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Saturday, July 09, 2022

Sugar Free Mango : अब डायबिटीज के मरीज भी ले सकेंगे आम का स्वाद, पकने से पहले 16 बार बदलता है रंग

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 News18 हिंदी: Sugar Free Mango : अब डायबिटीज के मरीज भी ले सकेंगे आम का स्वाद, पकने से पहले 16 बार बदलता है रंग. https://hindi.news18.com/news/nation/now-diabetic-patients-will-also-taste-sugar-free-mango-color-changes-16-times-before-ripening-4376630.html


SUGAR FREE Mango : बिहार में जिस आम की चर्चा हो रही, उसे अमेरिकन ब्यूटी नाम दिया गया है. दरअसल बिहार के मुजफ्फरपुर के एक किसान ने इस आम की बागवानी की है. इसी आम के बगीचे की चर्चा इन दिनों पूरे बिहार में हो रही है, क्योंकि आम का आकार, शेप और रंग दूसरे आमों से कई अलग है. ये कोई मामूली आम नहीं है, बल्कि दावा किया गया है कि ये आम (Mango) पकने से पहले 16 बार अपना रंग बदलता है. साथ ही इसको शुगर फ्री आम भी बताया जा रहा है.

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Monday, July 04, 2022

जापान की आम की प्रजाति

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 दुनिया का सबसे महंगा आम इसका वजन एक आम का 350  ग्राम होता है लाखों में है 1 किलो आम की कीमत 2.7 लाख रुपया प्रति किलो है लाल और पर्पल रंग का दिखने वाला जापान का मिया जाकि आम की रखवाली के लिए सिक्योरिटी गार्ड तैनात हैं या बिल्कुल डायनासोर के अंडे जैसा दिखता है


Miyazaki mangoes are the most expensive mangoes in the world. They are grown in Miyazaki, Japan, and are known for their sweet flavor, creamy texture, and bright red color. Miyazaki mangoes are often sold for over $100 per kilogram.

Here are some of the reasons why Miyazaki mangoes are so expensive:

  • They are grown in a very specific climate and soil conditions that are difficult to replicate elsewhere.
  • They are hand-picked and carefully packed to ensure that they arrive at their destination in perfect condition.
  • They are a very limited crop, and the demand for them is very high.

If you are lucky enough to find a Miyazaki mango, be sure to savor it! It is a truly unique and delicious fruit.



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खेती के उन्नत विधि

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Sunday, July 03, 2022

गन्ने की फसल में चोटी बधेक कीट* *(Top borer)*

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   इस कीट की सुंडी अवस्था ही हानि पहुंचाती है। यह कीट पूरे वर्ष में 4 से 5 पीढ़ियां पाई जाती हैं। इसे किसान कन्फ्ररहा, गोफ का सूखना आदि नामों से जानते हैं। 

 *कीट की पहचान -* इसका प्रौढ़ कीट चांदी जैसे सफेद रंग का होता है तथा मादा कीट के उदर भाग के अंतिम खंड पर हल्के गुलाबी रंग के बालों का गुच्छा पाया जाता है। इस कीट की सुंडी हल्के पीले रंग की होती है, जिस पर कोई धारी नहीं होती है।  

 *हानियां -* इस कीट की मादा सुंडी पौधों की दूसरी या तीसरी पत्ती की निचली सतह पर मध्य शिरा के पास समूह में अंडे देती है। इसकी सुंडी पत्ती की मध्य शिरा से प्रवेश कर गोंफ़ तक पहुंच जाती है तथा पौधे के वृद्धि वाले स्थान को खाकर नष्ट कर देती है,जिससे कि गन्ने की बढ़वार रुक जाती है। प्रभावित पौधे की गॉफ छोटी तथा कत्थई रंग की हो जाती है, जो कि खींचने पर आसानी से नहीं निकलती है। गन्ने की पत्ती की मध्य शिरा पर लालधारी का निशान तथा गॉफ़ के किनारे की पत्तियों पर गोल छर्रे जैसा छेद पाया जाता है। इस कीट की प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी के आपतन से गन्ने के पौधे पूर्ण रूप से सूख जाते हैं तथा तृतीय पीढ़ी से पौधों की बढ़वार रुक जाने के कारण उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है व पौधों की लंबाई कम हो जाती है। इस कीट के आपतन से 20 से 35 प्रतिशत तक हानि होती है। इस कीट की तीसरी एवं चौथी पीढ़ी के आपतन से गन्ने में बंची टॉप का निर्माण हो जाता है। 

 *जीवन चक्र-* मादा अपने जीवन काल में 250 से 300 अंडे कई अंड समूह में देती है। जिनकी संख्या 6 से 70 तक रहती है। इस कीट का अंड काल 6 से 8 दिन, सुंडी काल 36 से 40 दिन, एवं प्यूपा काल 8 से 10 दिन तक रहता है तथा जीवन काल 53 से 65 दिन तक रहता है। 

 *पीढ़ियां-

प्रथम - मार्च से अप्रैल तक 

द्वितीय - मई के द्वितीय सप्ताह से जून के द्वितीय सप्ताह तक 

तृतीय - जून के तृतीय सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक

 चतुर्थ - अगस्त के प्रथम सप्ताह से मध्य सितंबर तक

 पंचम - मध्य सितंबर से फरवरी के अंतिम सप्ताह तक।

 *नियंत्रण -* 1- प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी से प्रभावित पौधों को सुंडी सहित पतली खुर्पी की सहायता से जमीन की गहराई से काट कर खेत से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। 

2- प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी को नियंत्रण के लिए फरवरी - मार्च में गन्ना बुवाई के समय कीट नाशक वर्टोको 5 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से कुड़ों में प्रयोग करना चाहिए। 

3- कीटनाशक वार्टको 5 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक तृतीय पीढ़ी के लिए पर्याप्त नमी की दशा में पौधों की जड़ों के पास प्रयोग करना चाहिए।

4 - 150 ML कोराजन 400 लीटर पानी में घोल बनाकर दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी के लिए मई के अंतिम सप्ताह से जून के प्रथम सप्ताह में जड़ों के पास डेचिंग करें तथा 24 घंटे के अंदर खेत की सिंचाई अवश्य कर दें।  बीके शुक्ला  अपर गन्ना आयुक्त गन्ना एवं चीनी विभाग उत्तर प्रदेश सरकार


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Wednesday, June 29, 2022

जैविक खाद बनाने का भरोसेमंद एवं सस्ता विकल्प है ‘प्रोम’ (PROM)

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जैविक खाद बनाने का भरोसेमंद एवं सस्ता विकल्प है ‘प्रोम’ (PROM)

26 Jul 2019



क्या आप जानते हैं फसल के उत्पादन में फॉस्फेट तत्व का प्रमुख योगदान होता है! रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग करने से खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है, जमीन सख्त हो रही है, भूमि में पानी सोखने की क्षमता घटती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ भूमि तथा उपभोक्ताओं के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर भी पड़ रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नया उत्पाद विकसित किया गया है, जिसमें कार्बनिक खाद के साथ-साथ रॉक फॉस्फेट की मौजूदगी भी होती है। जिसे हम प्रोम के नाम से जानते हैं।




‘प्रोम’ को विस्तार पूर्वक समझते हैं


प्रोम (फॉस्फोरस रिच आर्गेनिक मैन्योर) तकनीक से जैविक खाद घर पर भी तैयार की जा सकती है। प्रोम, जैविक खाद बनाने की एक नई तकनीक है। जैविक खाद बनाने के लिए गोबर तथा रॉक फॉस्फेट को प्रयोग में लाया जाता है। रॉक फॉस्फेट की मदद से रासायनिक क्रिया करके सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) तथा डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) रासायनिक उर्वरक तैयार किए जाते हैं।


प्रोम में विभिन्न फॉस्फोरस युक्त कार्बनिक पदार्थों जैसे- गोबर खाद, फसल अपशिष्ट, चीनी मिल का प्रेस मड, जूस उद्योग का अपशिष्ट पदार्थ, विभिन्न प्रकार की खली और ऊन के कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ आदि को रॉक फॉस्फेट के साथ कम्पोस्टिंग करके बनाया जाता है। प्रोम मिनरल उर्वरक एवं जैविक खाद का मिश्रण है जो केवल कृषि में उपयोग के लिये काम में लाया जाता है। प्रोम का उपयोग पौधों को फॉस्फोरस (फॉस्फोरस पादप पोषक तत्व) उर्वरक प्रदान करने के लिए किया जाता है। जीवाणु राॅक फोसफोरस को पचा कर उसे गोबर में उपलब्ध करते हेै इस कारण प्रोम शुद्व रुप से जैविक है।


प्रोम से क्या-क्या फायदे हैं :


जैविक खाद से अनाज, दालें, सब्जी व फलों की गुणवत्ता बढ़ाने से अच्छा स्वाद मिलता है।

रोगों में रोधकता आने से मानव के स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं।

प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल है।

प्रत्येक किसान, जिसके यहां गोबर उपलब्ध है, आसानी से अपने घर पर जैविक खाद बनाकर तैयार कर सकता है।

किसान DAP व SSP खरीदने पर जितने पैसा खर्च करता है उससे कम पैसे में प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाकर भरपूर फसल पैदा कर सकता है।

प्रोम मिट्टी को नरम बनाने के साथ-साथ पोषक तत्वों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाये रखता है।

प्रोम लवणीय व क्षारिय भूमि में भी प्रभावी रूप में काम करता है जबकि DAP ऐसी भूमि मे काम नहीं करता है।

जैविक खाद को घर पर बनाने की प्रक्रिया :


‘फॉस्फोरस रिच जैविक खाद’ घर पर भी रॉक फॉस्फेट के द्वारा बनाई जा सकती है। रॉक फॉस्फेट के अलग-अलग रंग होते हैं, रॉक फॉस्फेट एक तरह का पत्थर है जिसके अंदर 22 फीसदी फॉस्फोरस मौजूद है जो कि फिक्स फोम में होता है। प्रोम बनाने के लिए कमर्शियल में 10 फीसदी के आसपास फॉस्फोरस मेंटेन किया जाता है लेकिन हम घर पर बनाने के लिए 18%,19% या 20 फीसदी तक फॉस्फोरस इस्तेमाल में ले सकते हैं। इसे बनाने के लिए किसी भी जानवर का गोबर ले सकते हैं, घर में मौजूद कूड़ा-कर्कट या फिर फसलों के अवशेष जिससे खाद बनाते हैं (प्लांट बेस्ड) वो भी ले सकते हैं। Dr absinth kisan sankalp bazar

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Monday, June 27, 2022

पशुपालन एवं वेटरनरी कृत्रिम गर्भाधान के विभिन्न कोर्सों में दाखिल लेकर रोजगार प्राप्ति करें

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आजकल बेरोजगारी के समय में कृषि और पशुपालन रोजगार की अपार संभावना है बिचपुरी आगरा में संचालित वेटरनरी कॉलेज विभिन्न कोर्सों में दाखिल होकर सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते हैं और कुमार प्रशिक्षण प्राप्त कर  स्वयं निजी का कार्य किसी कंपनी में नौकरी इत्यादि कर सकते हैं 

http://aitajagra.com/ कृपया डिटेल जानकारी वेबसाइट एवं कॉलेज से प्राप्त कर सकतेे हैं

5 वी, 8 वी, 10 वी, 12वी पास छात्र के लिए सुनेहरा अवसर

 *कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण संस्थान*

भारत सरकार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त

NSDC , Agriculture council  of India 


कोर्स के बाद सुनिश्चित रोजगार की गारण्टी


*कोर्स का नाम* Artificial Insemination Technician (कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन)🐄🐂🐃

*अवधि* 3 माह

*योग्यता* 8 और 10 पास

*फीस* 30000 मात्र 


*कोर्स का नाम*  Dairy Farming/ Enterpreneur 

(डेयरी फार्मिंग / उद्यमी)🐃🥛

*अवधि* 1 माह

*योग्यता* 5 वी पास

*फीस* 15000/- मात्र 


*कोर्स का नाम*  Dairy Farmer Supervisor

(डेयरी किसान पर्यवेक्षक)🥛

*अवधि* 2 माह

*योग्यता* 12 वी पास

*फीस* 25000/- मात्र


*कोर्स का नाम* Veterinary Clinical 🏥Assistant

(पशु चिकित्सा नैदानिक सहायक)🐕🐩🦮🐕‍🦺🐈🐈‍⬛

*अवधि* 2 sal

*योग्यता* 12 वी पास

*फीस* 60000/- मात्र


*कोर्स का नाम*  Animal Health Worker (first Aid)

पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता (प्राथमिक चिकित्सा)🐃🦮🐈🐐🐎

*अवधि* 2 माह



*योग्यता* 8 वी पास

*फीस* 20000/- मात्र


*आज ही प्रवेश ले और अपना कैरियर बनाएं*


कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण संस्थान

पथौली नहर, जयपुर हाईवे बिचपुरी आगरा।

मोबाइल नंबर- 9520978721


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Thursday, June 23, 2022

भूमि के लिए संजीवनी - " हरी खाद (Green Manure) " :-

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किसान भाई कई वर्षों से लगातार अपने खेतों में रासायनिक खाद-उर्वरक तथा अन्य जहरीले रसायनो का प्रयोग करके खेती कर रहे है। गोबर की विभिन्न तरह की खादो व अन्य जैविक खादों का प्रयोग लगभग न के बराबर हो रहा है अथवा बंद कर दिया गया है। जिसके परिणाम स्वरूप हमारी भूमि में ऑर्गेनिक कार्बन, मित्र सूक्ष्म जीव,मित्र फंगस, आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। भूमि की भौतिक व रासायनिक संरचना बिगड़ चुकी है, जमीन का पोलापन कठोरता में बदल रहा है। भूमि में लवणीयता तथा क्षारीयता बढ़ रही है। हमारी भूमि मृत होती जा रही है। जिससे फसलों का उत्पादन स्थिर हो गया है अथवा कम होता जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो एक दिन हमारी खेती बंजर हो सकती है। यदि हमें अपने खेतों को बंजर होने से बचाना है तथा अपनी अगली पीढ़ी के लिए कृषि क्षेत्र में एक अच्छा भविष्य देना है, तो हमे अपने खेतों में नियमित गोबर से बनी विभन्न तरह की खादो व हरी खादो का प्रयोग करना होगा। हरी खाद :- हरी खाद सबसे अच्छा , सरल, कम लागत वाला एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से भूमि में देशी केंचुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा फसलों के लिए आवश्यक सभी मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्वों, आर्गेनिक कार्बन, एंजाइम्स- विटामिन्स-हार्मोन्स, विभिन्न मित्र बैक्टेरिया व मित्र फंगस, आर्गेनिक एसिड्स आदि में वृद्धि होती है तथा हमारी भूमि उपजाऊ बनती है। इसके लिए हमे गेंहू की कटाई के बाद पानी की व्यवस्था वाले खेतो में अप्रैल या मई माह में तथा सूखे क्षेत्रो में मानसून आने पर हरी खाद की बुआई करनी चाहिए। हरी खाद के लिए तेजी से बढ़ने वाली दलहनी फसलें जैसे- ढेंचा, सनई, लोबिया, ग्वार, मूंग उड़द आदि की बुआई कर सकते है। मेरे अनुभव के हिसाब से हरी खाद के लिए ढेंचा एवं सनई सबसे उपयुक्त रहती है, जो जल्दी बढ़ती है तथा इनसे बायोमास भी अधिक मिलता है। ढेंचा एक ऐसी फसल है जो अंकुरित होने के बाद पानी की कमी या सूखा को भी सह लेती है तथा वर्षा के मौषम में अधिक पानी गिरने पर पानी भराव को भी सहन कर सकता है। हरी खाद को बुआई के बाद गलभग 45 से 60 दिनों में फूल आने के पूर्व खेत मे लोहा हल, डिस्क हैरो अथवा रोटावेटर से मिट्टी में पलट दिया जाता है। इस समय खेत मे पर्याप्त नमी होनी चाहिए जिससे हरी खाद शीघ्र ही डिकॉम्पोज़ हो जाए, खाद पलटते समय उपलब्धता के अनुसार खेत मे सरसो, करंज, नीम आदि की खल, जीवामृत, वेस्ट डिकॉम्पोज़र अथवा यूरिया डालने से हरी खाद की फसल अतिशीघ्र ही डिकॉम्पोज़ हो जाती है। दलहनी फसल में एक विशेष गुण होता है कि वह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अपनी जड़ो में राइजोबियम बैक्टेरिया के माध्यम से भूमि में भंडारित कर लेती है, जिससे खेत मे बोई जाने वाली अगली फसल को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन तथा अन्य सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो जाते है। जिससे एक तरफ़ तो हमारी भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है तथा दूसरी ओर रासायनिक खादों का प्रयोग भी कम किया जा सकता है। धान लगाने के पूर्व किसान अपने खेती में हरी खाद की बुआई कर मानसून आने पर हरी खाद को खेत मे पलटकर धान की रोपाई कर रासायनिक उर्वरक के खर्चे को कम कर सकते है। अतः किसान भाइयों से निवेदन है कि आप भी हरी खाद लगाकर अपने खेतों को उपजाऊ बनाये। ( अधिक जानकारी के लिए शाम 7:00 से 10:00 बजे तक आप मुझे संपर्क कर सकते है।) Think Globally Act Locally " बुंदेलखंड जैविक कृषि फार्म " ( उन्नत सजीव खेती आधारित SFS मॉडल) ग्राम व पोस्ट- छनेहरा लालपुर, विकासखंड- बड़ोखर खुर्द,जनपद -बाँदा, बुंदेलखंड(उ.प्र.), Pin - 210001 संपर्क:- 8085786148, 9919018020 7999735744

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