यह अपेक्षाकृत कम पानी की फसल है। सामान्यतः 10-15 दिनों के अन्दर परहल्की सिंचाई करनी चाहिए।
निराई गुड़ाई-आरम्भिक अवस्था में इसका विशेष महत्व है।
पहली गुडाई-रोपण के 20-25 दिन बाद ।
दूसरी गुड़ाई-रोपण के 40-45 दिन बाद। जब भी आवश्यक हो खर-पतवारनियंत्रण आवश्यक करें।
पिचिंग-यह क्रिया पौधे को छोडे, झाड़ीनुमा तथा अधिक शाखाओं वाला बनाने के लिएकी जाती है, जिससे अधिक मात्रा में फूल प्राप्त हो सकें। पौधे को रोपने के बाद जब फूलकी पहली कली दिखाई दे तो उस समय शाखाओं के ऊपरी भाग को तोड़ देते हैं,जिससे नये पौधे पर कई शाखायें निकल आती हैं।
तुड़ाई-2-3 महीने बाद फूल खिलना प्रारम्भ हो जाते हैं। इन्हें तेज चाकू यासिकेटियर से तिरछा काटें। सूखे फूलों को अलग कर दें। तो उस समय में तोड़कर गनीबैग, प्लास्टिक क्रेट या बांस की टोकरियों में पैकिंग कर बाजार भेंजे। टूटे हुये फूलों काछयादार स्थान पर रखकर आवश्यकतानुसार हल्का गीला करते रहें।
पैकेजिंग -आकर्षक पैकेजिंग अच्छा मूल्य दिलाने, क्रय हेतु प्रेरित करने एवं गुणवत्ताव भण्डारण बनाये रखने में सहायक है। कोरोगेटेड पैकेजिंग विशेष उपयोगी है।
उपज-अधिकतम 350 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक । लागत 5-6 गुने से भी अधिक कीप्राप्ति सम्भव।
वीज प्राप्ति-पकने पर सुखाकर उनकी बाहर की एक-दो परत का बीज रखें, शेषफेंक देना चाहिए। ऐसा करने पर पूर्ण खिले हुये पुष्प प्राप्त होते हैं।
प्रमुख रोग एवं कीटों से बचाव
रोग का नाम रोकथाम एवं उपचार
• आई पतन उचपदह वृद्धि नर्सरीअवस्था में बीजों का कम जमाव व पौधोंका टूट कर गिरना। अधिकतम नम व गर्मभूमि पर तेजी से फैलता है। • बीज व भूमि शोधन करें। जल निकासकी समुचित व्यवस्था करे। प्रमाणितपौधों पर मैकोजेब या ताम्रयुक्तरसायन का आवश्यकतानसारछिडकाव करें।
• खर्रा रोग चूकमतल उपसकमूद्धसफेद चूर्ण नुमा फफूदी का जमाव होता है,बढाकर रूक जाती हैएवं पौधासूख जाता है | • संस्तुत कतकनाशी रसायनको पानी मेंघोलकर 15 दिन के अन्तराल परछिड़काव करें। सल्फर पाउडर काभुरकाव करें।
• विषाणु रोग पत्तियाँ चितकबरी होकरमुड हाती है। पुष्प कम एवं छोटे रह जातेहै | • रोगी पौधों को नष्ट कर दें।कीटनाशक रसायनों का छिड़कावकरें।
• मृदु गलन रोग प्रभावित भाग सड़करचिपचिपा एवं गंधयुक्त हो जाता है। • बीजोपचार कर बीज सुखाकर बोये ।खड़ी फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 100पी.पी.एम. (1 ग्राम. दवा 100 ली पानीमें) का छिड़काव करें।

कीट का नाम रोकथाम एवं उपचार
• कलिकाभेदक ठनह ठवतमतद्ध (हैलियेथिस आर्मीजेरा) इस कीट कीअल्लियाँ पंखुड़ियों को खा जाती हैं। • ग्रसित भाग को नष्ट करें। प्रकोप होने परएन.पी.वी. प्रयोग करें। इण्डोसल्फान याक्यूनलफास 0.07 प्रतिशत का छिड़कावआवश्यकतानुसार करें।
• पूर्ण फुदका (एमरास्का विगुदुला)इनके द्वारा पत्तियों का रस चूसने सेवे सिकुड़कर पीली होकर गिर जाती | • प्रकाश प्रपंच ,स्पहीज ज्तंचद्ध एवंकीटनाशक युक्त चिपकाने वाले ट्रैप लगाये |
• थ्रिप्स पत्तियों का रस यूसकर उन्हें • पूर्ण फुदका की भाँति।
• रेड स्पाइडर माइट फूलों के खिलनेके समय आक्रमण करते हैं। • डाई मिथोएट या मोनो कोटोफास दवा की1 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकरआवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
• हेरी कैटरपिलर पत्तियों को खाता है। • इन्डोसल्फान 1 मिली. मात्रा प्रतिलीटरपानी में आवश्यकतानुसार छिड़कावकरें।
• लीफ स्पॉट एण्ड ब्लाइट पत्तियों परगोल भरे धब्बे बाद में पूरे पौधे को क्षति पहुंचाती है। • मैकोजेब दवा की25 ग्राम मात्रा प्रतिलीटरपानी में घोलकर आवश्यकतानुसार केअनुसार छिड़काव करें। आभार कृषि विभाग उत्तर प्रदेश
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Monday, November 15, 2021

pusha samachar

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https://youtu.be/szQ3KdKAnPg

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Thursday, October 21, 2021

राजमा (फ्रेंच बीन) के विभिन्न रूप

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प्रमुख उन्नत किस्में -
पीडीआर 14 - इस किस्म को उदय के नाम से भी जाना जाता है. जिसके दानों का रंग लाल चित्तीदार होता है. यह 125 से 130 दिन में पक जाती है और इससे प्रति हेक्टेयर 30 -35 क्विंटल राजमा पैदा होता है.

मालवीय 137- 110 से 115 में पकने वाली इस किस्म के दानों का रंग लाल होता है. इससे प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल की पैदावार होती है.

वीएल 63 - यह किस्म 115 से 120 दिनों में पक जाती है. इसके दानों का रंग भूरा चित्तीदार होता है. इससे भी प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल होती है.

अम्बर - राजमा की यह किस्म 120 से 125 दिनों में पक जाती है. इसके दानों का रंग लाल चित्तीदार होता है. इससे प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल होती है.

उत्कर्ष- इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल की पैदावार होती है. दानों का रंग गहरा चित्तीदार होता है. यह किस्म 130 से 135 दिनों में पक जाती है.

अरुण - इसके दानों का रंग भी गहरा चित्तीदार होता है. यह किस्म 120 से 125 दिनों में पक जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 15 से 18 क्विंटल की पैदावार होती है. Sahar Facebook 

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Wednesday, October 20, 2021

बैंगन के कीड़ों और रोगों का प्रकोप

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  इन  से बैंगन की फसल को बहुत नुकसान होता है। पौधों की सही देखभाल कर हम अपने पौधों को 
इनसे बचा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कुछ प्रमुख रोगों और कीटों के बारे में।
बैंगन के पौधों में लगने वाले कीट

तना एवं फल बेधक : यह कीट पत्तों के साथ बैंगन को भी अंदर से खाते हैं। इससे फसल को बहुत नुकसान होता है। स्किट कपड़ा फ्रॉड पतंगा सफेद रंग का होता है इसके पंखों पर गुलाबी भूरे रंग के निशान होते हैं इसकी सुड़ियां गुलाबी रंग की होती है यह पौधे के कलगी और फलों को छेद डालती है पौधों की कलियां मुरझा कर गिर जाती हैं ग्रसित फलों में सुरंग बनाकर उनको खाती हैं ग्रसित फलों के क्षेत्रों में कीट का मल भरा रहता है जिससे इनकी कीमत घट जाती
बैगन का तना छेदक इस कीट का पतंगा का मक्खन की तरह सफेद होता है सोनिया पौधों को तनु को छेद टी हैं तथा अंदर ही अंदर खाकर हानि पहुंचाती हैं प्रभावित पौधा मुरझा को सूखने लगता है
लाल मकड़ी : लाल मकड़ी पत्तों के नीचे जाल फैलाती है और पत्तों का रस चूसती है। इसके कारण पत्ते लाल रंग के दिखने लगते हैं।

जैसिड : यह कीट भी पत्तों के नीचे लग कर उसका रस चूसते हैं। इससे पत्तियां पीली और पौधे कमजोर हो जाते हैं।

जड़ निमेटोड : इससे पौधों की जड़ों में गांठ बन जाता है। पत्तों का पीला होना और उनका विकास रुक जाना इसका प्रमुख लक्षण है।

एपीलैक्ना बीटल : यह पत्तों को खाने वाला लाल रंग का छोटा कीड़ा होता है। यह बैगन आलू टमाटर दाल लौकी जारी की सब्जियों को क्षति पहुंचाता है इसका प्रवर्तित लगभग गोलाई लिए हुए तथा पीठ उभरा हुआ होता है ऊपरी  पंख पर काले धब्बे होते हैं फिर सिर धड़ में धसा होता है  किसकी गिराड़े शिशु पीले रंग की नाव के आकार की तथा कांटेदार होती है  paud तथा शिशु दोनों पत्तियों के हरे भाग को खाती है तो केवल शिराएं शेष रह जाती हैं माता द्वारा पक्षियों की निकली सदाबहार के आकार के पीले अंडे 1330 के झूठे में दिए जाते हैं  peupa पत्तियों में अथवा तने के समीप भाग में बनता है

बैंगन के पौधों में होने वाले रोग

बिचड़ा गलन (डैम्पिंग ऑफ़) : इस रोग के कारण बीज प्रस्फुटित हो कर मर जाते हैं। इसके अलावा इस रोग से बिचड़ा भी बड़ा हो कर मर जाता है।

छोटे पत्तों का रोग : इस रोग के कारण पत्ते छोटे हो जाते हैं और पौधों में फसल नहीं लगती है।

जीवाणु उखड़ा : इस रोग में पौधों के विकास रुक जाता है। पत्ते पीले होने के बाद पौधे सूख जाते हैं।

मोजैक : यह रोग एक प्रकार के जीवाणु के कारण होता है। इस रोग में पत्तों पर मोजैक जैसा दिखने लगता है।

फोमोप्सिस अंगमारी : इस रोग में पत्तों के साथ जमीन से सटे बैंगन पर धब्बे बनने लगते हैं। इसके साथ ही पत्ते पीले हो कर झड़ने भी लगते हैं।

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