June 22, 2022 in
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•वर्तमान मौसम को ध्यान में रखते हुए किसानों को धान की नर्सरी तैयारी करने की सलाह है। एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई करने हेतु लगभग 800-1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में पौध तैयार करना पर्याप्त होता है। नर्सरी के क्षेत्र को 25 से 1.5 मीटर चौडी तथा सुविधानुसार लम्बी क्यारियों में बाँटे। पौधशाला में बुवाई से पूर्व बीजोपचार के लिए 5.0 किलोग्राम बीज के लिए बावस्टिन 10-12 ग्राम और 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन को 10 लीटर पानी में घोल लें। आवश्यकतानुसार इस घोल को बनाकर इसमें 12-15 घण्टे के लिए बीज को डाल दें। उसके बाद बीज को बाहर निकालकर किसी छायादार स्थान में 24-36 घण्टे के लिए ढककर रखें और पानी का हल्का-हल्का छिडकाव करते रहें। बीज में अंकुर निकलने के बाद पौधशाला में छिडक दें। अधिक उपज देने वाली किस्में:- पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1885, पूसा बासमती 1886, पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1637, पूसा 44, पूसा 1718, पूसा बासमती 1401, पूसा सुगंध 5, पूसा सुगंध 4 (पूसा 1121), पंत धान 4, पंत धान 10।
•खरीफ मक्का की बुवाई के लिए खेतों की तैयारी करें, साथ ही उन्नतशील संस्तुति संकुल प्रजातियां- कंचन, गौरव,स्वेता, आजाद उत्तम एवं संकर प्रजातियां- प्रकाश, वाई -1402, बायो-9681, प्रो -316, डी-9144, दिकाल्ब- 7074, पीएचबी-8144, दक्कन 115, एम.एम.एच.-133 आदि में से एक किसी एक प्रजाति की बुवाई के लिए खाद एवं बीज की व्यवस्था करें। मक्के की संकुल प्रजाति की बुवाई के लिए 20 -25 किलोग्राम बीज/हेक्टयर तथा शंकर प्रजाति 18 -20 किलोग्राम बीज / हेक्टेयर की दर से बुवाई करें।
•अरहर की बुवाई इस सप्ताह कर सकते है। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखें। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। अच्छे अंकुरण के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। किसानों से यह आग्रह है कि वे बीजों को बोने से पहले अरहर के लिए उपयुक्त राईजोबियम तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं (पीएसबी)फँफूद के टीकों से उपचार कर लें। इस उपचार से फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है। उप्युक्त किस्में:- पूसा अरहर-16, पूसा 2001, पूसा 2002, पूसा 991, पूसा 992, पारस तथा मानक।
•यह समय चारे के लिए ज्वार की बुवाई के लिए उप्युक्त हैं अतः किसान पूसा चरी-9, पूसा चरी-6 या अन्य सकंर किस्मों की बुवाई करें बीज की मात्रा 40 किलोग्राम/हैक्टर रखें तथा लोबिया की बुवाई का भी यह उप्युक्त समय है।
*फसल सुरक्षा:*
•धान की पौधशाला मे यदि पौधों का रंग पीला पड रहा है तो इसमे लौह तत्व की कमी हो सकती है। पौधों की ऊपरी पत्तियॉ यदि पीली और नीचे की हरी हो तो यह लौह तत्व की कमी दर्शाता है। इसके लिए 0.5 % फेरस सल्फेट +0.25 % चूने के घोल का छिडकाव करें।
•बैगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी के पौध की बुवाई करे। मिर्च के खेत में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दें। उसके उपरांत इमिडाक्लोप्रिड @ 0.3 मि.ली./लीटर की दर से छिड़काव करें।
•फलों के नऐ बाग लगाने वाले गड्डों की खुदाई कर उनको खुला छोड दें ताकि हानिकरक कीटो-रोगाणु तथा खरपतवार के बीज आदि नष्ट हो जाए।आम, अमरूद, नींबू, बेर, अंगूर, पपीता व लीची आदि के बागों में सिंचाई का कार्य करें।
पशु पालन:
•पशुओ को दिन के समय छायादार और सुरक्षित स्थानों मे बाँधे। पशुशाला मे बोरे का पर्दा डाले और उस पर पानी छिड़काव कर ठंडा रखे। पशुओं को पीने के लिए पर्याप्त मात्रा मे ताजा और शुद्ध पानी उपलब्ध कराएं। तेज़ धूप से काम करके आए पशुओं को तुरंत पानी न पिलाए, आधा घंटे सुस्ताने के बाद पानी पिलाए। पशुओं को सुबह और शाम नहलाए।
•पेट मे कीड़ों से बचाव हेतु पशुओं को कृमिनाशक दवा का पान कराए। खुरपका-मुँहपका रोग की रोकथाम हेतु एफ.एम.डी. वैक्सीन से तथा लंगड़िया बुखार की रोकथाम हेतु बी.क्यू. वैक्सीन से पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराए। पशुओं मे गलाघोटूँ एवं फड़ सूजन के रोकथाम हेतु टीकाकरण कराए। शाम के समय पशुओं के पास नीम की पत्तियों का धुआँ करे ताकि मच्छर व मक्खी भाग जाए।
*मुर्गी पालन:*
किसानों को सलाह दी जाती है कि वे मुर्गियों को भोजन में पूरक आहार, विटामिन और ऊर्जा खाद्य सामग्री मिलाएं और साथ ही साथ कैल्शियम सामग्री भी मुर्गियों को दें। मुर्गियों के पेट में कीड़ो की रोकथाम (डिवमिर्ग) के लिए दवा दें। मुर्गियों को गर्मी से बचाव हेतु मुर्गी हाउस में पर्दे, पंखे और वेंटिलेशन की व्यवस्था करें। मुर्गियों को गर्मी से बचाने के लिए मुर्गी घर में लगे हुए जुट के पर्दो पर पानी के छींटे मारे जिससें ठंडक बनी रहे। डाक्टर अजित प्रताप सिंह, संकल्प किसान बाज़ार
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