एक पशु से दूसरे पशु में फैलने वाले रोग जो वैक्टीरिया, वाइरस से पनपते हैं को संक्रामक रोग कहते हैं । पशुपालक जानते हैं कि संक्रामक रोगों द्वारा दुधारू पशुओं में भारी आर्थिक हानि होती है।
पशुओं के प्रमुख संक्रामक रोग निम्न हैं
। 1- खुरपका-मुहपका रोग (Foot & Mouth Disease) • यह विषाणु जनित संक्रामक रोग हैं।
इस रोग में तेज बुखार आता है जो 40 डिग्री सेन्टीग्रेड तक पहुँचता है।
मुँह में छाले हो जाते हैं व लार टपकती रहती है ।
खुर में घाव हो जाने के कारण पशु एक स्थान पर खड़ा नहीं रह पाता है।
पशु लंगडाकर चलता है।
घाव में कीड़े पड़ जाते हैं ।
मुँह में छाले पड़ जाने के कारण पशु खाना-पानी छोड़ देता है ।
इस रोग के कारण दुग्ध उत्पादन में अत्याधिक कमी आ जाती है । (गर्भपात भी हो जाता है)
बचाव :
प्रदेश में निःशुल्क टीकाकरण किया जाता है।
टीका वर्ष में दो बार लगाया जाता है । (मार्च / अप्रैल एवं सितम्बर / अक्टूबर) बीमार होने पर उपाय : 1
यदि पशु रोग से ग्रसित हो तो स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखना चाहिए। रोगी
से धोना चाहिये तथा खुर 1 प्रतिशत कापर सल्फेट के घोल से धोना चाहिये । 2- रैबीज (Rabies)
पशु का मुँह 2 प्रतिशत फिटकरी के घोल
यह रोग वाइरस जनित है तथा पागल कुत्ते, सियार, नेवले के काटने से होता है।
प्रमुख लक्षण
पशु को उग्र होना । ●
मुँह से लार टपकना ।
●
● रोगी पशु द्वारा कंकड / मिट्टी को पकड़ कर चबाने का प्रयास करना । ● पशु का लकवा होता है।
पश को लकवा भी हो जाता है ।
ग्रसित पशु के काटने से व लार लगने से मनुष्य में भी यह रोग फैल जाता है।
● रोग संज्ञान में आने पर पशु को अन्य पशुओं से अलग बाँधना चाहिये तथा पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिये ।
3- गला घोटू (Haemorrhagic Septicemia) यह जीवाणु जनित रोग है। इस रोग में 40-41 डिग्री
सेल्सियस तक बुखार होता है।
गले में सूजन आ जाती है। सांस लेने में कठिनाई होती
है तथा घर-घुर की आवाज आती है।
: चिकित्सा न होने पर रोगी पशु की मृत्यु हो जाती है।
यह भी जीवाणु जनित रोग
यह रोग मुख्यतः 6 माह से 2 वर्ष की आयु के स्वस्थ्य पशुओं में अधिक होता है।
प्रमुख लक्षण में :
• तेज बुखार आना
पैर व पुट्ठों में सूजन आना
और सूजन के दबाव से चरचराहट की आवाज आती है। बचाव :
रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में मई-जून में विभाग द्वारा निःशुल्क टीकाकरण विभाग द्वारा लगाया जाता है। .
U बीमार पशुको एन्टी ब्लैक क्वाटर सीरम लगवाना चाहिये ।
· मरे पशु को जमीन में गाड़ देते हैं, जिससे कि अन्य पशुओं में संक्रमण न हो सके।
5 - क्षय रोग (Tuberclosis)
यह जीवाणु जनित रोग है।
प्रमुख लक्षण में :
• रोगी पशु के फेफड़े में गाँठे पड़ जाती हैं।
•
दुधारू पशु में थन के अन्दर गाँठ सी पड़ जाती है । उपरोक्त लक्षण मिलने पर तत्काल नजदीक के पशुचिकित्सालय में सम्पर्क करें। अन्य
यह रोग आम तौर पर बरसात में होता है परन्तु वर्ष में कमी भी हो सकता है।
बचाव : रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में प्रति वर्ष मई-जून माह में टीका निःशुल्क लगाया जाता है। रोग हो जाने पर बीमार पशु को अलग रखना चाहिये तथा उपचार कराये ग्रसित पशुओं को धुंआ नहीं देना चाहिये तथा खुले स्थान पर रखना चाहिये ।
4- लंगडिया बुखार (Black Quarter)