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Friday, July 22, 2022

धान की खेती कैसे करें उन्नत आधुनिक खेती

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धान की खेती कैसे करें इसकी पूरी जानकारी यहाँ मिलेगा। अगर आप एक किसान है और धान की उन्नत एवं आधुनिक खेती करना करना चाहते है तब आपको इसकी खेती के तरीके जरूर मालूम होना चाहिए। धान के लिए खेत को तैयार कैसे करते है, बीज का चुनाव कैसे करते है, धान में लगने वाले कीट एवं रोग का नियंत्रण कैसे करेंगे इसकी जानकारी होना बहुत जरुरी है। एक किसान के लिए धान उगाने से लेकर फसल काटने तक क्या क्या सावधानी अपनाना होता है उसकी जानकारी होना जरुरी है।
खरीफ फसलों में धान प्रमुख फसल है। प्रदेश में गत 5 वर्षों में धान के अन्तर्गत क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता के आंकड़े अनुसार प्रदेश में चावल की औसत उपज में वृद्धि हो रही है और अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत कम है। इसकी उत्पादकता बढ़ाने की काफी सम्भावना है। यह तभी सम्भव हो सकता है जब सघन विधियों को ठीक प्रकार से अपनाया जाय। धान की अधिक पैदावार प्राप्त करने हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • स्थानीय परिस्थितियों जैसे क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी, सिंचाई साधन, जल भराव तथा बुवाई एवं रोपाई की अनुकूलता के अनुसार ही धान की संस्तुत प्रजातियों का चयन करें।
  • शुद्ध प्रमाणित एवं शोधित बीज बोयें।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों, हरी खाद एवं जैविक खाद का समय से एवं संस्तुत मात्रा में प्रयोग करें।
  • उपलब्ध सिंचन क्षमता का पूरा उपयोग कर समय से बुवाई/रोपाई करायें।
  • पौधों की संख्या प्रति इकाई क्षेत्र सुनिश्चित की जाय।
  • कीट रोग एवं खरपतवार नियंत्रण किया जाये।
  • कम उर्वरक दे पाने की स्थिति में भी उर्वरकों का अनुपात 2:1:1 ही रखा जाय।
  • धान की खेती कैसे करें सम्पूर्ण जानकारी

    01. भूमि की तैयारी

    गर्मी की जुताई करने के बाद 2-3 जुताइयां करके खेत की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही खेत की मजबूत मेड़बन्दी भी कर देनी चाहिए ताकि खेत में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके। अगर हरी खाद के रूप में ढैंचा/सनई ली जा रही है तो इसकी बुवाई के साथ ही फास्फोरस का प्रयोग भी कर लिया जाय। धान की बुवाई/रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व खेत की सिंचाई कर दें, जिससे कि खरपतवार उग आवे, इसके पश्चात् बुवाई/रोपाई के समय खेत में पानी भरकर जुताई कर दें।

    02. धान की प्रजातियों का चयन

    प्रदेश में धान की खेती असिंचित व सिंचित दशाओं में सीधी बुवाई एवं रोपाई द्वारा की जाती है। विभिन्न जलवायु, क्षेत्रों और परिस्थितियों के लिए धान की संस्तुत प्रजातियों के गुण एवं विशेषतायें नीचे दिया गया है।

    1. असिंचित दशा शीघ्र पकने वाली

    • सीधी बुवाई – गोविन्द‚नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97, गोविन्द‚नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97, शुष्क सम्राट,
    • रोपाई – गोविन्द‚ नरेन्द्र-80, शुष्क सम्राट, मालवीय धान-2, नरेन्द्र-118

    2. सिंचित दशा शीघ्र पकने वाली (100-120) दिन

    नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97 शुष्क सम्राट मालवीय धान-2, मनहर, पूसा-169, नरेन्द्र-80, पन्त धान-12, पन्त धान-10

    3. मध्यम अवधि में पकने वाली (120-140 दिन)

    पन्त धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, पूसा-44, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान-3112-1

    4. देर से पकने वाली (140 दिन से अधिक)

    • सुगन्धित धान – टा-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा-बासमती-1, पूसा सुगन्ध-4 एवं 5, बल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, तारावडी बासमती, स्वर्णा, महसूरी
    • ऊसरीली – साकेत-4‚ झोना-349 साकेत-4, बासमती-370, पूसा बासमती-1, वल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, नरेन्द्र सुगंध

    04. शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का चयन

    प्रमाणित बीज से उत्पाद अधिक मिलता है और कृषक अपनी उत्पाद (संकर प्रजातियों को छोड़कार) को ही अगले बीज के रूप में सावधानी से प्रयोग कर सकते है। तीसरे वर्ष पुनः प्रमाणित बीज लेकर बुवाई की जावे।

    05. उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं विधि

    उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना उपयुक्त है। यदि किसी कारणवश मृदा का परीक्षण न हुआ तो उर्वरकों का प्रयोग निम्न प्रकार किया जायः

    सिंचित दशा में रोपाई (अधिक उपजदानी प्रजातियां : उर्वरक की मात्राः किलो/हेक्टर)

    प्रजातियांनत्रजनफास्फोरसपोटाश
    शीघ्र पकने वाली1206060
    प्रयोग विधिः नत्रजन की एक चौथाई भाग तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा कूंड में बीज के नीचे डालें, शेष नत्रजन का दो चौथाई भाग कल्ले फूटते समय तथा शेष एक चौथाई भाग बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें।
    प्रजातियांनत्रजनफास्फोरसपोटाश
    मध्यम देर से पकने वाली प्रयोग विधि1506060
    सुगन्धित धान (बौनी) प्रयोग विधि1206060

    देशी प्रजातियां : उर्वरक की मात्रा-कि०/हे०



    शीघ्र पकने वाली603030
    मध्यम देर से पकने वाली603030
    सुगन्धित धान603030
    प्रयोग विधिः रोपाई के सप्ताह बाद एक तिहाई नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें। दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग न करें।

    सीधी बुवाई

    उपज देने वाली प्रजातियाँ

    नत्रजनफास्फोरसपोटाश
    100-12050-6050-60
    प्रयोग विधिः फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नत्रजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद, एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा बाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें।

    देशी प्रजातियां: उर्वरक की मात्राः किलो/हेक्टर

    नत्रजनफास्फोरसपोटाश
    603030
    प्रयोग विधिः तदैव वर्षा आधारित दशा में: उर्वरक की मात्रा- किलो/हेक्टर

    देशी प्रजातियां : उर्वरक की मात्रा-कि०/हे०

    नत्रजनफास्फोरसपोटाश
    603030
    प्रयोग विधिः सम्पूर्ण उर्वरक बुवाई के समय बीज के नीचे कूंडों में प्रयोग करें।

    नोटः लगातार धान- गेहूँ वाले क्षेत्रों में गेहूँ धान की फसल के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन/हे० गोबर की खाद का प्रयोग करें।

    06. जल प्रबन्ध

    देश में सिंचन क्षमता के उपलब्ध होते हुए भी धान का लगभग 60-62 प्रतिशत क्षेत्र ही सिचिंत है, जबकि धान की फसल को खाद्यान फसलों में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने, बाली निकलने फूल, खिलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना चाहिए। फूल खिलने की अवस्था पानी के लिए अति संवेदनशील हैं। परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है।

  • इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5-7 सेमी० सिंचाई करना उपयुक्त होता है। यदि वर्षा के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई दे तो सिंचाई अवश्य करें। खेत में पानी रहने से फास्फोरस, लोहा तथा मैंगनीज तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते हैं।

  • धान में फसल सुरक्षा

    धान के प्रमुख कीट

    1. दीमक
    2. जड़ की सूड़ी
    3. पत्ती लपेटक
    4. नरई कीट
    5. गन्धी बग
    6. पत्ती लपेटक
    7. सैनिक कीट
    8. हिस्पा
    9. बंका कीट
    10. तना बेधक
    11. हरा फुदका
    12. भूरा फुदका
    13. सफेद पीठ वाला फुदका
    14. गन्धी बग

    धान में लगने वाले ये प्रमुख कीट है। अगर समय रहते इसका नियंत्रण नहीं किया गया तब फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते है। इसके नियंत्रण के लिए इसे  धान में लगने वाले प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के उपाय

    प्रमुख रोग

    1. सफेदा रोग
    2. खैरा रोग
    3. शीथ ब्लाइट
    4. झोंका रोग
    5. भूरा धब्बा
    6. जीवाणु झुलसा
    7. जीवाणु धारी
    8. मिथ्य कण्ड   

    9. sabhar achhiketi.com

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Saturday, July 09, 2022

Sugar Free Mango : अब डायबिटीज के मरीज भी ले सकेंगे आम का स्वाद, पकने से पहले 16 बार बदलता है रंग

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 News18 हिंदी: Sugar Free Mango : अब डायबिटीज के मरीज भी ले सकेंगे आम का स्वाद, पकने से पहले 16 बार बदलता है रंग. https://hindi.news18.com/news/nation/now-diabetic-patients-will-also-taste-sugar-free-mango-color-changes-16-times-before-ripening-4376630.html


SUGAR FREE Mango : बिहार में जिस आम की चर्चा हो रही, उसे अमेरिकन ब्यूटी नाम दिया गया है. दरअसल बिहार के मुजफ्फरपुर के एक किसान ने इस आम की बागवानी की है. इसी आम के बगीचे की चर्चा इन दिनों पूरे बिहार में हो रही है, क्योंकि आम का आकार, शेप और रंग दूसरे आमों से कई अलग है. ये कोई मामूली आम नहीं है, बल्कि दावा किया गया है कि ये आम (Mango) पकने से पहले 16 बार अपना रंग बदलता है. साथ ही इसको शुगर फ्री आम भी बताया जा रहा है.

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Monday, July 04, 2022

जापान की आम की प्रजाति

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 दुनिया का सबसे महंगा आम इसका वजन एक आम का 350  ग्राम होता है लाखों में है 1 किलो आम की कीमत 2.7 लाख रुपया प्रति किलो है लाल और पर्पल रंग का दिखने वाला जापान का मिया जाकि आम की रखवाली के लिए सिक्योरिटी गार्ड तैनात हैं या बिल्कुल डायनासोर के अंडे जैसा दिखता है


Miyazaki mangoes are the most expensive mangoes in the world. They are grown in Miyazaki, Japan, and are known for their sweet flavor, creamy texture, and bright red color. Miyazaki mangoes are often sold for over $100 per kilogram.

Here are some of the reasons why Miyazaki mangoes are so expensive:

  • They are grown in a very specific climate and soil conditions that are difficult to replicate elsewhere.
  • They are hand-picked and carefully packed to ensure that they arrive at their destination in perfect condition.
  • They are a very limited crop, and the demand for them is very high.

If you are lucky enough to find a Miyazaki mango, be sure to savor it! It is a truly unique and delicious fruit.



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खेती के उन्नत विधि

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Sunday, July 03, 2022

गन्ने की फसल में चोटी बधेक कीट* *(Top borer)*

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   इस कीट की सुंडी अवस्था ही हानि पहुंचाती है। यह कीट पूरे वर्ष में 4 से 5 पीढ़ियां पाई जाती हैं। इसे किसान कन्फ्ररहा, गोफ का सूखना आदि नामों से जानते हैं। 

 *कीट की पहचान -* इसका प्रौढ़ कीट चांदी जैसे सफेद रंग का होता है तथा मादा कीट के उदर भाग के अंतिम खंड पर हल्के गुलाबी रंग के बालों का गुच्छा पाया जाता है। इस कीट की सुंडी हल्के पीले रंग की होती है, जिस पर कोई धारी नहीं होती है।  

 *हानियां -* इस कीट की मादा सुंडी पौधों की दूसरी या तीसरी पत्ती की निचली सतह पर मध्य शिरा के पास समूह में अंडे देती है। इसकी सुंडी पत्ती की मध्य शिरा से प्रवेश कर गोंफ़ तक पहुंच जाती है तथा पौधे के वृद्धि वाले स्थान को खाकर नष्ट कर देती है,जिससे कि गन्ने की बढ़वार रुक जाती है। प्रभावित पौधे की गॉफ छोटी तथा कत्थई रंग की हो जाती है, जो कि खींचने पर आसानी से नहीं निकलती है। गन्ने की पत्ती की मध्य शिरा पर लालधारी का निशान तथा गॉफ़ के किनारे की पत्तियों पर गोल छर्रे जैसा छेद पाया जाता है। इस कीट की प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी के आपतन से गन्ने के पौधे पूर्ण रूप से सूख जाते हैं तथा तृतीय पीढ़ी से पौधों की बढ़वार रुक जाने के कारण उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है व पौधों की लंबाई कम हो जाती है। इस कीट के आपतन से 20 से 35 प्रतिशत तक हानि होती है। इस कीट की तीसरी एवं चौथी पीढ़ी के आपतन से गन्ने में बंची टॉप का निर्माण हो जाता है। 

 *जीवन चक्र-* मादा अपने जीवन काल में 250 से 300 अंडे कई अंड समूह में देती है। जिनकी संख्या 6 से 70 तक रहती है। इस कीट का अंड काल 6 से 8 दिन, सुंडी काल 36 से 40 दिन, एवं प्यूपा काल 8 से 10 दिन तक रहता है तथा जीवन काल 53 से 65 दिन तक रहता है। 

 *पीढ़ियां-

प्रथम - मार्च से अप्रैल तक 

द्वितीय - मई के द्वितीय सप्ताह से जून के द्वितीय सप्ताह तक 

तृतीय - जून के तृतीय सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक

 चतुर्थ - अगस्त के प्रथम सप्ताह से मध्य सितंबर तक

 पंचम - मध्य सितंबर से फरवरी के अंतिम सप्ताह तक।

 *नियंत्रण -* 1- प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी से प्रभावित पौधों को सुंडी सहित पतली खुर्पी की सहायता से जमीन की गहराई से काट कर खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। 

2- प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी को नियंत्रण के लिए फरवरी - मार्च में गन्ना बुवाई के समय कीट नाशक वर्टोको 5 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से कुड़ों में प्रयोग करना चाहिए। 

3- कीटनाशक वार्टको 5 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक तृतीय पीढ़ी के लिए पर्याप्त नमी की दशा में पौधों की जड़ों के पास प्रयोग करना चाहिए।

4 - 150 ML कोराजन 400 लीटर पानी में घोल बनाकर दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी के लिए मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह में जड़ों के पास डेचिंग करें तथा 24 घंटे के अंदर खेत की सिंचाई अवश्य कर दें।  बीके शुक्ला  अपर गन्ना आयुक्त गन्ना एवं चीनी विभाग उत्तर प्रदेश सरकार


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Wednesday, June 29, 2022

जैविक खाद बनाने का भरोसेमंद एवं सस्ता विकल्प है ‘प्रोम’ (PROM)

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जैविक खाद बनाने का भरोसेमंद एवं सस्ता विकल्प है ‘प्रोम’ (PROM)

26 Jul 2019



क्या आप जानते हैं फसल के उत्पादन में फॉस्फेट तत्व का प्रमुख योगदान होता है! रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग करने से खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है, जमीन सख्त हो रही है, भूमि में पानी सोखने की क्षमता घटती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ भूमि तथा उपभोक्ताओं के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर भी पड़ रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नया उत्पाद विकसित किया गया है, जिसमें कार्बनिक खाद के साथ-साथ रॉक फॉस्फेट की मौजूदगी भी होती है। जिसे हम प्रोम के नाम से जानते हैं।




‘प्रोम’ को विस्तार पूर्वक समझते हैं


प्रोम (फॉस्फोरस रिच आर्गेनिक मैन्योर) तकनीक से जैविक खाद घर पर भी तैयार की जा सकती है। प्रोम, जैविक खाद बनाने की एक नई तकनीक है। जैविक खाद बनाने के लिए गोबर तथा रॉक फॉस्फेट को प्रयोग में लाया जाता है। रॉक फॉस्फेट की मदद से रासायनिक क्रिया करके सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) तथा डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) रासायनिक उर्वरक तैयार किए जाते हैं।


प्रोम में विभिन्न फॉस्फोरस युक्त कार्बनिक पदार्थों जैसे- गोबर खाद, फसल अपशिष्ट, चीनी मिल का प्रेस मड, जूस उद्योग का अपशिष्ट पदार्थ, विभिन्न प्रकार की खली और ऊन के कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ आदि को रॉक फॉस्फेट के साथ कम्पोस्टिंग करके बनाया जाता है। प्रोम मिनरल उर्वरक एवं जैविक खाद का मिश्रण है जो केवल कृषि में उपयोग के लिये काम में लाया जाता है। प्रोम का उपयोग पौधों को फॉस्फोरस (फॉस्फोरस पादप पोषक तत्व) उर्वरक प्रदान करने के लिए किया जाता है। जीवाणु राॅक फोसफोरस को पचा कर उसे गोबर में उपलब्ध करते हेै इस कारण प्रोम शुद्व रुप से जैविक है।


प्रोम से क्या-क्या फायदे हैं :


जैविक खाद से अनाज, दालें, सब्जी व फलों की गुणवत्ता बढ़ाने से अच्छा स्वाद मिलता है।

रोगों में रोधकता आने से मानव के स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं।

प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल है।

प्रत्येक किसान, जिसके यहां गोबर उपलब्ध है, आसानी से अपने घर पर जैविक खाद बनाकर तैयार कर सकता है।

किसान DAP व SSP खरीदने पर जितने पैसा खर्च करता है उससे कम पैसे में प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाकर भरपूर फसल पैदा कर सकता है।

प्रोम मिट्टी को नरम बनाने के साथ-साथ पोषक तत्वों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाये रखता है।

प्रोम लवणीय व क्षारिय भूमि में भी प्रभावी रूप में काम करता है जबकि DAP ऐसी भूमि मे काम नहीं करता है।

जैविक खाद को घर पर बनाने की प्रक्रिया :


‘फॉस्फोरस रिच जैविक खाद’ घर पर भी रॉक फॉस्फेट के द्वारा बनाई जा सकती है। रॉक फॉस्फेट के अलग-अलग रंग होते हैं, रॉक फॉस्फेट एक तरह का पत्थर है जिसके अंदर 22 फीसदी फॉस्फोरस मौजूद है जो कि फिक्स फोम में होता है। प्रोम बनाने के लिए कमर्शियल में 10 फीसदी के आसपास फॉस्फोरस मेंटेन किया जाता है लेकिन हम घर पर बनाने के लिए 18%,19% या 20 फीसदी तक फॉस्फोरस इस्तेमाल में ले सकते हैं। इसे बनाने के लिए किसी भी जानवर का गोबर ले सकते हैं, घर में मौजूद कूड़ा-कर्कट या फिर फसलों के अवशेष जिससे खाद बनाते हैं (प्लांट बेस्ड) वो भी ले सकते हैं। Dr absinth kisan sankalp bazar

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Monday, June 27, 2022

पशुपालन एवं वेटरनरी कृत्रिम गर्भाधान के विभिन्न कोर्सों में दाखिल लेकर रोजगार प्राप्ति करें

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आजकल बेरोजगारी के समय में कृषि और पशुपालन रोजगार की अपार संभावना है बिचपुरी आगरा में संचालित वेटरनरी कॉलेज विभिन्न कोर्सों में दाखिल होकर सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते हैं और कुमार प्रशिक्षण प्राप्त कर  स्वयं निजी का कार्य किसी कंपनी में नौकरी इत्यादि कर सकते हैं 

http://aitajagra.com/ कृपया डिटेल जानकारी वेबसाइट एवं कॉलेज से प्राप्त कर सकतेे हैं

5 वी, 8 वी, 10 वी, 12वी पास छात्र के लिए सुनेहरा अवसर

 *कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण संस्थान*

भारत सरकार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त

NSDC , Agriculture council  of India 


कोर्स के बाद सुनिश्चित रोजगार की गारण्टी


*कोर्स का नाम* Artificial Insemination Technician (कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन)🐄🐂🐃

*अवधि* 3 माह

*योग्यता* 8 और 10 पास

*फीस* 30000 मात्र 


*कोर्स का नाम*  Dairy Farming/ Enterpreneur 

(डेयरी फार्मिंग / उद्यमी)🐃🥛

*अवधि* 1 माह

*योग्यता* 5 वी पास

*फीस* 15000/- मात्र 


*कोर्स का नाम*  Dairy Farmer Supervisor

(डेयरी किसान पर्यवेक्षक)🥛

*अवधि* 2 माह

*योग्यता* 12 वी पास

*फीस* 25000/- मात्र


*कोर्स का नाम* Veterinary Clinical 🏥Assistant

(पशु चिकित्सा नैदानिक सहायक)🐕🐩🦮🐕‍🦺🐈🐈‍⬛

*अवधि* 2 sal

*योग्यता* 12 वी पास

*फीस* 60000/- मात्र


*कोर्स का नाम*  Animal Health Worker (first Aid)

पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता (प्राथमिक चिकित्सा)🐃🦮🐈🐐🐎

*अवधि* 2 माह



*योग्यता* 8 वी पास

*फीस* 20000/- मात्र


*आज ही प्रवेश ले और अपना कैरियर बनाएं*


कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण संस्थान

पथौली नहर, जयपुर हाईवे बिचपुरी आगरा।

मोबाइल नंबर- 9520978721


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Thursday, June 23, 2022

भूमि के लिए संजीवनी - " हरी खाद (Green Manure) " :-

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किसान भाई कई वर्षों से लगातार अपने खेतों में रासायनिक खाद-उर्वरक तथा अन्य जहरीले रसायनो का प्रयोग करके खेती कर रहे है। गोबर की विभिन्न तरह की खादो व अन्य जैविक खादों का प्रयोग लगभग न के बराबर हो रहा है अथवा बंद कर दिया गया है। जिसके परिणाम स्वरूप हमारी भूमि में ऑर्गेनिक कार्बन, मित्र सूक्ष्म जीव,मित्र फंगस, आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। भूमि की भौतिक व रासायनिक संरचना बिगड़ चुकी है, जमीन का पोलापन कठोरता में बदल रहा है। भूमि में लवणीयता तथा क्षारीयता बढ़ रही है। हमारी भूमि मृत होती जा रही है। जिससे फसलों का उत्पादन स्थिर हो गया है अथवा कम होता जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो एक दिन हमारी खेती बंजर हो सकती है। यदि हमें अपने खेतों को बंजर होने से बचाना है तथा अपनी अगली पीढ़ी के लिए कृषि क्षेत्र में एक अच्छा भविष्य देना है, तो हमे अपने खेतों में नियमित गोबर से बनी विभन्न तरह की खादो व हरी खादो का प्रयोग करना होगा। हरी खाद :- हरी खाद सबसे अच्छा , सरल, कम लागत वाला एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से भूमि में देशी केंचुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा फसलों के लिए आवश्यक सभी मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्वों, आर्गेनिक कार्बन, एंजाइम्स- विटामिन्स-हार्मोन्स, विभिन्न मित्र बैक्टेरिया व मित्र फंगस, आर्गेनिक एसिड्स आदि में वृद्धि होती है तथा हमारी भूमि उपजाऊ बनती है। इसके लिए हमे गेंहू की कटाई के बाद पानी की व्यवस्था वाले खेतो में अप्रैल या मई माह में तथा सूखे क्षेत्रो में मानसून आने पर हरी खाद की बुआई करनी चाहिए। हरी खाद के लिए तेजी से बढ़ने वाली दलहनी फसलें जैसे- ढेंचा, सनई, लोबिया, ग्वार, मूंग उड़द आदि की बुआई कर सकते है। मेरे अनुभव के हिसाब से हरी खाद के लिए ढेंचा एवं सनई सबसे उपयुक्त रहती है, जो जल्दी बढ़ती है तथा इनसे बायोमास भी अधिक मिलता है। ढेंचा एक ऐसी फसल है जो अंकुरित होने के बाद पानी की कमी या सूखा को भी सह लेती है तथा वर्षा के मौषम में अधिक पानी गिरने पर पानी भराव को भी सहन कर सकता है। हरी खाद को बुआई के बाद गलभग 45 से 60 दिनों में फूल आने के पूर्व खेत मे लोहा हल, डिस्क हैरो अथवा रोटावेटर से मिट्टी में पलट दिया जाता है। इस समय खेत मे पर्याप्त नमी होनी चाहिए जिससे हरी खाद शीघ्र ही डिकॉम्पोज़ हो जाए, खाद पलटते समय उपलब्धता के अनुसार खेत मे सरसो, करंज, नीम आदि की खल, जीवामृत, वेस्ट डिकॉम्पोज़र अथवा यूरिया डालने से हरी खाद की फसल अतिशीघ्र ही डिकॉम्पोज़ हो जाती है। दलहनी फसल में एक विशेष गुण होता है कि वह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अपनी जड़ो में राइजोबियम बैक्टेरिया के माध्यम से भूमि में भंडारित कर लेती है, जिससे खेत मे बोई जाने वाली अगली फसल को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन तथा अन्य सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो जाते है। जिससे एक तरफ़ तो हमारी भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है तथा दूसरी ओर रासायनिक खादों का प्रयोग भी कम किया जा सकता है। धान लगाने के पूर्व किसान अपने खेती में हरी खाद की बुआई कर मानसून आने पर हरी खाद को खेत मे पलटकर धान की रोपाई कर रासायनिक उर्वरक के खर्चे को कम कर सकते है। अतः किसान भाइयों से निवेदन है कि आप भी हरी खाद लगाकर अपने खेतों को उपजाऊ बनाये। ( अधिक जानकारी के लिए शाम 7:00 से 10:00 बजे तक आप मुझे संपर्क कर सकते है।) Think Globally Act Locally " बुंदेलखंड जैविक कृषि फार्म " ( उन्नत सजीव खेती आधारित SFS मॉडल) ग्राम व पोस्ट- छनेहरा लालपुर, विकासखंड- बड़ोखर खुर्द,जनपद -बाँदा, बुंदेलखंड(उ.प्र.), Pin - 210001 संपर्क:- 8085786148, 9919018020 7999735744

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Wednesday, June 22, 2022

सीएसए ने राई की नई प्रजाति सुरेखा

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*सीएसए ने राई की नई प्रजाति सुरेखा ( के एम आर 16-2) की विकसित* कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के तिलहन अनुभाग द्वारा राई की नई प्रजाति सुरेखा (केएमआर 16-2) विकसित की है। राई वैज्ञानिक डॉ महक सिंह ने बताया कि भारत सरकार द्वारा यह प्रजाति नोटिफाइड हो चुकी है।उन्होंने बताया कि दिनांक 17 जून 2022 को आईसीएआर के उप महानिदेशक फसल विज्ञान डॉ टी आर शर्मा की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय बीज विमोचन समिति की 88 वीं बैठक में राई की सुरेखा प्रजाति को नोटिफाइड किया गया है। डॉक्टर महक सिंह ने बताया कि यह प्रजाति उच्च तापक्रम के प्रति प्रारंभिक अवस्था में सहिष्णु है तथा अगेती एवं समय से बुवाई हेतु संस्तुति है उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के सभी जलवायु क्षेत्रों हेतु सिंचाई दशा के लिए संस्तुति है। उन्होंने बताया कि इस प्रजाति का उत्पादन 25 से 28 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। तथा 125 से 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। डॉ सिंह ने कहा कि इस प्रजाति में 41.2 से 42.6% तेल की मात्रा पाई जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रजातिअल्टरनरिया ब्लाइट एवं व्हाइट रस्ट के प्रति प्रतिरोधी है। उन्होंने बताया कि राई की उर्वशी प्रजाति से 16.69% अधिक उत्पादन देती है। निदेशक शोध डॉक्टर करम हुसैन ने बताया कि यह प्रजाति उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होगी।विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डीआर सिंह ने राई की नवीन प्रजाति को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।

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*फसल संबंधित सलाह डॉक्टर ए के सिंह

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:* •वर्तमान मौसम को ध्यान में रखते हुए किसानों को धान की नर्सरी तैयारी करने की सलाह है। एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई करने हेतु लगभग 800-1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में पौध तैयार करना पर्याप्त होता है। नर्सरी के क्षेत्र को 25 से 1.5 मीटर चौडी तथा सुविधानुसार लम्बी क्यारियों में बाँटे। पौधशाला में बुवाई से पूर्व बीजोपचार के लिए 5.0 किलोग्राम बीज के लिए बावस्टिन 10-12 ग्राम और 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन को 10 लीटर पानी में घोल लें। आवश्यकतानुसार इस घोल को बनाकर इसमें 12-15 घण्टे के लिए बीज को डाल दें। उसके बाद बीज को बाहर निकालकर किसी छायादार स्थान में 24-36 घण्टे के लिए ढककर रखें और पानी का हल्का-हल्का छिडकाव करते रहें। बीज में अंकुर निकलने के बाद पौधशाला में छिडक दें। अधिक उपज देने वाली किस्में:- पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1885, पूसा बासमती 1886, पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1637, पूसा 44, पूसा 1718, पूसा बासमती 1401, पूसा सुगंध 5, पूसा सुगंध 4 (पूसा 1121), पंत धान 4, पंत धान 10। •खरीफ मक्का की बुवाई के लिए खेतों की तैयारी करें, साथ ही उन्नतशील संस्तुति संकुल प्रजातियां- कंचन, गौरव,स्वेता, आजाद उत्तम एवं संकर प्रजातियां- प्रकाश, वाई -1402, बायो-9681, प्रो -316, डी-9144, दिकाल्ब- 7074, पीएचबी-8144, दक्कन 115, एम.एम.एच.-133 आदि में से एक किसी एक प्रजाति की बुवाई के लिए खाद एवं बीज की व्यवस्था करें। मक्के की संकुल प्रजाति की बुवाई के लिए 20 -25 किलोग्राम बीज/हेक्टयर तथा शंकर प्रजाति 18 -20 किलोग्राम बीज / हेक्टेयर की दर से बुवाई करें। •अरहर की बुवाई इस सप्ताह कर सकते है। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखें। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। अच्छे अंकुरण के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। किसानों से यह आग्रह है कि वे बीजों को बोने से पहले अरहर के लिए उपयुक्त राईजोबियम तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं (पीएसबी)फँफूद के टीकों से उपचार कर लें। इस उपचार से फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है। उप्युक्त किस्में:- पूसा अरहर-16, पूसा 2001, पूसा 2002, पूसा 991, पूसा 992, पारस तथा मानक। •यह समय चारे के लिए ज्वार की बुवाई के लिए उप्युक्त हैं अतः किसान पूसा चरी-9, पूसा चरी-6 या अन्य सकंर किस्मों की बुवाई करें बीज की मात्रा 40 किलोग्राम/हैक्टर रखें तथा लोबिया की बुवाई का भी यह उप्युक्त समय है। *फसल सुरक्षा:* •धान की पौधशाला मे यदि पौधों का रंग पीला पड रहा है तो इसमे लौह तत्व की कमी हो सकती है। पौधों की ऊपरी पत्तियॉ यदि पीली और नीचे की हरी हो तो यह लौह तत्व की कमी दर्शाता है। इसके लिए 0.5 % फेरस सल्फेट +0.25 % चूने के घोल का छिडकाव करें। •बैगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी के पौध की बुवाई करे। मिर्च के खेत में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दें। उसके उपरांत इमिडाक्लोप्रिड @ 0.3 मि.ली./लीटर की दर से छिड़काव करें। •फलों के नऐ बाग लगाने वाले गड्डों की खुदाई कर उनको खुला छोड दें ताकि हानिकरक कीटो-रोगाणु तथा खरपतवार के बीज आदि नष्ट हो जाए।आम, अमरूद, नींबू, बेर, अंगूर, पपीता व लीची आदि के बागों में सिंचाई का कार्य करें। पशु पालन: •पशुओ को दिन के समय छायादार और सुरक्षित स्थानों मे बाँधे। पशुशाला मे बोरे का पर्दा डाले और उस पर पानी छिड़काव कर ठंडा रखे। पशुओं को पीने के लिए पर्याप्त मात्रा मे ताजा और शुद्ध पानी उपलब्ध कराएं। तेज़ धूप से काम करके आए पशुओं को तुरंत पानी न पिलाए, आधा घंटे सुस्ताने के बाद पानी पिलाए। पशुओं को सुबह और शाम नहलाए। •पेट मे कीड़ों से बचाव हेतु पशुओं को कृमिनाशक दवा का पान कराए। खुरपका-मुँहपका रोग की रोकथाम हेतु एफ.एम.डी. वैक्सीन से तथा लंगड़िया बुखार की रोकथाम हेतु बी.क्यू. वैक्सीन से पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराए। पशुओं मे गलाघोटूँ एवं फड़ सूजन के रोकथाम हेतु टीकाकरण कराए। शाम के समय पशुओं के पास नीम की पत्तियों का धुआँ करे ताकि मच्छर व मक्खी भाग जाए। *मुर्गी पालन:* किसानों को सलाह दी जाती है कि वे मुर्गियों को भोजन में पूरक आहार, विटामिन और ऊर्जा खाद्य सामग्री मिलाएं और साथ ही साथ कैल्शियम सामग्री भी मुर्गियों को दें। मुर्गियों के पेट में कीड़ो की रोकथाम (डिवमिर्ग) के लिए दवा दें। मुर्गियों को गर्मी से बचाव हेतु मुर्गी हाउस में पर्दे, पंखे और वेंटिलेशन की व्यवस्था करें। मुर्गियों को गर्मी से बचाने के लिए मुर्गी घर में लगे हुए जुट के पर्दो पर पानी के छींटे मारे जिससें ठंडक बनी रहे। डाक्टर अजित प्रताप सिंह, संकल्प किसान बाज़ार

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Saturday, June 18, 2022

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Disscusion with Akhilesh Bahadur Pal on importance of agriculture farming

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Friday, June 03, 2022

आम के बाग लगाने के पूर्व जानने योग्य प्रमुख बातें

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डॉ एसके सिंह प्रोफेसर , प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं एसोसिएट डायरेक्टर रिसर्च डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा ,समस्तीपुर, बिहार-848 125 sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in उत्तर भारत में आम के बाग़ को लगाने का सर्वोत्तम समय जून के अंतिम सप्ताह से लेकर सितम्बर माह तक है , लेकिन इसकी तैयारी मई -जून से ही शुरू कर देते है .आम के बाग की स्थापना एक दीर्घकालिक निवेश है; इसलिए उचित योजना और लेआउट एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यदि आप आम का बाग लगाना चाहते है तो आप को बाग लगाने से पूर्व निम्नलिखित बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए यथा..... 1. साइट चयन  आम के लगाने की जगह ( साइट) को मुख्य सड़क और बाजार के पास होना चाहिए क्योंकि इसमे लगने वाली विभिन्न जैसे खाद , उर्वरक एवं पेस्टीसाइड की समय पर खरीद और फसल की समय पर विक्री के लिए पास होना चाहिए।  आम की वृद्धि और उत्पादन के लिए उचित सिंचाई की सुविधा, उपयुक्त जलवायु और अच्छी मिट्टी का होना आवश्यक है। 2. क्षेत्र की तैयारी  गहरी जुताई के पश्चात हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभुरा एवम् खरपतवार को एकत्र कर लेते है।  भूमि को अच्छी तरह से समतल किया जाना चाहिए और अधिक वर्षा के पानी की उचित सिंचाई और जल निकासी के लिए एक दिशा में हल्का ढलान प्रदान किया जाता है। 3. लेआउट और रोपण दूरी  यह पौधों को सामान्य विकास के लिए पर्याप्त स्थान प्रदान करता है, उचित परस्पर संचालन की अनुमति देता है और हवा और सूरज की रोशनी के पर्याप्त मार्ग प्रदान करता है।  रोपण की दूरी मिट्टी की प्रकृति, सैपलिंग प्रकार (ग्राफ्ट्स / सीडलिंग) और विविधता की शक्ति जैसे कारकों पर निर्भर करती है।  खराब मिट्टी का पौधा धीरे-धीरे बढ़ता है और भारी मिट्टी में, पौधे बौने रह जाते हैं, कम जगह की आवश्यकता होती है। लंबी प्रजाति के आम(मालदा या लंगड़ा, चौसा, फजली)को 12m × 12 के अंतर पर लगाई जाती है बौनी प्रजाति के आम (दशहरी, नीलम, तोतापुरी और बॉम्बे ग्रीन) को 10 मीटर × 10 मीटर की दूरी पर लगाए गए  डबल रो हेज सिस्टम: (5 मी × 5 मी) × 10 मी: 220 पौधे प्रति हेक्टेयर (बौनी किस्में)।  बौनी किस्म: आम्रपाली 2.5m × 2.5 m (1600 पौधे / हेक्टेयर) में लगाया जाता है 4. गड्ढे तैयार करना  गड्ढे का आकार मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है।  यदि हार्ड पैन आधे मीटर की गहराई में है, तो गड्ढे का आकार 1मीटर × 1मीटर × 1मीटर होना चाहिए  यदि मिट्टी उपजाऊ है और हार्ड पैन नहीं है, तो गड्ढे का आकार 30 सेमी × 30 सेमी × 30 सेमी होना चाहिए।  गड्ढे वाली मिट्टी के ऊपरी आधे हिस्से और निचली आधी मिट्टी को अलग-अलग रखा जाता है और अच्छी तरह से सड़ी कम्पोस्ट 50 किग्रा, सुपर फॉस्फेट सिंगल (SSP) 100 ग्रा और मुइरेट ऑफ़ पोटाश ( एमओपी) 100 ग्रा के साथ मिलाया जाता है।  गड्ढे मई -जून के गर्मियों के दौरान खोद कर 2-4 सप्ताह के लिए छोड़ देते है जिससे मिट्टी सूरज के संपर्क में आते हैं और नीचे मिट्टी एवं शीर्ष के मिट्टी के मिश्रण से भर दिए जाते हैं।  भरने के बाद गड्ढों की अच्छी तरह से सिंचाई की जाती है। 5. रोपण का समय  उत्तर भारत और पूर्वी भारत में जून से सितंबर

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Friday, May 27, 2022

ड्रैगन फ्रूट (फल) की खेती से लाभ कमाएं

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भावनगर/अहमदाबाद। गुजरात के ड्रैगन फ्रूट (फल) को राज्य सरकार ने "कमलम" नाम दिया है। सरकार के इस निर्णय के बाद से उत्तर गुजरात, सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में इसके उत्पादन में रुचि बढ़ी। भावनगर जिले के वावड़ी गांव के एक किसान ने कम पानी और खर्च करके सिर्फ चार बीघा जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती से 3.5 लाख रुपये की कमाई की है। सौराष्ट्र के भावनगर जिले के वावड़ी गांव के किसान ने रमेशभाई मकवाना पारंपरिक खेती की तुलना में कम पानी में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। रमेशभाई जामनगर से ड्रैगन फ्रूट के पौधे लाए। ड्रैगन फ्रूट के एक पौधे की कीमत 48 रुपये है और वर्तमान में रोपण के 15 महीने बाद फल आते हैं। रमेशभाई ने चार बीघा जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सालाना 3.5 लाख रुपये की कमाई की है। इस संबंध में रमेशभाई ने बताया कि वह भावनगर जिले में पिछले एक-दो साल से ड्रैगन फ्रूट की फसल कर रहे हैं। भावनगर में अवनिया, तलाजा, दिहोर, त्रापज, सीहोर और पालिताना ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है। उन्हाेंने बताया कि गुलाबी, लाल और सफेद रंग की तीन तरह के ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है। उन्होंने बताया कि इस फल से प्रति बीघा 1.10 लाख रुपये तक आमदनी होती है। उल्लेखनीय है कि ड्रैगन फ्रूट की कमल जैसी और कांटेदार कैक्टस प्रजाति स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम फल मानी जाती है। ड्रैगन फ्रूट का इस्तेमाल च्युइंग गम और अन्य जड़ी-बूटियों में भी किया जाता है। इसलिए बाजार में भी काफी तेजी आई है। Sabhar www.sanjeevanitoday.com

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Monday, January 24, 2022

खीरे का निर्यात बढ़ा

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 पहले खीरा और ककड़ी जैसी फसलों की खेती एक खास सीजन में ही होती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्नत किस्मों के बीज और पॉली हाउस जैसे माध्यमों की मदद से अब सालभर खीरा और ककड़ी की खेती होती है। तभी तो भारत दुनिया में ककड़ी और खीरे का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उभरा है। वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार भारत ने अप्रैल-अक्टूबर (2020-21) के दौरान 114 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 1,23,846 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया है। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में कृषि प्रसंस्कृत उत्पाद के निर्यात का 200 मिलियन अमरीकी डालर का आंकड़ा पार कर लिया है, इसे खीरे के अचार बनाने के तौर पर वैश्विक स्तर पर गेरकिंस या कॉर्निचन्स के रूप में जाना जाता है। 2020-21 में, भारत ने 223 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 2,23,515 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया था। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत वाणिज्य विभाग के निर्देशों का पालन करते हुए, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने बुनियादी ढांचे के विकास, वैश्विक बाजार में उत्पाद को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के पालन में कई पहल की हैं। खीरे को दो श्रेणियों ककड़ी और खीरे के तहत निर्यात किया जाता है जिन्हें सिरका या एसिटिक एसिड के माध्यम से तैयार और संरक्षित किया जाता है, ककड़ी और खीरे को अनंतिम रूप से संरक्षित किया जाता है। सबसे पहले कर्नाटक से हुई थी निर्यात की शुरूआत खीरे की खेती, प्रसंस्करण और निर्यात की शुरूआत भारत में 1990 के दशक में कर्नाटक में एक छोटे से स्तर के साथ हुई थी और बाद में इसका शुभारंभ पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी हुआ। विश्व की खीरा आवश्यकता का लगभग 15% उत्पादन भारत में होता है। खीरे को वर्तमान में 20 से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है, जिसमें प्रमुख गंतव्य उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय देश और महासागरीय देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, जापान, बेल्जियम, रूस, चीन, श्रीलंका और इजराइल हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए 65000 एकड़ में होती है खीरे की खेती अपनी निर्यात क्षमता के अलावा, खीरा उद्योग ग्रामीण रोजगार के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में, अनुबंध खेती के तहत लगभग 90,000 छोटे और सीमांत किसानों द्वारा 65,000 एकड़ के वार्षिक उत्पादन क्षेत्र के साथ खीरे की खेती की जाती है। प्रसंस्कृत खीरे को औद्योगिक कच्चे माल के रूप में और खाने के लिए तैयार करके जारों में थोक में निर्यात किया जाता है। थोक उत्पादन के मामले में एक उच्च प्रतिशत का अभी भी खीरा बाजार पर कब्जा है। भारत में ड्रम और रेडी-टू-ईट उपभोक्ता पैक में खीरा का उत्पादन और निर्यात करने वाली लगभग 51 प्रमुख कंपनियां हैं। एपीडा ने प्रसंस्कृत सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह बुनियादी ढांचे के विकास और संसाधित खीरे की गुणवत्ता बढ़ाने, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादों को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणालियों के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। औसतन, एक खीरा किसान प्रति फसल 4 मीट्रिक टन प्रति एकड़ का उत्पादन करता है और 40,000 रुपये की शुद्ध आय के साथ लगभग 80,000 रुपये कमाता है। खीरे में 90 दिन की फसल होती है और किसान वार्षिक रूप से दो फसल लेते हैं। विदेशी खरीदारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए गए हैं। सभी खीरा उत्पादन और निर्यात कंपनियां या तो आईएसओ, बीआरसी, आईएफएस, एफएसएससी 22000 प्रमाणित और एचएसीसीपी प्रमाणित हैं या सभी प्रमाणपत्र रखती हैं। कई कंपनियों ने सोशल ऑडिट को अपनाया है। यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को सभी वैधानिक लाभ दिए जाएं।

Sabhar :
https://www.gaonconnection.com/desh/which-states-maximum-farmers-get-the-benefit-of-msp-it-is-not-haryana-or-punjab-48592?infinitescroll=1

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Wednesday, January 19, 2022

केंचुआ खाद तैयार करने की विधि

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  • जिस कचरे से खाद तैयार की जाना है उसमे से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक हैं।
  • केचुँआ को आधा अपघटित सेन्द्रित पदार्थ खाने को दिया जाता है।
  • भूमि के ऊपर नर्सरी बेड तैयार करें, बेड को लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का व समतल बना लें।
  • इस तह पर 6-7 से0मी0 (2-3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी की तह बिछायें।
  • बालू रेत की इस तह पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की तह बिछायें। दोमट मिट्टी न मिलने पर काली मिट्टी में रॉक पाऊडर पत्थर की खदान का बारीक चूरा मिलाकर बिछायें।
  • इस पर आसानी से अपघटित हो सकने वाले सेन्द्रिय पदार्थ की (नारीयल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल एवं अन्य) दो इंच मोटी सतह बनाई जावे।
  • इसके ऊपर 2-3 इंच पकी हुई गोबर खाद डाली जावे।
  • केचुँओं को डालने के उपरान्त इसके ऊपर गोबर, पत्ती आदि की 6 से 8 इंच की सतह बनाई जावे। अब इसे मोटी टाट् पट्टी से ढांक दिया जावे।
  • झारे से टाट पट्टी पर आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी छिड़कते रहे, ताकि 45 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे। अधिक नमी/गीलापन रहने से हवा अवरूद्ध हो जावेगी और सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुएं कार्य नहीं कर पायेगे और केचुएं मर भी सकते है।
  • नर्सरी बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए।
  • नर्सरी बेड में गोबर की खाद कड़क हो गयी हो या ढेले बन गये हो तो इसे हाथ से तोड़ते रहना चाहिये, सप्ताह में एक बार नर्सरी बेड का कचरा ऊपर नीचे करना चाहिये।
  • 30 दिन बाद छोटे छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जावेंगे।
  • 31 वें दिन इस बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी तह बिछायें और उसे नम करें।
  • इसके बाद हर सप्ताह दो बार कूडे-कचरे की तह पर तह बिछाएं। बॉयोमास की तह पर पानी छिड़क कर नम करते रहें।
  • 3-4 तह बिछाने के 2-3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे कर देवें और नमी बनाए रखें।
  • 42 दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें।
  • इस पद्धति से डेढ़ माह में खाद तैयार हो जाता है यह चाय के पाउडर जैसा दिखता है तथा इसमें मिट्टी के समान सोंधी गंध होती है।
  • खाद निकालने तथा खाद के छोटे-छोटे ढेर बना देवे। जिससे केचुँए, खाद की निचली सतह में रह जावे।
  • खाद हाथ से अलग करे। गैती, कुदाली, खुरपी आदि का प्रयोग न करें।
  • केंचुए पर्याप्त बढ़ गए होंगे आधे केंचुओं से पुनः वही प्रक्रिया दोहरायें और शेष आधे से नया नर्सरी बेड बनाकर खाद बनाएं। इस प्रकार हर 50-60 दिन बाद केंचुए की संख्या के अनुसार एक दो नये बेड बनाए जा सकते हैं और खाद आवश्यक मात्रा में बनाया जा सकता है।
  • नर्सरी को तेज धूप और वर्षा से बचाने के लिये घास-फूस का शेड बनाना आवश्यक है। sabhar vikipidia

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Wednesday, January 05, 2022

किसान उत्पादक कंपनी स्थापित करें और उद्यमी बनें.

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🔴किसान उत्पादक कंपनी क्या है?

✅किसान उत्पादक कंपनी (FPC) एक कानूनी इकाई है और कंपनी अधिनियम, 1956 और 2013 के तहत पंजीकृत है। एक किसान उत्पादक कंपनी एक ऐसा संगठन है जिसमें कानून द्वारा केवल किसान ही कंपनी के सदस्य हो सकते हैं और किसान सदस्य स्वयं कंपनी का प्रबंधन करते हैं।

✅किसान उत्पादक कंपनी की अवधारणा विभिन्न प्रकार के किसान उत्पादकों, छोटे और सीमांत किसान समूहों, समूहों को एक साथ लाती है ताकि कई चुनौतियों को एक साथ हल किया जा सके और साथ ही साथ किसान उत्पादक कंपनी के माध्यम से एक प्रभावी संगठन तैयार किया जा सके, जैसे कि निवेश करना, नया अद्यतन करना नए बाजार बनाने के साथ-साथ मौजूदा बाजारों तक पहुंच में सुधार, विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों को लेना और विभिन्न प्रकार के उप-उत्पाद बनाने के लिए विनिर्मित वस्तुओं का प्रसंस्करण, कंपनी के माध्यम से क्रय-विक्रय केंद्रों की स्थापना करना, माल की ब्रांडिंग करना कंपनी के सदस्यों द्वारा कंपनी के नाम पर उत्पादित, सदस्यों के प्राथमिक उत्पादों का निर्यात या वस्तुओं या सेवाओं का आयात करना।


✳️किसान उत्पादक कंपनी के पंजीकरण के लिए न्यूनतम आवश्यकता✳️

📌कम से कम 10 किसान सदस्य।

📌10 सदस्यों में से कम से कम 5 निदेशक होने चाहिए।

📌 प्रत्येक सदस्य की 7/12 या खसरा एवं खतावणी प्रतिलेख और किसान होने का प्रमाण आवश्यक है।

📌प्रत्येक सदस्य द्वारा आवश्यक कानूनी दस्तावेजों और अन्य दस्तावेजों को पूरा करना।


✳️भिन्न किसान उत्पादन कंपनियों के लिए उपलब्ध विभिन्न लाभ और योजनाएं क्या हैं?✳️

📌पंजीकरण की तारीख से अगले 5 वर्षों तक किसान उत्पादक कंपनी के मुनाफे पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा।

📌ऑपरेशन ग्रीन को 2019-20 के बजट में मिली मंजूरी

📌किसान उत्पादक कंपनियों को अधिकतम ऋण प्राप्त करने में आसानी

📌नाबार्ड से रियायती दर पर ऋण * विभिन्न परियोजनाओं के लिए उपलब्धता के साथ-साथ अनुदान

ऋण 

📌नाबार्ड के उत्पादक संगठन विकास कोष (पीओडीएफ) से उपलब्ध विभिन्न प्रकार के ऋण

📌अन्य कंपनियों की तुलना में ऋण पर कम ब्याज दर

📌विभिन्न सहकारी समितियों को दी जाने वाली विभिन्न योजनाएं निर्माण कंपनियों को दी जाती हैं।

📌ग्रुप फार्मिंग के साथ-साथ ग्रुप फार्मिंग के लिए आवश्यक तकनीक आसानी से उपलब्ध कराई जाएगी

📌प्रकल्प निर्माण कंपनियों के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा कई परियोजनाएं और योजनाएं शुरू की जाएंगी

📌इक्विटी अनुदान योजना: एसएफएसी, दिल्ली द्वारा विनिर्माण कंपनियों को 15 लाख रुपये तक का इक्विटी अनुदान दिया जाता है।

क्रेडिट गारंटी फंड: SFAC, दिल्ली निर्माण कंपनियों को उनकी परियोजनाओं के 85% तक या अधिकतम रु.

📌टूल बैंक: महाराष्ट्र राज्य में कई टूल बैंक शुरू किए गए हैं और कृषि कंपनियों को किराये के आधार और आसान किश्तों पर विभिन्न प्रकार के उपकरण और मशीनरी प्रदान की जाती हैं।

📌स्मार्ट प्रोजेक्ट: महाराष्ट्र राज्य कृषि व्यवसाय और ग्रामीण परिवर्तन (स्मार्ट) की महत्वाकांक्षी योजना राज्य के 10,000 गांवों में विश्व बैंक और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जाएगी। इस योजना के तहत किसान उत्पादक कंपनियों को विभिन्न परियोजनाएं दी जाएंगी।

📌गैर-ब्याज वाला परियोजना ऋण: अन्नासाहेब पाटिल आर्थिक पिछड़ा विकास निगम रुपये का ब्याज मुक्त परियोजना ऋण प्रदान करेगा।


✅ऑल अबाऊट एफपीओ और कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्था, किसान उत्पादक कंपनियों के पंजीकरण और अन्य कानूनी मामलों के प्रबंधन के क्षेत्र में अग्रणी सेवाएं प्रदान करते हैं। पिछले 10 साल से एफपीओ के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आज तक, संगठन ने राज्य भर में और साथ ही राज्य के बाहर 100 से अधिक किसान उत्पादक कंपनियों को पंजीकृत किया है और उन्हें उनकी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने और विभिन्न योजनाओं और सरकारी अनुदानों का लाभ उठाने में मदद करता है।

✅FPO पंजीकरण के साथ FPO प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ सल्ला मुफ्त परामर्श और प्रश्नों और अन्य सुविधाओं को हल करना।

✅NABARD, NAFED, SFAC, और NCDC जैसे प्रमुख राष्ट्रीय संगठनों के साथ इम्पनलमेंट

✅MANAGE हैदराबाद और YCMOU नासिक का एक मान्यता प्राप्त एफपीओ प्रशिक्षण केंद्र।


✅ALL ABOUT FPO और कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थानों के बारे में किसानों को बहुत कम लागत पर 10 से 15 दिनों के भीतर एक किसान उत्पादक कंपनी (FPC) पंजीकृत करने में मदद करते हैं।

✅किसान उत्पादक कंपनी को पंजीकृत करने और उपरोक्त योजनाओं, अनुदानों और सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए आज ही हमसे संपर्क करें।

धन्यवाद


@ ALL ABOUT FPO कार्यालय: कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्था

मलकापुर, जिला- बुलढाणा 443101

ईमेल आईडी:

1) fporegistration@krushivikas.org

2) sudarshan.krushivikas@gmail.com

संपर्क नंबर: 8329694425

9975795695

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