Sakshatkar.com : Sakshatkartv.com

.

Wednesday, June 28, 2023

घनाजीवामृत के प्रयोग

0

आज की जीवन शैली में रसायनिक खादों एवं कीटनाशकों के अधिक उपयोग से भूमि बंजर हो रही है जिससे मृदा का जीवांश कार्बन निम्न स्तर पर जा रहा है। इसलिए आज के समय में जरूरी हो गया है। कि हम घनजीवामृत का उपयोग कर फिर से | अपनी मिट्टी की सेहत सुधारें और प्राकृतिक | खेती के प्रयोग से फसलोत्पादन करें। घनजीवामृत एक अत्यन्त प्रभावशाली जीवाणुयुक्त सूखी खाद है जिसे देशी गाय के गोबर में कुछ अन्य चीजें मिलाकर बनाया जाता है। घनजीवामृत को बोआई के समय खेत में पानी देने के 3 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। घनजीवामृत बनाने की विधिः घनजीवामृत बनाने के लिए 100 किग्रा० देशी गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श पर फेलायें। अब 2 किग्रा० देशी गुड़, 2किग्रा बेसन और सजीव मिट्टी का मिश्रण बनाकर अब थोड़ा-2 गौ मूत्र डालकर अच्छी तरह गूंथ लेंगे जिससे उसका घनजीवामृत बन जायेगा। अब इस तरह तैयार मिश्रण को छाया में 48 घण्टों के लिए अच्छी तरह सुखाकर बोरे से ढक देते हैं। 48 घण्टे बाद | इस मिश्रण का चूर्ण बनाकर भण्डारित कर लेते हैं। घनजीवामृत को 6 महीने तक प्रयोग कर सकते है। घनजीवामृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्रीः सामग्री देशी गाय का गोबर देशी गाय का गौमूत्र गुड़ बेसन मिट्टी (बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी मात्रा 100 किग्रा० 05 ली० 2 किग्रा 2 किग्रा० 1 किग्रा० घनाजीवामृत का प्रयोगः घनजीवामृत का उपयोग किसी भी फसल में कर सकते हैं, घनजीवामृत का उपयोग बहुत ही आसान है इसके प्रयोग के लिए प्रति एकड़ 100 किग्रा० सूखा देशी गाय के गोबर की खाद के साथ 20 किग्राम घनजीवामृत बोवाई के समय खेत में डालते हैं। घनजीवामृत का उपयोग खेत में पानी देने के 3 दिन बाद भी कर सकते हैं। घनजीवामृत से लाभ: ● घनजीवामृत के प्रयोग से किसान रसायनिक खेती की अपेक्षा अधिक फसल उत्पादन ले सकते हैं। घनजीवामृत से बीजों का अंकुरण अधिक मात्रा में होता है । घनजीवामृत के उपयोग से फसलों के दानों की चमक और स्वाद दोनों ही बढ़ते है।

Read more

Sunday, June 25, 2023

Mandaliy Kisan goshti stal in Banda agriculture uni

0


 

Read more

जोहाधान:दुनियां का ऐसा चावल है जो कई गंभीर और लाइलाज बीमारियों के रोकथाम

0

 #जोहाधान #जोहाचावल #JOHAPADDY #JOHARICE 

यह दुनियां का ऐसा चावल है जो कई गंभीर और लाइलाज बीमारियों के रोकथाम


व इलाज में सबसे कारगर माना गया है। यह चावल असम में जी आई टैग प्राप्त चावल है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा कराए गए एक शोध में इसमें कई ऐसे तत्व पाए गए हैं जो किसी दूसरे चावल में नहीं होता है। इसका नाम है जोहा चावल। यह  किस्म 150-160 दिन में पक कर तैयार होती है।

इसकी अन्य  किस्मों में कोला जोहा (काली जीरा, कोला जोहा 1, कोला जोहा 2, कोला जोहा 3), केटेकी जोहा और बोकुल जोहा के दाने मध्यम पतले प्रकार के होते हैं लेकिन कोन जोहा (कुंकिनी जोहा, माणिकी माधुरी जोहा और कोनजोहा) के दाने छोटे पतले प्रकार के होते हैं. इसे हार्ट, कैंसर, डायबिटीज सहित कई गंभीर बीमारियो में प्रभावी माना जाता है।

sabhar facebook.com wall

Read more

Ads

 
Design by Sakshatkar.com | Sakshatkartv.com Bollywoodkhabar.com - Adtimes.co.uk | Varta.tv