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Thursday, August 31, 2023

आम की अंबिका एवं अरुणिकाअम्रपाली बौनी क़िस्म

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 आम की अं


बिका एवं अरुणिका दोनो गमले में लगाने योग्य किस्मे है अम्रपाली भी बौनी क़िस्म है लेकिन अरुणिका आम्रपाली की तुलना में 40% ज्यादा बौनी है
अंबिका और अरूणिका है आम की सबसे बौनी किस्म ।
इन्हें घर के किसी भी कोने में लगाकर आप प्रतिवर्ष 20 किलो तक आम उगा सकते हैं।
आवाज एक पहल
इंसान में बौनापन अभिशाप है पर आम के पौधों को बौना करने की कवायद चल रही है. अंबिका और अरूणिका वैज्ञानिकों के तकरीबन 30 साल की मेहनत के बाद आम की बोनी वैरायटी के रूप में विकसित की गई है। दरअसल आम के इन छोटी वैरायटी के कई फायदे हैं । इससे सघन वृक्षारोपण में कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगने के कारण कुछ ही सालों में बहुत अधिक उपज मिलना संभव है।छोटे पौधों से फलों को तोड़ना आसान है और उनकी देखरेख में भी कम खर्च होता है।
.अभी तक आम्रपाली किस्म अपने छोटे आकार के लिए काफी प्रचलित हुई हैं लेकिन आम्रपाली के फल बाजार में आने में 30 वर्ष लग गये.इसके पौधे भी  अन्य किस्मों की तरह विशाल रूप धारण कर लेते हैं.
इसी दिशा में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ में बौनी प्रजातियों के विकास के लिए शोध किया गया और अरूणिका एवं अम्बिका नाम की संकर किस्में विकसित की गई. अरूणिका अपनी माँ आम्रपाली से पौधों के आकार में लगभग 40 प्रतिशत छोटी है. लाल रंग के आकर्षक फलों के कारण बौना पेड़ और आकर्षक लगता है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजन बताते हैं कि आम की किस्में बौनी तभी हो सकती हैं जब उन पर हर वर्ष फल आए. चौसा और लंगड़ा जैसी एक साल छोड़ कर फलने वाली किस्मों के पौधे बड़े आकार के होते हैं. नियमित फलन के कारण अम्बिका, अरुणिका और आम्रपाली जैसी किस्मों के पौधे छोटे आकार के रहते हैं. इनकी ख़ासियत यह भी है कि फलों के तोड़ने के बाद निकली हुई टहनियों में फूल का आ जाना. लंगड़ा, चौसा और दशहरी में फल तोड़ने के बाद निकली हुई टहनियों में फूल सामान्यतः एक वर्ष छोड़कर फल आते हैं.।
दक्षिण भारतीय किस्म नीलम, उत्तर भारत में अपने छोटे आकार के पौधों के लिए जानी जाती है. आम्रपाली में नीलम ने पिता का रोल अदा किया और इसी कारण आम्रपाली से अरूणिका में नियमित फलन और बौनेपन का गुण विद्यमान है. हर साल फल देने वाली बौनी किस्में सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है. कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगाकर ज्यादा फल उत्पादन आज बागवानी के क्षेत्र में एक सफल तकनीक के रूप में अपनाया जा रहा है.


आप इसके पौधे CISH रह्मानखेड़ा, लखनऊ से खरीद सकते है

अंबिका और अरूणिका है आम की सबसे बौनी किस्म ।


इन्हें घर के किसी भी कोने में लगाकर आप प्रतिवर्ष 20 किलो तक आम उगा सकते हैं।


इंसान में बौनापन अभिशाप है पर आम के पौधों को बौना करने की कवायद चल रही है. अंबिका और अरूणिका वैज्ञानिकों के तकरीबन 30 साल की मेहनत के बाद आम की बोनी वैरायटी के रूप में विकसित की गई है। दरअसल आम के इन छोटी वैरायटी के कई फायदे हैं । इससे सघन वृक्षारोपण में कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगने के कारण कुछ ही सालों में बहुत अधिक उपज मिलना संभव है।छोटे पौधों से फलों को तोड़ना आसान है और उनकी देखरेख में भी कम खर्च होता है।


.अभी तक आम्रपाली किस्म अपने छोटे आकार के लिए काफी प्रचलित हुई हैं लेकिन आम्रपाली के फल बाजार में आने में 30 वर्ष लग गये.इसके पौधे भी  अन्य किस्मों की तरह विशाल रूप धारण कर लेते हैं.


इसी दिशा में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ में बौनी प्रजातियों के विकास के लिए शोध किया गया और अरूणिका एवं अम्बिका नाम की संकर किस्में विकसित की गई. अरूणिका अपनी माँ आम्रपाली से पौधों के आकार में लगभग 40 प्रतिशत छोटी है. लाल रंग के आकर्षक फलों के कारण बौना पेड़ और आकर्षक लगता है.


केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजन बताते हैं कि आम की किस्में बौनी तभी हो सकती हैं जब उन पर हर वर्ष फल आए. चौसा और लंगड़ा जैसी एक साल छोड़ कर फलने वाली किस्मों के पौधे बड़े आकार के होते हैं. नियमित फलन के कारण अम्बिका, अरुणिका और आम्रपाली जैसी किस्मों के पौधे छोटे आकार के रहते हैं. इनकी ख़ासियत यह भी है कि फलों के तोड़ने के बाद निकली हुई टहनियों में फूल का आ जाना. लंगड़ा, चौसा और दशहरी में फल तोड़ने के बाद निकली हुई टहनियों में फूल सामान्यतः एक वर्ष छोड़कर फल आते हैं.।


दक्षिण भारतीय किस्म नीलम, उत्तर भारत में अपने छोटे आकार के पौधों के लिए जानी जाती है. आम्रपाली में नीलम ने पिता का रोल अदा किया और इसी कारण आम्रपाली से अरूणिका में नियमित फलन और बौनेपन का गुण विद्यमान है. हर साल फल देने वाली बौनी किस्में सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है. कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगाकर ज्यादा फल उत्पादन आज बागवानी के क्षेत्र में एक सफल तकनीक के रूप में अपनाया जा रहा है.





खेती की अवधारणा पिन्टु मीना पहाड़ी


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