आज आपका परिचय होगा एक और कीट "सफ़ेद मक्खी" से जिसकी वजह से पौधों में दोहरा नुकसान होता है स्वयं रस चूसकर तो पौधे को नष्ट करता ही है साथ में वायरस जनित बीमारियों को फैलाने में इसका मुख्य योगदान होता है। सफ़ेद मक्खियाँ एक प्रकार के की छोटी रस-चूसने वाली कीट हैं। सफ़ेद मख्खी अपने छोटे आकार, सफेद या हल्के पीले रंग और तेजी से प्रजनन करने की क्षमता के लिए जानी जाती है। इसकी कई प्रजातियां है जिनके होस्ट प्लांट की प्राथमिकताएं अलग अलग है। कृषि और बागवानी फसलों का एक मुख्य कीट है। सफ़ेद मक्खियाँ सब्जियों, फलों, सजावटी पौधों और फसलों सहित पौधे की अनेकों प्रजातियों को प्रभावित करती है। कपास, भिंडी, गुड़हल, मिर्च, टमाटर, बेंगन, गुलाब, कद्दू वर्गीय सब्जियां, पपीता और सजावटी फूलों के पौधे सम्मिलित है।
नुकसान का तरीका : सफ़ेद मक्खियाँ पौधों के फ्लोएम ऊतक में छेद करके और रस निकालकर उन्हें खाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की बढ़वार रुक जाती है। सफ़ेद मख्खी का भारी संक्रमण होने पर पोषक तत्वों और ऊर्जा की हानि के कारण पौधों का विकास रुक जाता है। संक्रमित पौधों में अक्सर पोषक तत्वों की कमी और सफेद मक्खी द्वारा लाए गए पौधों के वायरस के संचरण के कारण पीलापन, मुरझाना और पत्तियां गिरने के लक्षण दिखाई देते हैं। वायरस जनित बीमारियों को फैलाने में इसका मुख्य योगदान रहता है, मोजेक, लीफ कर्ल, रिंग स्पॉट जैसे वायरस जनित रोग इसी से फैलते है। समय पर इस कीट का नियंत्रण वायरस जनित बिमारियों से पौधों को बचाये रखता है। इसके अलावा इनके द्वारा निकाला गया मल हनी ड्यू होता है जिस पर सूटी मोल्ड (एक प्रकार की काली फफूंद) आती है और ये काली फफूंद पत्तियों को ढक कर प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करती है।
जीवन चक्र : सफ़ेद मक्खियों का जीवन चक्र छोटा होता है जिसमें कई चरण होते हैं। मख्खियां आमतौर पर पत्तियों की निचली सतह पर गोलाकार अंडे देती है जो शुरू में पीले होते हैं लेकिन विकसित होते-होते गहरे हो जाते हैं। अंडे सेने के बाद, निम्फ, जिन्हें अक्सर क्रॉलर कहा जाता है, भोजन करने के लिए पहले इधर-उधर घूमते हैं। जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, वे कई चरणों से गुजरते हैं। निम्फ अंततः प्यूपा में बदल जाते हैं, जिसके दौरान वे कम गतिशील होकर स्थिर रहते हैं और अक्सर एक सुरक्षात्मक मोमी पदार्थ से ढके हुए दिखाई देते हैं। विकास पूरा होने पर वयस्क सफेद मक्खियाँ प्यूपा से निकलती हैं जो अपनी अगली पीढ़ी के लिए प्रजनन करती है।
नियंत्रण के उपाय : सफ़ेद मख्खी द्वारा विभिन्न कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोध विक्सित होते हुए देखा गया है। इसका मुख्य कारण इनका छोटा जीवन चक्र और अनियंत्रित कीटनाशियों का उपयोग, अधिक मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग जैसे कारण मुख्य है। इसके नियंत्रण और होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने के लिए निश्चित रूप से इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट की विधियों को अपनाये जाने की आवश्यकता है। इस कीट के प्रभाव को इस बात से देखा जा सकता है की मिर्च और कपास उगाने वाले किसान इसके नियंत्रण के लिए सर्वाधिक कीटनाशकों का उपयोग करते है।
1. कृषिगत उपाय : नियमित रूप से निगरानी करें, पौधों में हवा और प्रकाश का संचार सही रहे इसके लिए फसल को ज्यादा घना नहीं लगाएं, सफ़ेद मख्खी के लिए अनुकूल वातावरण को कम करने के लिए पौधों को उचित स्थान दें और उनकी छँटाई करें। प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।
2. भौतिक उपाय : नर्सरी में पौधों को बचाव के लिए नेट का उपयोग करें।
3. जैविक नियंत्रण: सफ़ेद मख्खी की जनसँख्या को नियंत्रित करने में शिकारी कीटो का बहुत बड़ा योगदान है। सफ़ेद मख्खी के प्राकृतिक शिकारी कीटो जैसे लेडीबग्स, लेसविंग्स, परजीवी ततैया और शिकारी बग्स को संरक्षित करें।
4. चिपचिपे ट्रैप का प्रयोग : पीले चिपचिपे ट्रैप्स सफ़ेद मख्खी की संख्या को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। खेत में इनका प्रयोग मख्खियों की संख्या को नियंत्रित रखता है।
5. रासायनिक नियंत्रण : जैसा की पहले भी लिखा है यह कीट कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोध विकसित करने की क्षमता रखता है। इसके लिए जैविक और रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग बदल बदल कर किया जाना चाहिए। कीटनाशक और पानी की मात्रा हमेशा अनुशंसित दर पर ली जानी चाहिए। छिड़काव के अंतराल का पालन आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। अंतर्प्रवाही या सिस्टमिक कीटनाशी का उपयोग लाभकारी रहता है।
नोट : मिर्च, टमाटर, पपीता जैसे पौधों में सफ़ेद मख्खी का आक्रमण नर्सरी अवस्था में ही हो जाता है और आप वायरस ग्रसित पौधा ही अपने खेत में लगाते है। यदि आप नर्सरी में सही तरीके से इसको नियंत्रित कर लेते है तो खेत में बिमारी आने की सम्भावना को बहुत हद तक कम कर देते है।
#अथ_श्री
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