गेंदा महत्वपूर्ण व लोकप्रिय व्यवसायिक पुष्प है। यह विभिन्न भौगोलिकजलवायु में छाया दार स्थानों पर एवं गृहवाटिका में भी आसानी से साल भर उगाया जासकता है। गेंदा पर कीट व रोगों का प्रकोप भी बहुत कम होता है।
जलवायु-साल भर-तीनों मौसम में खेती सम्भव । अनुकूल तापक्रम 20-38 सेन्टी।
उपयुक्त भूमि-अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान7-7 हो । रोपाई से पहले जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाये।
प्रमुख प्रजातियाँ (मुख्यताः दो)
अफ्रीकन गेंदा (हजारिया) फ्रेंच गेंदा या गेंदी
पौधे ऊंचे, गुथे हुए फुल बौने व छोटे फूल
पूसा बसती. पूसा नारगी. कसन ऑफगोल्ड, येलो सुपीम, डबल आफ्रीकनडबल पीला, कैकर जैक गोल्डन ऐज रस्टीडी.बटर स्कॉच, बटन बॉल,फॉयर ग्लो. रेड बोकार्ड, स्टार ऑफइण्डिया आदि।
बुआई का समय
बीज बोने का समय पौधे लगाने का समय पुष्पन का समय
मध्य जून 15 जुलाई बरसात के अलगे
मध्य सितम्बर 15 अक्टूबर ठण्ड में
जनवरी-फरवरी फरवरी-मार्च गर्मी में
बीज की मात्रा-एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेंद की फसल के लिये 1.5 किग्रा. बीजपर्याप्त होता है। बहुत पुरानाबीज नहीं लेना चाहिए, क्योंकि उनकी अंकुरण घट जाती है।
भूमि की तैयारी-
• बीज बोने से पहले जमीन को 2 प्रतिशत फार्मलीन से उपचारित करें।
• उपचार के बाद जमीन को दो दिन तक पॉलीथीन या प्लास्टिक के बोरे से ढक कररखें।
• अब हमीन को सूखा कर 15 सेमी ऊँची, एक मी. चौड़ी एवं 5-6 मी लम्बी क्यारियाँबनायें।
• दो क्यारियों के मध्य 30 सेमी. का अन्तररखें ताकि पानी देने एवं निराई-गुडाई केकार्य में आसानी रहे।
• नर्सरी / क्यारियों की गुडाई कर 10 किग्रा सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिलायें।
रोपाई, नर्सरी एवं पौध की तैयारी-
• 250-300 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से खाद भूमि में जुताई कर मिला देनीचाहिए।
• अधिक उत्पादन एवं वृद्धि के लिये नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा 12080:80 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
• फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा की तैयारी करते समय अच्छी तरह मिला देनीचाहिए।
• नाइट्रोजन का दो भागें में बांटक भाग क्यारियों में पौध लागाने के लिए एक माहबाद एवं दूसरा भाग दो माह बाद देना चाहिए।
पौधारोपण समय एवं दूरी-
पर्सरी में बीज बोने के 30-35 दिनों में 3-4 पत्तियों वाले पौधे तैयार हो जाते हैं
आफ्रीकन गेंदे हेतु फ्रेंच गेंदे हेत30 सेमी.
कतार से कतार की 45 सेमी 30 सेमी
पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी 30 सेमी
रोपण का कार्य शाम के समय होना चाहिए। नर्सरी में पौध उखाड़ते समय हल्कीसिंचाई करें ताकि उखाड़ते समय पौधे की जड़ों में क्षति ने पहुँचें। रोपाई के बाद भीहल्की सिंचाई आवश्यक है।
सिंचाई-यह अपेक्षाकृत कम पानी की फसल है। सामान्यतः 10-15 दिनों के अन्दर परहल्की सिंचाई करनी चाहिए।
निराई गुड़ाई-आरम्भिक अवस्था में इसका विशेष महत्व है।
पहली गुडाई-रोपण के 20-25 दिन बाद ।
दूसरी गुड़ाई-रोपण के 40-45 दिन बाद। जब भी आवश्यक हो खर-पतवारनियंत्रण आवश्यक करें।
पिचिंग-यह क्रिया पौधे को छोडे, झाड़ीनुमा तथा अधिक शाखाओं वाला बनाने के लिएकी जाती है, जिससे अधिक मात्रा में फूल प्राप्त हो सकें। पौधे को रोपने के बाद जब फूलकी पहली कली दिखाई दे तो उस समय शाखाओं के ऊपरी भाग को तोड़ देते हैं,जिससे नये पौधे पर कई शाखायें निकल आती हैं।
तुड़ाई-2-3 महीने बाद फूल खिलना प्रारम्भ हो जाते हैं। इन्हें तेज चाकू यासिकेटियर से तिरछा काटें। सूखे फूलों को अलग कर दें। तो उस समय में तोड़कर गनीबैग, प्लास्टिक क्रेट या बांस की टोकरियों में पैकिंग कर बाजार भेंजे। टूटे हुये फूलों काछयादार स्थान पर रखकर आवश्यकतानुसार हल्का गीला करते रहें।
पैकेजिंग -आकर्षक पैकेजिंग अच्छा मूल्य दिलाने, क्रय हेतु प्रेरित करने एवं गुणवत्ताव भण्डारण बनाये रखने में सहायक है। कोरोगेटेड पैकेजिंग विशेष उपयोगी है।
उपज-अधिकतम 350 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक । लागत 5-6 गुने से भी अधिक कीप्राप्ति सम्भव।
वीज प्राप्ति-पकने पर सुखाकर उनकी बाहर की एक-दो परत का बीज रखें, शेषफेंक देना चाहिए। ऐसा करने पर पूर्ण खिले हुये पुष्प प्राप्त होते हैं।
प्रमुख रोग एवं कीटों से बचाव
रोग का नाम रोकथाम एवं उपचार
• आई पतन उचपदह वृद्धि नर्सरीअवस्था में बीजों का कम जमाव व पौधोंका टूट कर गिरना। अधिकतम नम व गर्मभूमि पर तेजी से फैलता है। • बीज व भूमि शोधन करें। जल निकासकी समुचित व्यवस्था करे। प्रमाणितपौधों पर मैकोजेब या ताम्रयुक्तरसायन का आवश्यकतानसारछिडकाव करें।
• खर्रा रोग चूकमतल उपसकमूद्धसफेद चूर्ण नुमा फफूदी का जमाव होता है,बढाकर रूक जाती हैएवं पौधासूख जाता है | • संस्तुत कतकनाशी रसायनको पानी मेंघोलकर 15 दिन के अन्तराल परछिड़काव करें। सल्फर पाउडर काभुरकाव करें।
• विषाणु रोग पत्तियाँ चितकबरी होकरमुड हाती है। पुष्प कम एवं छोटे रह जातेहै | • रोगी पौधों को नष्ट कर दें।कीटनाशक रसायनों का छिड़कावकरें।
• मृदु गलन रोग प्रभावित भाग सड़करचिपचिपा एवं गंधयुक्त हो जाता है। • बीजोपचार कर बीज सुखाकर बोये ।खड़ी फसल में स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 100पी.पी.एम. (1 ग्राम. दवा 100 ली पानीमें) का छिड़काव करें।
कीट का नाम रोकथाम एवं उपचार
• कलिकाभेदक ठनह ठवतमतद्ध (हैलियेथिस आर्मीजेरा) इस कीट कीअल्लियाँ पंखुड़ियों को खा जाती हैं। • ग्रसित भाग को नष्ट करें। प्रकोप होने परएन.पी.वी. प्रयोग करें। इण्डोसल्फान याक्यूनलफास 0.07 प्रतिशत का छिड़कावआवश्यकतानुसार करें।
• पूर्ण फुदका (एमरास्का विगुदुला)इनके द्वारा पत्तियों का रस चूसने सेवे सिकुड़कर पीली होकर गिर जाती | • प्रकाश प्रपंच ,स्पहीज ज्तंचद्ध एवंकीटनाशक युक्त चिपकाने वाले ट्रैप लगाये |
• थ्रिप्स पत्तियों का रस यूसकर उन्हें • पूर्ण फुदका की भाँति।
• रेड स्पाइडर माइट फूलों के खिलनेके समय आक्रमण करते हैं। • डाई मिथोएट या मोनो कोटोफास दवा की1 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकरआवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
• हेरी कैटरपिलर पत्तियों को खाता है। • इन्डोसल्फान 1 मिली. मात्रा प्रतिलीटरपानी में आवश्यकतानुसार छिड़कावकरें।
• लीफ स्पॉट एण्ड ब्लाइट पत्तियों परगोल भरे धब्बे बाद में पूरे पौधे को क्षति पहुंचाती है। • मैकोजेब दवा की25 ग्राम मात्रा प्रतिलीटरपानी में घोलकर आवश्यकतानुसार केअनुसार छिड़काव करें। आभार कृषि विभाग उत्तर प्रदेश
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vigyan kee samachaar ke liye dekhe