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Sunday, July 02, 2023

अपर मुख्य सचिव गन्ना सेवा निवृत हुए

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लोक प्रिय गन्ना आयुक्त और अपर मुख्य सचिव सेवा निवृत हुए इन्होने गन्ना विकाश गन्ने के विकास चीनी उत्पादन और ऑनलाइन विभाग को कराए
प्रमुख सचिव खाद्य रसद वीना कुमारी मीणा को प्रमुख सचिव गन्ना एवं आबकारी बनाया गया साथ ही महिला कल्याण का अतिरिक्त प्रभार भी , अपर मुख्य सचिव संजय भुसरेड्डी के रिटायरमेंट के चलते शासन में हुए फेरबदल, प्रमुख सचिव खाद्य एवं रसद विभाग का अतिरिक्त प्रभार प्रमुख सचिव नियोजन आलोक कुमार को ...प्रभु नारायण सिंह को मिली गन्ना आयुक्त की जिम्मेदारी ...जीएस नवीन कुमार बने प्रभारी राहत आयुक्त

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Wednesday, June 28, 2023

घनाजीवामृत के प्रयोग

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आज की जीवन शैली में रसायनिक खादों एवं कीटनाशकों के अधिक उपयोग से भूमि बंजर हो रही है जिससे मृदा का जीवांश कार्बन निम्न स्तर पर जा रहा है। इसलिए आज के समय में जरूरी हो गया है। कि हम घनजीवामृत का उपयोग कर फिर से | अपनी मिट्टी की सेहत सुधारें और प्राकृतिक | खेती के प्रयोग से फसलोत्पादन करें। घनजीवामृत एक अत्यन्त प्रभावशाली जीवाणुयुक्त सूखी खाद है जिसे देशी गाय के गोबर में कुछ अन्य चीजें मिलाकर बनाया जाता है। घनजीवामृत को बोआई के समय खेत में पानी देने के 3 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। घनजीवामृत बनाने की विधिः घनजीवामृत बनाने के लिए 100 किग्रा० देशी गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श पर फेलायें। अब 2 किग्रा० देशी गुड़, 2किग्रा बेसन और सजीव मिट्टी का मिश्रण बनाकर अब थोड़ा-2 गौ मूत्र डालकर अच्छी तरह गूंथ लेंगे जिससे उसका घनजीवामृत बन जायेगा। अब इस तरह तैयार मिश्रण को छाया में 48 घण्टों के लिए अच्छी तरह सुखाकर बोरे से ढक देते हैं। 48 घण्टे बाद | इस मिश्रण का चूर्ण बनाकर भण्डारित कर लेते हैं। घनजीवामृत को 6 महीने तक प्रयोग कर सकते है। घनजीवामृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्रीः सामग्री देशी गाय का गोबर देशी गाय का गौमूत्र गुड़ बेसन मिट्टी (बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी मात्रा 100 किग्रा० 05 ली० 2 किग्रा 2 किग्रा० 1 किग्रा० घनाजीवामृत का प्रयोगः घनजीवामृत का उपयोग किसी भी फसल में कर सकते हैं, घनजीवामृत का उपयोग बहुत ही आसान है इसके प्रयोग के लिए प्रति एकड़ 100 किग्रा० सूखा देशी गाय के गोबर की खाद के साथ 20 किग्राम घनजीवामृत बोवाई के समय खेत में डालते हैं। घनजीवामृत का उपयोग खेत में पानी देने के 3 दिन बाद भी कर सकते हैं। घनजीवामृत से लाभ: ● घनजीवामृत के प्रयोग से किसान रसायनिक खेती की अपेक्षा अधिक फसल उत्पादन ले सकते हैं। घनजीवामृत से बीजों का अंकुरण अधिक मात्रा में होता है । घनजीवामृत के उपयोग से फसलों के दानों की चमक और स्वाद दोनों ही बढ़ते है।

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Sunday, June 25, 2023

Mandaliy Kisan goshti stal in Banda agriculture uni

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जोहाधान:दुनियां का ऐसा चावल है जो कई गंभीर और लाइलाज बीमारियों के रोकथाम

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 #जोहाधान #जोहाचावल #JOHAPADDY #JOHARICE 

यह दुनियां का ऐसा चावल है जो कई गंभीर और लाइलाज बीमारियों के रोकथाम


व इलाज में सबसे कारगर माना गया है। यह चावल असम में जी आई टैग प्राप्त चावल है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा कराए गए एक शोध में इसमें कई ऐसे तत्व पाए गए हैं जो किसी दूसरे चावल में नहीं होता है। इसका नाम है जोहा चावल। यह  किस्म 150-160 दिन में पक कर तैयार होती है।

इसकी अन्य  किस्मों में कोला जोहा (काली जीरा, कोला जोहा 1, कोला जोहा 2, कोला जोहा 3), केटेकी जोहा और बोकुल जोहा के दाने मध्यम पतले प्रकार के होते हैं लेकिन कोन जोहा (कुंकिनी जोहा, माणिकी माधुरी जोहा और कोनजोहा) के दाने छोटे पतले प्रकार के होते हैं. इसे हार्ट, कैंसर, डायबिटीज सहित कई गंभीर बीमारियो में प्रभावी माना जाता है।

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Monday, May 22, 2023

sugarcane farming

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banana cultivation

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Thursday, May 18, 2023

पशुओं के प्रमुख संक्रामक रोग लक्षण एवं बचाव

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एक पशु से दूसरे पशु में फैलने वाले रोग जो वैक्टीरिया, वाइरस से पनपते हैं को संक्रामक रोग कहते हैं । पशुपालक जानते हैं कि संक्रामक रोगों द्वारा दुधारू पशुओं में भारी आर्थिक हानि होती है।


पशुओं के प्रमुख संक्रामक रोग निम्न हैं


। 1- खुरपका-मुहपका रोग (Foot & Mouth Disease) • यह विषाणु जनित संक्रामक रोग हैं।


इस रोग में तेज बुखार आता है जो 40 डिग्री सेन्टीग्रेड तक पहुँचता है।


मुँह में छाले हो जाते हैं व लार टपकती रहती है ।


खुर में घाव हो जाने के कारण पशु एक स्थान पर खड़ा नहीं रह पाता है।


पशु लंगडाकर चलता है।


घाव में कीड़े पड़ जाते हैं ।


मुँह में छाले पड़ जाने के कारण पशु खाना-पानी छोड़ देता है ।


इस रोग के कारण दुग्ध उत्पादन में अत्याधिक कमी आ जाती है । (गर्भपात भी हो जाता है)


बचाव :


प्रदेश में निःशुल्क टीकाकरण किया जाता है।


टीका वर्ष में दो बार लगाया जाता है । (मार्च / अप्रैल एवं सितम्बर / अक्टूबर) बीमार होने पर उपाय : 1


यदि पशु रोग से ग्रसित हो तो स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखना चाहिए। रोगी


से धोना चाहिये तथा खुर 1 प्रतिशत कापर सल्फेट के घोल से धोना चाहिये । 2- रैबीज (Rabies)


पशु का मुँह 2 प्रतिशत फिटकरी के घोल


यह रोग वाइरस जनित है तथा पागल कुत्ते, सियार, नेवले के काटने से होता है।

प्रमुख लक्षण


पशु को उग्र होना । ●


मुँह से लार टपकना ।



● रोगी पशु द्वारा कंकड / मिट्टी को पकड़ कर चबाने का प्रयास करना । ● पशु का लकवा होता है।


पश को लकवा भी हो जाता है ।


ग्रसित पशु के काटने से व लार लगने से मनुष्य में भी यह रोग फैल जाता है।


● रोग संज्ञान में आने पर पशु को अन्य पशुओं से अलग बाँधना चाहिये तथा पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिये ।


3- गला घोटू (Haemorrhagic Septicemia) यह जीवाणु जनित रोग है। इस रोग में 40-41 डिग्री


सेल्सियस तक बुखार होता है।


गले में सूजन आ जाती है। सांस लेने में कठिनाई होती


है तथा घर-घुर की आवाज आती है।


: चिकित्सा न होने पर रोगी पशु की मृत्यु हो जाती है।

यह भी जीवाणु जनित रोग


यह रोग मुख्यतः 6 माह से 2 वर्ष की आयु के स्वस्थ्य पशुओं में अधिक होता है।


प्रमुख लक्षण में :


• तेज बुखार आना


पैर व पुट्ठों में सूजन आना


और सूजन के दबाव से चरचराहट की आवाज आती है। बचाव :


रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में मई-जून में विभाग द्वारा निःशुल्क टीकाकरण विभाग द्वारा लगाया जाता है। .


U बीमार पशुको एन्टी ब्लैक क्वाटर सीरम लगवाना चाहिये ।


· मरे पशु को जमीन में गाड़ देते हैं, जिससे कि अन्य पशुओं में संक्रमण न हो सके।


5 - क्षय रोग (Tuberclosis)


यह जीवाणु जनित रोग है।


प्रमुख लक्षण में :


• रोगी पशु के फेफड़े में गाँठे पड़ जाती हैं।



दुधारू पशु में थन के अन्दर गाँठ सी पड़ जाती है । उपरोक्त लक्षण मिलने पर तत्काल नजदीक के पशुचिकित्सालय में सम्पर्क करें। अन्य


यह रोग आम तौर पर बरसात में होता है परन्तु वर्ष में कमी भी हो सकता है।


बचाव : रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में प्रति वर्ष मई-जून माह में टीका निःशुल्क लगाया जाता है। रोग हो जाने पर बीमार पशु को अलग रखना चाहिये तथा उपचार कराये ग्रसित पशुओं को धुंआ नहीं देना चाहिये तथा खुले स्थान पर रखना चाहिये ।


4- लंगडिया बुखार (Black Quarter)



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