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Wednesday, December 15, 2021

अरहर की उन्नतशील खेती

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1. खेत का चुनाव - बलुई व दोमट भूमि उपयुक्त । उचित जल निकास तथा हल्के बालू खेत सर्वोत्तम।

2. खेत की तैयारी - पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से । उसके बाद 2-3 जुताई देशी हल से।

3. उन्नतशील प्रजातियाँ-

प्रजाति

बोने का उपयुक्त समय


पकने की अवधि (दिन)

उपज


अगेती प्रजातियाँ

पारस

जून प्रथम सप्ताह 130-140 18-20


यू.पी. ए. एस.-120 तदैव

130-135 16-20


पूसा 992

तदैव

150-160 16-20


टा-21

अप्रैल/जून

160-170 16-20


देर से पकने वाली प्रजातियाँ


बहार

जुलाई 250-260 25-30


अमर

जुलाई 260-270 25-30


नरेन्द्र अरहर-1

जुलाई 260-270 25-30


आजाद

जुलाई 260-270 25-30


पूसा-9

जुलाई 260-270 25-30


पी.डी.ए.-11

सित. का प्र. पखवारा 225-240

18-20


मालवीय-विकास जुलाई

250-270 25-30


मालवीय चमत्कार

(एम.ए.एल-13)

जुलाई

230-250 30-32


नरेन्द्र अरहर-2

जुलाई

240-245 30-32


4. बुवाई का समय-

देर से पकने वाली प्रजातियाँ-जुलाई माह । टा-21 की अप्रैल प्रथम पखवारा

शीघ पकने वाली प्रजातियाँ- जून मध्य तक (अधिक उपज हेतु ग्रीष्म कालीनमूंग के साथ सहफसली)

5.बीज उपचार-

- सर्वप्रथम 1 किग्रा.बीज को 2 ग्राम थीरम, 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 4 ग्रामट्राइकोडरमा +1 ग्राम कारवोक्सिन से उपचारित करें।

- बोने से पहले बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।एक पैकेट 10 किग्रा.बीज हेतु पर्याप्त होता है।

- जहाँ अरहर प्रथम बार बो रहे हो वहाँ कल्चर से उपचारित अवश्य करें।

6. बीज की मात्रा तथा बुवाई विधि-

- बुवाई हल के पीछे कुडों में करें |

-प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुवाई की दूरी निम्न प्रकार रखें:-

-बुवाई के 20-25 दिन बाद पौधे की दूरी, सघन पौधों को निकाल कर (थिनिंग)निश्चित कर दें।

-रिज विधि से बोने पर उपज अधिक होती है।

प्रजाति

बुवाई का समय

बीज की दर किग्रा./हे.

बुआई की दूरी (सेमी)


पंक्ति से पंक्ति पौधे से पौधा

टा-21

(शुद्ध फसल) जून प्र. पखवारा 12-15

60

20


अप्रैल में

मूंग के साथ अप्रैल प्र.पखवारा

12-15

75

20


यू.पी.ए.एस-120

(शुद्ध फसल) मध्य जून

15-20 45-50 15


आईसीपीएल-151 मध्य जून 20-25 50 15

नरेन्द्र-1 जुल.प्र सप्ताह 15-20 60 20

अमर तदैव 15-20 60 20

बहार तदैव 15-20 60 20

आजाद तदैव 15 90 30

मालवीय-13

(चमत्कार) तदैव 15 90 30


पूर्वी उ.प्र. में बाढ़ या लगातार वर्षा के कारण बुवाई में विलम्ब की दशा में सितम्बर के प्रथम पखवारे मे शुद्ध फसल के रुप में मेंडो पर हो सकते हैं परन्तु कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं बीज की मात्रा 20-25 किग्रा./हे) कीदरसे प्रयोग करें।

7. उर्वरकों का प्रयोग-मृदा परीक्षण के आधार पर जथवा 10-15 किग्रा. नत्रजन 40-45 किग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्करहे0 की आवश्यकता होती है। उर्वरक नाईया चोंगा से बीजके नीचे दें। 

सितम्बर में बुवाई हेतु 30-40 किग्रा./हे0 नत्रजन का प्रयोग करें।

8.. सिंचाई - अरहर टा-21, यू.पी.ए.एस.. 120 तथा पूसा-992 को पलेवा करके तथा अन्य प्रजातियों की वर्षाकाल में पर्याप्त नमी होने पर बोयें। कम नमी होने पर एक सिंचाई फलियाँ बनने के समय अक्टूबर में करो। देर से पकने वाली प्रजातियों में पाले से बचाव हेतु दिसम्बर जनवरी माह में सिंचाई करें।

9. निकाई-गुवाई - बुवाई के एक माह के अन्दर निराई करें। दूसरी निवाई पहली के 20 दिन बाद । रसायनिक खरपतवार नियंत्रण निम्नानुसार:

क्र. शाकनाशी का नाम मात्रा प्रति है. (व्यापारिक पदार्य)

1. एलाक्लोर 50 डब्लू.पी.लासो

(बुवाई के दो दिनों में) 4.0 से52 किग्रा.

2. फ्लूक्लोरेलिन 45 ई.सी. बेसालिन

(बुवाई के तुरत पहले सो करने के बाद

मृदा में मिलाकर) 1500-2000 मिली


3.पेडीमिथलीन 30ई.सी. स्टाम्प

(बुवाई के तुरन्त बाद) 2500-3000 मिली


4. आक्सीफ्ल्वोत्केन 235 ई.सी. गोल जारगोन

(बुवाई के तुरन्त बाद) 400-500 मिली


5. क्विजैलोफास 5 ई.सी. टर्गासुपर

(बुवाई के 15-20 दिन बाद)

(केवल घास कुल के खरपतवारों

का नियन्त्रण) 800-1000 मिली


नोट : क्रम 1 से 4 पर अंकित शाकनाशियों द्वारा घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है।

10. फसल सुरक्षा-कीट-

1. पत्ती लपेटक कीट-

पहचान - सूड़ियाँ हल्के पीले रंग की होती हैं, जो पौधे की चोटी (ऊपर की) पत्तियों को लपेट कर सफेद जाला बुनकर उसी में छिपकर , पत्तियों को खाती है। अगेती फसल में यह फूल एवं फलियों को नुकसान पहुंचाती है।

2. अरहर की फली की मक्खी : आर्थिक क्षति स्तर - 5 प्रतिशत प्रकोपित फली पहचान एवं हानि की प्रकृति- यह छोटी चमकदार काले रंग की घरेलू मक्खी की तरह परन्तु आकार में छोटी मक्खी होती है। इसकी मादा फलियों

में बन रहे दानों के पास फलियों के अपने अण्डरोपक की सहायता से अण्डे देती है जिससे निकलने वाली गिडारे फली के अन्दर बन रहे दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है।

3. चने का फली बेधक कीट : आर्थिक क्षति स्तर 2-3 अण्डे या 2-3 नवजात सूंडी या एक पूर्ण विकसित सूंडी प्रति पौधा या 5 से 6 पतंगे प्रति गन्धपास प्रति रात्रि लगातार तीन रात्रि तक 

पहचान एवं हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा पीले बादामी रंग का होता है । अगली जोड़ी पंख पीले भूरे रंग के होते हैं तथा पंख के मध्य में एक काला निशान होता है। पिछले पंख कुछ चौड़े मटमैले सफेद से हल्के रंग के होते हैं तथा किनारे पर काली पट्टी होती है । सूंडिया हरे पीले या भूरे रंग की होती हैं तथा पार्श्व में दोनों तरफ मटमैली सफेद रंग की धारी पायी जाती है । इसकी गिडारे फलियों के अन्दर घुसकर दानों को खाती है।

क्षतिग्रस्त फलियों में छिद्र दिखाई देते हैं।

3. पिच्छकी शलभ (प्यूम माथ) : आर्थिक क्षति स्तर प्रतिशत प्रकोपित फली पहचान एवं हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा आकार में छोटे एवं हल्का पाण्डु वर्गीय होता है, जिसके अगले पंख पिच्छकी होते हैं तथा प्रत्येक पंखों पर दो-दो गहरे धब्बे पाये जाते हैं । पिछले जोड़ी पंखों पर बीच में काटे जैसे शुल्क पाये जाते हैं । कीट की सूड़ियाँ फलियों को पहले ऊपर की सतह से खुरचकर खाती है फिर बाद में छेदकर अन्दर घुस जाती है तथा दानों में छेद बनाकर खाती हैं।

4. फलीवेधक (इटलो जिकनेला) : आर्थिक क्षति स्तर प्रतिशत प्रकोपित फली। 

पहचान एवं हानि की प्रकृति-प्रौढ़ कीट भूरे रंग का चोंच युक्त मुखाग करा होता है । इसके ऊपरी पंख के बीच के किनारों पर पीले सफेद रंग का बैण्ड होता है । पिछले पंख के किनारों पर लाइन पायी जाती है । कीट की सूड़ियाँ फूलों,नई फलियों तथा फलियों में बन रहे बीजों को खाकर नुकसान पहुंचाती है। प्रकोपित कलियाँ रगहीन तथा लिसलिसी हो जाती है जिससे दुर्गन्ध आती है।

5. धर्च दार फलीबेधक (मौरुका टेस्टुलेलिस) : आर्थिक क्षति स्तर 5 प्रतिशत प्रकोपित फली 

पहचान एवं हानि की प्रकृति - इस कीट का शलम भूरे रंग का होता है । इसके अगले पंखो पर दो सफेद धब्बे होते हैं एवं पंख के किनारे पर छोटे-छोटे काले धब्बे एवं लहरियादार धारी होती है । इसके पिछले पंख कुछ कुछ पीले सफेद रंग के होते हैं । और इनके किनारे पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक लहरियादार धब्बे फैले होते हैं । कीट की सूड़ियाँ हरे सफेद रंग की तथा भूरे सिर वाली लगमग दो सेमी लम्बी होती है तथा इनके प्रत्येक खण्ड मे छोटे-छोटे पीले एवं हरे भूरे रंग के रोएं पाये जाते हैं । सूडियां कलिकाओं, फूलों तथा फलियों को जाले से बाँधकर उसमें छेद बनाकर बीज को खा जाती है।

6. अरहर का फलीबेधक (नानागुना ब्रेबियसकुला) : 

पहचान एवं हानि की प्रकृति- नवजात सूडी पीले सफेद एवं गहरे भूरे रंग के सिर वाली होती है । इसकी 6 अवस्थाएं पायी जाती है । तथा इन अवस्थाओं में इनका रंग परिवर्तनीय होता है । पूर्ण विकसित सूड़ी 14 से 17 मिमी. लम्बी हल्के पीले, हल्के भूरे अथवा हल्के सफेद रंग तथा लाल भूरे सिर एवं पार्श्व में पटियायुक्त होती है । ये फलियों को जाले में बांधकर छेइ करती हैं और दानों को खाती हैं।

7. नील तितली (लैम्पीडस प्रजातियाँ)

पहचान एवं हानि की प्रकृति- पूर्ण विकसित सूंडी पीली हरी, लाल तथा हल्के हरे रंग की होती है तथा इनके शरीर की निचली सतह छोटे-छोटे बालों से ढकी होती है । प्रौढ़ तितली आसमानी नीले रंग की होती है । इसकी सूड़ियाँ फलियों को छेदकर उनके दानों को नुकसान पहुंचाती हैं ।

8. माहू (एफिस केक्सीवोरा) :

पहचान एवं हानि की प्रकृति- यह एफिड गहरे कत्थई अथवा काले रंग की बिना पंख अथवा पंख वाली होती है । एक मादा 8-30 बच्चों को जन्म देती है तथा इनका जीवनकाल 10-12 दिन का होता है । इसके शिशु एवं प्रौढ पौधे के विभिन्न भागों विशेषकर फूलों एवं फलियों के रस चूसकर हानि करते हैं।

9. अरहर फली बग:

पहचान एवं हानि की प्रकृति - प्रौढ़ बग लगभग दो सेन्टीमीटर लम्बा कुछ हरे भूरे रंग का होता है । इसके शीर्ष पर शूल युक्त, प्रवक्ष पृष्ठक पाया जाता है । उदर प्रोथ पर मजबूत काँटे होते हैं । इसके शिशु एवं प्रौढ़ अरहर के तने, पत्तियों एवं पुष्पों एवं फलियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं | प्रकोपित फलियों पर हल्के रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा अत्याधिक प्रकोप होने पर फलियाँ सिकुड़ जाती हैं एवं दाने छोटे रह जाते हैं।

कम अवधि के अरहर की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन-

1. अरहर के खेत में चिडियों के बैठने के लिये बांस की लकड़ी का 'टी' आकार की 10 खपच्ची/हे0 के हिसाब से गाड़ दें।

2. जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों और फली बनना शुरु हो गयी हो उस समय इन्डोसल्फान 0.07% घोल का छिड़काव करें।

3. प्रथम छिडकाव के 15 दिन पश्चात एच.एप.पी.वी. का 500 एल. ई./हे.के हिसाब से छिड़काव करें।

मध्यम एवं लम्बी अवधि की अरहर की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन-

1. जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों और फली बनना शुरु हो गया हों उस समय मोनोक्रोटोफास 0.045 घोल का छिड़काव करें।

2. प्रथम छिड़काव के 10-15 दिन बाद डाईमेथोएट 0.03% घोल का छिड़काव करें।

3. द्वितीय छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात् आवश्यकतानुसार 5% निबोली के अर्क या नीम के किसी प्रभावी कीटनाशक का छिड़काव करें।

अरहर की फसल पर कीट नियंत्रण

(अ)कर्षण नियंत्रण :

1. शीघ्र पकने वाली प्रजातियों क्रमशःटा-21यू.पी.ए.एस.-120 को फली बेधकों से देर से पकने वाली प्रजातियों (टी-7 व टी-17) में कम हानि होती है। उत्तर भारत में मध्यम समय में पकने वाली प्रजाति जैसे बहार, चना फली बेधक के प्रकोप से बच जाती है।

2. गर्मियों में अरहर की पेड़ी या इधर-उधर उगे पौधों को नष्ट के देना चाहिये।

3. कफोलो भृग को हाथ से चुनकर तथा फली बग को झाड़कर इकट्ठा करके नष्ट कर दें।

(ब) रासायनिक नियंत्रण :

1. फली बेधक का नियंत्रण करने के लिये इन्डोसल्फान (0.07 प्रतिशत) या डाइमेथोएट (0.03 प्रतिशत) का प्रयोग करना चाहिये। जहां फली बेधक मक्खी समस्या हो, डाईमेथोएट को प्राथमिकता दे।.

मुख्य बिन्दु-

1. बीज शोधन अवश्य करें।

2. सिंगल सुपरफास्ट का (फास्फोरस एवं गन्धक हेतु) प्रयोग करें।

3. समय से बुवाई करें।

4. फली वेधक/फल मक्खी का नियंत्रण जरुर करें।

5. बिरलीकरण अवश्य करें।

6. मेंड़ों पर बुवाई करें।

7. फूल आते समय मोनोक्रोटोफास का एक छिड़काव करें। 

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