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Friday, May 27, 2022

ड्रैगन फ्रूट (फल) की खेती से लाभ कमाएं

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भावनगर/अहमदाबाद। गुजरात के ड्रैगन फ्रूट (फल) को राज्य सरकार ने "कमलम" नाम दिया है। सरकार के इस निर्णय के बाद से उत्तर गुजरात, सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में इसके उत्पादन में रुचि बढ़ी। भावनगर जिले के वावड़ी गांव के एक किसान ने कम पानी और खर्च करके सिर्फ चार बीघा जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती से 3.5 लाख रुपये की कमाई की है। सौराष्ट्र के भावनगर जिले के वावड़ी गांव के किसान ने रमेशभाई मकवाना पारंपरिक खेती की तुलना में कम पानी में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। रमेशभाई जामनगर से ड्रैगन फ्रूट के पौधे लाए। ड्रैगन फ्रूट के एक पौधे की कीमत 48 रुपये है और वर्तमान में रोपण के 15 महीने बाद फल आते हैं। रमेशभाई ने चार बीघा जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सालाना 3.5 लाख रुपये की कमाई की है। इस संबंध में रमेशभाई ने बताया कि वह भावनगर जिले में पिछले एक-दो साल से ड्रैगन फ्रूट की फसल कर रहे हैं। भावनगर में अवनिया, तलाजा, दिहोर, त्रापज, सीहोर और पालिताना ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है। उन्हाेंने बताया कि गुलाबी, लाल और सफेद रंग की तीन तरह के ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है। उन्होंने बताया कि इस फल से प्रति बीघा 1.10 लाख रुपये तक आमदनी होती है। उल्लेखनीय है कि ड्रैगन फ्रूट की कमल जैसी और कांटेदार कैक्टस प्रजाति स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम फल मानी जाती है। ड्रैगन फ्रूट का इस्तेमाल च्युइंग गम और अन्य जड़ी-बूटियों में भी किया जाता है। इसलिए बाजार में भी काफी तेजी आई है। Sabhar www.sanjeevanitoday.com

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Monday, January 24, 2022

खीरे का निर्यात बढ़ा

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 पहले खीरा और ककड़ी जैसी फसलों की खेती एक खास सीजन में ही होती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्नत किस्मों के बीज और पॉली हाउस जैसे माध्यमों की मदद से अब सालभर खीरा और ककड़ी की खेती होती है। तभी तो भारत दुनिया में ककड़ी और खीरे का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उभरा है। वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार भारत ने अप्रैल-अक्टूबर (2020-21) के दौरान 114 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 1,23,846 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया है। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में कृषि प्रसंस्कृत उत्पाद के निर्यात का 200 मिलियन अमरीकी डालर का आंकड़ा पार कर लिया है, इसे खीरे के अचार बनाने के तौर पर वैश्विक स्तर पर गेरकिंस या कॉर्निचन्स के रूप में जाना जाता है। 2020-21 में, भारत ने 223 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 2,23,515 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया था। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत वाणिज्य विभाग के निर्देशों का पालन करते हुए, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने बुनियादी ढांचे के विकास, वैश्विक बाजार में उत्पाद को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के पालन में कई पहल की हैं। खीरे को दो श्रेणियों ककड़ी और खीरे के तहत निर्यात किया जाता है जिन्हें सिरका या एसिटिक एसिड के माध्यम से तैयार और संरक्षित किया जाता है, ककड़ी और खीरे को अनंतिम रूप से संरक्षित किया जाता है। सबसे पहले कर्नाटक से हुई थी निर्यात की शुरूआत खीरे की खेती, प्रसंस्करण और निर्यात की शुरूआत भारत में 1990 के दशक में कर्नाटक में एक छोटे से स्तर के साथ हुई थी और बाद में इसका शुभारंभ पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी हुआ। विश्व की खीरा आवश्यकता का लगभग 15% उत्पादन भारत में होता है। खीरे को वर्तमान में 20 से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है, जिसमें प्रमुख गंतव्य उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय देश और महासागरीय देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, जापान, बेल्जियम, रूस, चीन, श्रीलंका और इजराइल हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए 65000 एकड़ में होती है खीरे की खेती अपनी निर्यात क्षमता के अलावा, खीरा उद्योग ग्रामीण रोजगार के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में, अनुबंध खेती के तहत लगभग 90,000 छोटे और सीमांत किसानों द्वारा 65,000 एकड़ के वार्षिक उत्पादन क्षेत्र के साथ खीरे की खेती की जाती है। प्रसंस्कृत खीरे को औद्योगिक कच्चे माल के रूप में और खाने के लिए तैयार करके जारों में थोक में निर्यात किया जाता है। थोक उत्पादन के मामले में एक उच्च प्रतिशत का अभी भी खीरा बाजार पर कब्जा है। भारत में ड्रम और रेडी-टू-ईट उपभोक्ता पैक में खीरा का उत्पादन और निर्यात करने वाली लगभग 51 प्रमुख कंपनियां हैं। एपीडा ने प्रसंस्कृत सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह बुनियादी ढांचे के विकास और संसाधित खीरे की गुणवत्ता बढ़ाने, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादों को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणालियों के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। औसतन, एक खीरा किसान प्रति फसल 4 मीट्रिक टन प्रति एकड़ का उत्पादन करता है और 40,000 रुपये की शुद्ध आय के साथ लगभग 80,000 रुपये कमाता है। खीरे में 90 दिन की फसल होती है और किसान वार्षिक रूप से दो फसल लेते हैं। विदेशी खरीदारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए गए हैं। सभी खीरा उत्पादन और निर्यात कंपनियां या तो आईएसओ, बीआरसी, आईएफएस, एफएसएससी 22000 प्रमाणित और एचएसीसीपी प्रमाणित हैं या सभी प्रमाणपत्र रखती हैं। कई कंपनियों ने सोशल ऑडिट को अपनाया है। यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को सभी वैधानिक लाभ दिए जाएं।

Sabhar :
https://www.gaonconnection.com/desh/which-states-maximum-farmers-get-the-benefit-of-msp-it-is-not-haryana-or-punjab-48592?infinitescroll=1

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Wednesday, January 19, 2022

केंचुआ खाद तैयार करने की विधि

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  • जिस कचरे से खाद तैयार की जाना है उसमे से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक हैं।
  • केचुँआ को आधा अपघटित सेन्द्रित पदार्थ खाने को दिया जाता है।
  • भूमि के ऊपर नर्सरी बेड तैयार करें, बेड को लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का व समतल बना लें।
  • इस तह पर 6-7 से0मी0 (2-3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी की तह बिछायें।
  • बालू रेत की इस तह पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की तह बिछायें। दोमट मिट्टी न मिलने पर काली मिट्टी में रॉक पाऊडर पत्थर की खदान का बारीक चूरा मिलाकर बिछायें।
  • इस पर आसानी से अपघटित हो सकने वाले सेन्द्रिय पदार्थ की (नारीयल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल एवं अन्य) दो इंच मोटी सतह बनाई जावे।
  • इसके ऊपर 2-3 इंच पकी हुई गोबर खाद डाली जावे।
  • केचुँओं को डालने के उपरान्त इसके ऊपर गोबर, पत्ती आदि की 6 से 8 इंच की सतह बनाई जावे। अब इसे मोटी टाट् पट्टी से ढांक दिया जावे।
  • झारे से टाट पट्टी पर आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी छिड़कते रहे, ताकि 45 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे। अधिक नमी/गीलापन रहने से हवा अवरूद्ध हो जावेगी और सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुएं कार्य नहीं कर पायेगे और केचुएं मर भी सकते है।
  • नर्सरी बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए।
  • नर्सरी बेड में गोबर की खाद कड़क हो गयी हो या ढेले बन गये हो तो इसे हाथ से तोड़ते रहना चाहिये, सप्ताह में एक बार नर्सरी बेड का कचरा ऊपर नीचे करना चाहिये।
  • 30 दिन बाद छोटे छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जावेंगे।
  • 31 वें दिन इस बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी तह बिछायें और उसे नम करें।
  • इसके बाद हर सप्ताह दो बार कूडे-कचरे की तह पर तह बिछाएं। बॉयोमास की तह पर पानी छिड़क कर नम करते रहें।
  • 3-4 तह बिछाने के 2-3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे कर देवें और नमी बनाए रखें।
  • 42 दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें।
  • इस पद्धति से डेढ़ माह में खाद तैयार हो जाता है यह चाय के पाउडर जैसा दिखता है तथा इसमें मिट्टी के समान सोंधी गंध होती है।
  • खाद निकालने तथा खाद के छोटे-छोटे ढेर बना देवे। जिससे केचुँए, खाद की निचली सतह में रह जावे।
  • खाद हाथ से अलग करे। गैती, कुदाली, खुरपी आदि का प्रयोग न करें।
  • केंचुए पर्याप्त बढ़ गए होंगे आधे केंचुओं से पुनः वही प्रक्रिया दोहरायें और शेष आधे से नया नर्सरी बेड बनाकर खाद बनाएं। इस प्रकार हर 50-60 दिन बाद केंचुए की संख्या के अनुसार एक दो नये बेड बनाए जा सकते हैं और खाद आवश्यक मात्रा में बनाया जा सकता है।
  • नर्सरी को तेज धूप और वर्षा से बचाने के लिये घास-फूस का शेड बनाना आवश्यक है। sabhar vikipidia

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Wednesday, January 05, 2022

किसान उत्पादक कंपनी स्थापित करें और उद्यमी बनें.

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🔴किसान उत्पादक कंपनी क्या है?

✅किसान उत्पादक कंपनी (FPC) एक कानूनी इकाई है और कंपनी अधिनियम, 1956 और 2013 के तहत पंजीकृत है। एक किसान उत्पादक कंपनी एक ऐसा संगठन है जिसमें कानून द्वारा केवल किसान ही कंपनी के सदस्य हो सकते हैं और किसान सदस्य स्वयं कंपनी का प्रबंधन करते हैं।

✅किसान उत्पादक कंपनी की अवधारणा विभिन्न प्रकार के किसान उत्पादकों, छोटे और सीमांत किसान समूहों, समूहों को एक साथ लाती है ताकि कई चुनौतियों को एक साथ हल किया जा सके और साथ ही साथ किसान उत्पादक कंपनी के माध्यम से एक प्रभावी संगठन तैयार किया जा सके, जैसे कि निवेश करना, नया अद्यतन करना नए बाजार बनाने के साथ-साथ मौजूदा बाजारों तक पहुंच में सुधार, विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों को लेना और विभिन्न प्रकार के उप-उत्पाद बनाने के लिए विनिर्मित वस्तुओं का प्रसंस्करण, कंपनी के माध्यम से क्रय-विक्रय केंद्रों की स्थापना करना, माल की ब्रांडिंग करना कंपनी के सदस्यों द्वारा कंपनी के नाम पर उत्पादित, सदस्यों के प्राथमिक उत्पादों का निर्यात या वस्तुओं या सेवाओं का आयात करना।


✳️किसान उत्पादक कंपनी के पंजीकरण के लिए न्यूनतम आवश्यकता✳️

📌कम से कम 10 किसान सदस्य।

📌10 सदस्यों में से कम से कम 5 निदेशक होने चाहिए।

📌 प्रत्येक सदस्य की 7/12 या खसरा एवं खतावणी प्रतिलेख और किसान होने का प्रमाण आवश्यक है।

📌प्रत्येक सदस्य द्वारा आवश्यक कानूनी दस्तावेजों और अन्य दस्तावेजों को पूरा करना।


✳️भिन्न किसान उत्पादन कंपनियों के लिए उपलब्ध विभिन्न लाभ और योजनाएं क्या हैं?✳️

📌पंजीकरण की तारीख से अगले 5 वर्षों तक किसान उत्पादक कंपनी के मुनाफे पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा।

📌ऑपरेशन ग्रीन को 2019-20 के बजट में मिली मंजूरी

📌किसान उत्पादक कंपनियों को अधिकतम ऋण प्राप्त करने में आसानी

📌नाबार्ड से रियायती दर पर ऋण * विभिन्न परियोजनाओं के लिए उपलब्धता के साथ-साथ अनुदान

ऋण 

📌नाबार्ड के उत्पादक संगठन विकास कोष (पीओडीएफ) से उपलब्ध विभिन्न प्रकार के ऋण

📌अन्य कंपनियों की तुलना में ऋण पर कम ब्याज दर

📌विभिन्न सहकारी समितियों को दी जाने वाली विभिन्न योजनाएं निर्माण कंपनियों को दी जाती हैं।

📌ग्रुप फार्मिंग के साथ-साथ ग्रुप फार्मिंग के लिए आवश्यक तकनीक आसानी से उपलब्ध कराई जाएगी

📌प्रकल्प निर्माण कंपनियों के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा कई परियोजनाएं और योजनाएं शुरू की जाएंगी

📌इक्विटी अनुदान योजना: एसएफएसी, दिल्ली द्वारा विनिर्माण कंपनियों को 15 लाख रुपये तक का इक्विटी अनुदान दिया जाता है।

क्रेडिट गारंटी फंड: SFAC, दिल्ली निर्माण कंपनियों को उनकी परियोजनाओं के 85% तक या अधिकतम रु.

📌टूल बैंक: महाराष्ट्र राज्य में कई टूल बैंक शुरू किए गए हैं और कृषि कंपनियों को किराये के आधार और आसान किश्तों पर विभिन्न प्रकार के उपकरण और मशीनरी प्रदान की जाती हैं।

📌स्मार्ट प्रोजेक्ट: महाराष्ट्र राज्य कृषि व्यवसाय और ग्रामीण परिवर्तन (स्मार्ट) की महत्वाकांक्षी योजना राज्य के 10,000 गांवों में विश्व बैंक और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जाएगी। इस योजना के तहत किसान उत्पादक कंपनियों को विभिन्न परियोजनाएं दी जाएंगी।

📌गैर-ब्याज वाला परियोजना ऋण: अन्नासाहेब पाटिल आर्थिक पिछड़ा विकास निगम रुपये का ब्याज मुक्त परियोजना ऋण प्रदान करेगा।


✅ऑल अबाऊट एफपीओ और कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्था, किसान उत्पादक कंपनियों के पंजीकरण और अन्य कानूनी मामलों के प्रबंधन के क्षेत्र में अग्रणी सेवाएं प्रदान करते हैं। पिछले 10 साल से एफपीओ के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आज तक, संगठन ने राज्य भर में और साथ ही राज्य के बाहर 100 से अधिक किसान उत्पादक कंपनियों को पंजीकृत किया है और उन्हें उनकी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने और विभिन्न योजनाओं और सरकारी अनुदानों का लाभ उठाने में मदद करता है।

✅FPO पंजीकरण के साथ FPO प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ सल्ला मुफ्त परामर्श और प्रश्नों और अन्य सुविधाओं को हल करना।

✅NABARD, NAFED, SFAC, और NCDC जैसे प्रमुख राष्ट्रीय संगठनों के साथ इम्पनलमेंट

✅MANAGE हैदराबाद और YCMOU नासिक का एक मान्यता प्राप्त एफपीओ प्रशिक्षण केंद्र।


✅ALL ABOUT FPO और कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थानों के बारे में किसानों को बहुत कम लागत पर 10 से 15 दिनों के भीतर एक किसान उत्पादक कंपनी (FPC) पंजीकृत करने में मदद करते हैं।

✅किसान उत्पादक कंपनी को पंजीकृत करने और उपरोक्त योजनाओं, अनुदानों और सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए आज ही हमसे संपर्क करें।

धन्यवाद


@ ALL ABOUT FPO कार्यालय: कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्था

मलकापुर, जिला- बुलढाणा 443101

ईमेल आईडी:

1) fporegistration@krushivikas.org

2) sudarshan.krushivikas@gmail.com

संपर्क नंबर: 8329694425

9975795695

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Monday, December 20, 2021

बोरियों में अरहर की फसल लगाई

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 ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है, ज्योति गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग समूह की मदद से कृषि विद्यालय में गए थे, जहां पर इसके बारे में पता चला। हम लोगों की पास इतनी जमीन तो होती नहीं कि जहां ट्रैक्टर से जुताई कर पाएं, इसलिए हमें ये बहुत सही लगा है, हमें इसकी पूरी जानकारी दी गई कि कैसे हम अपने घरों-घरों के

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.ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है, ज्योति गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग समूह की मदद से कृषि विद्यालय में गए थे, जहां पर इसके बारे में पता चला। हम लोगों की पास इतनी जमीन तो होती नहीं कि जहां ट्रैक्टर से जुताई कर पाएं, इसलिए हमें ये बहुत सही लगा है, हमें इसकी पूरी जानकारी दी गई कि कैसे हम अपने घरों-घरों के आसपास बोरियों में फसलें लगा सकते हैं। मैंने 200 बोरियों में राहर (अरहर) की फसल लगाई है, जिसमें जमीन से ज्यादा फलियां लगी हैं।" 'जवाहर मॉडल' को जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जिसमें किसान के जुताई जैसे बहुत से खर्चे बच जाते हैं। इसके जरिए किसान अपनी बेकार और बंजर पड़ी जमीन में फसलें उगा सकते हैं, यही नहीं घर की खाली पड़ी छतों पर भी कई तरह की फसलें लगा सकते हैं।

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https://tinyurl.com/


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Wednesday, December 15, 2021

बथुआ के गुणकारी लाभ

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बथुआ साग नहीं एक औषधि है  !

सागों का सरदार है बथुआ, सबसे अच्छा आहार है बथुआ !

बथुआ को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते हैं  !

इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है  !


साग और रायता बना कर बथुआ अनादि काल से खाया जाता रहा है ! लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए पलस्तर में बथुआ मिलाते थे !


हमारी बुजुर्ग महिलायें सिर से ढेरे व फाँस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुए के पानी से बाल धोया करती थीं !


बथुआ गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो हमारा भारत महान है !


बथुए में क्या-क्या है ? मतलब कौन-कौन से विटामिन और मिनरल्स हैं ?

तो सुनें, बथुए में क्या नहीं है !

बथुआ विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और C से भरपूर है तथा बथुए में कैल्शियम, लोहा , मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस , पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं !


100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं ! कुल मिलाकर 43 Kcal होती है !


जब बथुआ मट्ठा, लस्सी या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है ! साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डली हो तो इसे खाने के लिए देवता भी तरसते हैं !


जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डाक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली खाने की सलाह देते हैं ! गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व आयरन की गोली बताई जाती है ! बथुए में वो सब कुछ है ! कहने का मतलब है कि बथुआ पहलवानों से लेकर गर्भवती महिलाओं तक , बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है !


यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती ! बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है ! बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है !


बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें ! नमक न मिलाएँ तो अच्छा है , यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाएँ ! बथुए का उबला हुआ पानी अच्छा लगता है ! तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है !


किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें !

बथुए में जिंक होता है जो कि शुक्राणु वर्धक होता है ! मतलब किसी  को जिस्मानी  कमजोरी हो तो उसको भी दूर कर देता है बथुआ ! बथुआ कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोई भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी ! कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुये का साग मिलता रहे नित्य इसकी सब्जी खाएँ !


बथुये का रस, उबाला हुआ पानी पियें तो यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है ! पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी ! मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें , आधा रहने पर छानकर पी जाएँ , मासिक धर्म खुलकर आएगा ! आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ ! पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें ! बथुए को निचोड़कर पानी निकाल कर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें ! स्वाद के लिए नींबू , जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक डाल लें और पी जाएँ !


आप ने अपने दादा-दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुआ ही है ! मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुआ काम आता है ! हाँ अगर सिर के बाल धोते हैं, क्या करेंगे शेम्पू इसके आगे !


लेकिन अफसोस !


हम ये बातें भूलते जा रहे हैं और इस दिव्य पौधे को नष्ट करने के लिए अपने-अपने खेतों में रासायनिक जहर डालते हैं ! तथाकथित कृषि वैज्ञानिकों (अंग्रेज व काले अंग्रेज) ने बथुए को भी कोंधरा, चौलाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों को खरपतवार की श्रेणी में डाल दिया है और हम भारतीय चूँ भी न कर पाये !

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अरहर की उन्नतशील खेती

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1. खेत का चुनाव - बलुई व दोमट भूमि उपयुक्त । उचित जल निकास तथा हल्के बालू खेत सर्वोत्तम।

2. खेत की तैयारी - पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से । उसके बाद 2-3 जुताई देशी हल से।

3. उन्नतशील प्रजातियाँ-

प्रजाति

बोने का उपयुक्त समय


पकने की अवधि (दिन)

उपज


अगेती प्रजातियाँ

पारस

जून प्रथम सप्ताह 130-140 18-20


यू.पी. ए. एस.-120 तदैव

130-135 16-20


पूसा 992

तदैव

150-160 16-20


टा-21

अप्रैल/जून

160-170 16-20


देर से पकने वाली प्रजातियाँ


बहार

जुलाई 250-260 25-30


अमर

जुलाई 260-270 25-30


नरेन्द्र अरहर-1

जुलाई 260-270 25-30


आजाद

जुलाई 260-270 25-30


पूसा-9

जुलाई 260-270 25-30


पी.डी.ए.-11

सित. का प्र. पखवारा 225-240

18-20


मालवीय-विकास जुलाई

250-270 25-30


मालवीय चमत्कार

(एम.ए.एल-13)

जुलाई

230-250 30-32


नरेन्द्र अरहर-2

जुलाई

240-245 30-32


4. बुवाई का समय-

देर से पकने वाली प्रजातियाँ-जुलाई माह । टा-21 की अप्रैल प्रथम पखवारा

शीघ पकने वाली प्रजातियाँ- जून मध्य तक (अधिक उपज हेतु ग्रीष्म कालीनमूंग के साथ सहफसली)

5.बीज उपचार-

- सर्वप्रथम 1 किग्रा.बीज को 2 ग्राम थीरम, 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 4 ग्रामट्राइकोडरमा +1 ग्राम कारवोक्सिन से उपचारित करें।

- बोने से पहले बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।एक पैकेट 10 किग्रा.बीज हेतु पर्याप्त होता है।

- जहाँ अरहर प्रथम बार बो रहे हो वहाँ कल्चर से उपचारित अवश्य करें।

6. बीज की मात्रा तथा बुवाई विधि-

- बुवाई हल के पीछे कुडों में करें |

-प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुवाई की दूरी निम्न प्रकार रखें:-

-बुवाई के 20-25 दिन बाद पौधे की दूरी, सघन पौधों को निकाल कर (थिनिंग)निश्चित कर दें।

-रिज विधि से बोने पर उपज अधिक होती है।

प्रजाति

बुवाई का समय

बीज की दर किग्रा./हे.

बुआई की दूरी (सेमी)


पंक्ति से पंक्ति पौधे से पौधा

टा-21

(शुद्ध फसल) जून प्र. पखवारा 12-15

60

20


अप्रैल में

मूंग के साथ अप्रैल प्र.पखवारा

12-15

75

20


यू.पी.ए.एस-120

(शुद्ध फसल) मध्य जून

15-20 45-50 15


आईसीपीएल-151 मध्य जून 20-25 50 15

नरेन्द्र-1 जुल.प्र सप्ताह 15-20 60 20

अमर तदैव 15-20 60 20

बहार तदैव 15-20 60 20

आजाद तदैव 15 90 30

मालवीय-13

(चमत्कार) तदैव 15 90 30


पूर्वी उ.प्र. में बाढ़ या लगातार वर्षा के कारण बुवाई में विलम्ब की दशा में सितम्बर के प्रथम पखवारे मे शुद्ध फसल के रुप में मेंडो पर हो सकते हैं परन्तु कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं बीज की मात्रा 20-25 किग्रा./हे) कीदरसे प्रयोग करें।

7. उर्वरकों का प्रयोग-मृदा परीक्षण के आधार पर जथवा 10-15 किग्रा. नत्रजन 40-45 किग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्करहे0 की आवश्यकता होती है। उर्वरक नाईया चोंगा से बीजके नीचे दें। 

सितम्बर में बुवाई हेतु 30-40 किग्रा./हे0 नत्रजन का प्रयोग करें।

8.. सिंचाई - अरहर टा-21, यू.पी.ए.एस.. 120 तथा पूसा-992 को पलेवा करके तथा अन्य प्रजातियों की वर्षाकाल में पर्याप्त नमी होने पर बोयें। कम नमी होने पर एक सिंचाई फलियाँ बनने के समय अक्टूबर में करो। देर से पकने वाली प्रजातियों में पाले से बचाव हेतु दिसम्बर जनवरी माह में सिंचाई करें।

9. निकाई-गुवाई - बुवाई के एक माह के अन्दर निराई करें। दूसरी निवाई पहली के 20 दिन बाद । रसायनिक खरपतवार नियंत्रण निम्नानुसार:

क्र. शाकनाशी का नाम मात्रा प्रति है. (व्यापारिक पदार्य)

1. एलाक्लोर 50 डब्लू.पी.लासो

(बुवाई के दो दिनों में) 4.0 से52 किग्रा.

2. फ्लूक्लोरेलिन 45 ई.सी. बेसालिन

(बुवाई के तुरत पहले सो करने के बाद

मृदा में मिलाकर) 1500-2000 मिली


3.पेडीमिथलीन 30ई.सी. स्टाम्प

(बुवाई के तुरन्त बाद) 2500-3000 मिली


4. आक्सीफ्ल्वोत्केन 235 ई.सी. गोल जारगोन

(बुवाई के तुरन्त बाद) 400-500 मिली


5. क्विजैलोफास 5 ई.सी. टर्गासुपर

(बुवाई के 15-20 दिन बाद)

(केवल घास कुल के खरपतवारों

का नियन्त्रण) 800-1000 मिली


नोट : क्रम 1 से 4 पर अंकित शाकनाशियों द्वारा घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है।

10. फसल सुरक्षा-कीट-

1. पत्ती लपेटक कीट-

पहचान - सूड़ियाँ हल्के पीले रंग की होती हैं, जो पौधे की चोटी (ऊपर की) पत्तियों को लपेट कर सफेद जाला बुनकर उसी में छिपकर , पत्तियों को खाती है। अगेती फसल में यह फूल एवं फलियों को नुकसान पहुंचाती है।

2. अरहर की फली की मक्खी : आर्थिक क्षति स्तर - 5 प्रतिशत प्रकोपित फली पहचान एवं हानि की प्रकृति- यह छोटी चमकदार काले रंग की घरेलू मक्खी की तरह परन्तु आकार में छोटी मक्खी होती है। इसकी मादा फलियों

में बन रहे दानों के पास फलियों के अपने अण्डरोपक की सहायता से अण्डे देती है जिससे निकलने वाली गिडारे फली के अन्दर बन रहे दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है।

3. चने का फली बेधक कीट : आर्थिक क्षति स्तर 2-3 अण्डे या 2-3 नवजात सूंडी या एक पूर्ण विकसित सूंडी प्रति पौधा या 5 से 6 पतंगे प्रति गन्धपास प्रति रात्रि लगातार तीन रात्रि तक 

पहचान एवं हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा पीले बादामी रंग का होता है । अगली जोड़ी पंख पीले भूरे रंग के होते हैं तथा पंख के मध्य में एक काला निशान होता है। पिछले पंख कुछ चौड़े मटमैले सफेद से हल्के रंग के होते हैं तथा किनारे पर काली पट्टी होती है । सूंडिया हरे पीले या भूरे रंग की होती हैं तथा पार्श्व में दोनों तरफ मटमैली सफेद रंग की धारी पायी जाती है । इसकी गिडारे फलियों के अन्दर घुसकर दानों को खाती है।

क्षतिग्रस्त फलियों में छिद्र दिखाई देते हैं।

3. पिच्छकी शलभ (प्यूम माथ) : आर्थिक क्षति स्तर प्रतिशत प्रकोपित फली पहचान एवं हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा आकार में छोटे एवं हल्का पाण्डु वर्गीय होता है, जिसके अगले पंख पिच्छकी होते हैं तथा प्रत्येक पंखों पर दो-दो गहरे धब्बे पाये जाते हैं । पिछले जोड़ी पंखों पर बीच में काटे जैसे शुल्क पाये जाते हैं । कीट की सूड़ियाँ फलियों को पहले ऊपर की सतह से खुरचकर खाती है फिर बाद में छेदकर अन्दर घुस जाती है तथा दानों में छेद बनाकर खाती हैं।

4. फलीवेधक (इटलो जिकनेला) : आर्थिक क्षति स्तर प्रतिशत प्रकोपित फली। 

पहचान एवं हानि की प्रकृति-प्रौढ़ कीट भूरे रंग का चोंच युक्त मुखाग करा होता है । इसके ऊपरी पंख के बीच के किनारों पर पीले सफेद रंग का बैण्ड होता है । पिछले पंख के किनारों पर लाइन पायी जाती है । कीट की सूड़ियाँ फूलों,नई फलियों तथा फलियों में बन रहे बीजों को खाकर नुकसान पहुंचाती है। प्रकोपित कलियाँ रगहीन तथा लिसलिसी हो जाती है जिससे दुर्गन्ध आती है।

5. धर्च दार फलीबेधक (मौरुका टेस्टुलेलिस) : आर्थिक क्षति स्तर 5 प्रतिशत प्रकोपित फली 

पहचान एवं हानि की प्रकृति - इस कीट का शलम भूरे रंग का होता है । इसके अगले पंखो पर दो सफेद धब्बे होते हैं एवं पंख के किनारे पर छोटे-छोटे काले धब्बे एवं लहरियादार धारी होती है । इसके पिछले पंख कुछ कुछ पीले सफेद रंग के होते हैं । और इनके किनारे पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक लहरियादार धब्बे फैले होते हैं । कीट की सूड़ियाँ हरे सफेद रंग की तथा भूरे सिर वाली लगमग दो सेमी लम्बी होती है तथा इनके प्रत्येक खण्ड मे छोटे-छोटे पीले एवं हरे भूरे रंग के रोएं पाये जाते हैं । सूडियां कलिकाओं, फूलों तथा फलियों को जाले से बाँधकर उसमें छेद बनाकर बीज को खा जाती है।

6. अरहर का फलीबेधक (नानागुना ब्रेबियसकुला) : 

पहचान एवं हानि की प्रकृति- नवजात सूडी पीले सफेद एवं गहरे भूरे रंग के सिर वाली होती है । इसकी 6 अवस्थाएं पायी जाती है । तथा इन अवस्थाओं में इनका रंग परिवर्तनीय होता है । पूर्ण विकसित सूड़ी 14 से 17 मिमी. लम्बी हल्के पीले, हल्के भूरे अथवा हल्के सफेद रंग तथा लाल भूरे सिर एवं पार्श्व में पटियायुक्त होती है । ये फलियों को जाले में बांधकर छेइ करती हैं और दानों को खाती हैं।

7. नील तितली (लैम्पीडस प्रजातियाँ)

पहचान एवं हानि की प्रकृति- पूर्ण विकसित सूंडी पीली हरी, लाल तथा हल्के हरे रंग की होती है तथा इनके शरीर की निचली सतह छोटे-छोटे बालों से ढकी होती है । प्रौढ़ तितली आसमानी नीले रंग की होती है । इसकी सूड़ियाँ फलियों को छेदकर उनके दानों को नुकसान पहुंचाती हैं ।

8. माहू (एफिस केक्सीवोरा) :

पहचान एवं हानि की प्रकृति- यह एफिड गहरे कत्थई अथवा काले रंग की बिना पंख अथवा पंख वाली होती है । एक मादा 8-30 बच्चों को जन्म देती है तथा इनका जीवनकाल 10-12 दिन का होता है । इसके शिशु एवं प्रौढ पौधे के विभिन्न भागों विशेषकर फूलों एवं फलियों के रस चूसकर हानि करते हैं।

9. अरहर फली बग:

पहचान एवं हानि की प्रकृति - प्रौढ़ बग लगभग दो सेन्टीमीटर लम्बा कुछ हरे भूरे रंग का होता है । इसके शीर्ष पर शूल युक्त, प्रवक्ष पृष्ठक पाया जाता है । उदर प्रोथ पर मजबूत काँटे होते हैं । इसके शिशु एवं प्रौढ़ अरहर के तने, पत्तियों एवं पुष्पों एवं फलियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं | प्रकोपित फलियों पर हल्के रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा अत्याधिक प्रकोप होने पर फलियाँ सिकुड़ जाती हैं एवं दाने छोटे रह जाते हैं।

कम अवधि के अरहर की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन-

1. अरहर के खेत में चिडियों के बैठने के लिये बांस की लकड़ी का 'टी' आकार की 10 खपच्ची/हे0 के हिसाब से गाड़ दें।

2. जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों और फली बनना शुरु हो गयी हो उस समय इन्डोसल्फान 0.07% घोल का छिड़काव करें।

3. प्रथम छिडकाव के 15 दिन पश्चात एच.एप.पी.वी. का 500 एल. ई./हे.के हिसाब से छिड़काव करें।

मध्यम एवं लम्बी अवधि की अरहर की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन-

1. जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों और फली बनना शुरु हो गया हों उस समय मोनोक्रोटोफास 0.045 घोल का छिड़काव करें।

2. प्रथम छिड़काव के 10-15 दिन बाद डाईमेथोएट 0.03% घोल का छिड़काव करें।

3. द्वितीय छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात् आवश्यकतानुसार 5% निबोली के अर्क या नीम के किसी प्रभावी कीटनाशक का छिड़काव करें।

अरहर की फसल पर कीट नियंत्रण

(अ)कर्षण नियंत्रण :

1. शीघ्र पकने वाली प्रजातियों क्रमशःटा-21यू.पी.ए.एस.-120 को फली बेधकों से देर से पकने वाली प्रजातियों (टी-7 व टी-17) में कम हानि होती है। उत्तर भारत में मध्यम समय में पकने वाली प्रजाति जैसे बहार, चना फली बेधक के प्रकोप से बच जाती है।

2. गर्मियों में अरहर की पेड़ी या इधर-उधर उगे पौधों को नष्ट के देना चाहिये।

3. कफोलो भृग को हाथ से चुनकर तथा फली बग को झाड़कर इकट्ठा करके नष्ट कर दें।

(ब) रासायनिक नियंत्रण :

1. फली बेधक का नियंत्रण करने के लिये इन्डोसल्फान (0.07 प्रतिशत) या डाइमेथोएट (0.03 प्रतिशत) का प्रयोग करना चाहिये। जहां फली बेधक मक्खी समस्या हो, डाईमेथोएट को प्राथमिकता दे।.

मुख्य बिन्दु-

1. बीज शोधन अवश्य करें।

2. सिंगल सुपरफास्ट का (फास्फोरस एवं गन्धक हेतु) प्रयोग करें।

3. समय से बुवाई करें।

4. फली वेधक/फल मक्खी का नियंत्रण जरुर करें।

5. बिरलीकरण अवश्य करें।

6. मेंड़ों पर बुवाई करें।

7. फूल आते समय मोनोक्रोटोफास का एक छिड़काव करें। 

Sabha up govt agriculture 


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