Sakshatkar.com : Sakshatkartv.com

.

Friday, June 03, 2022

आम के बाग लगाने के पूर्व जानने योग्य प्रमुख बातें

0

डॉ एसके सिंह प्रोफेसर , प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं एसोसिएट डायरेक्टर रिसर्च डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा ,समस्तीपुर, बिहार-848 125 sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in उत्तर भारत में आम के बाग़ को लगाने का सर्वोत्तम समय जून के अंतिम सप्ताह से लेकर सितम्बर माह तक है , लेकिन इसकी तैयारी मई -जून से ही शुरू कर देते है .आम के बाग की स्थापना एक दीर्घकालिक निवेश है; इसलिए उचित योजना और लेआउट एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यदि आप आम का बाग लगाना चाहते है तो आप को बाग लगाने से पूर्व निम्नलिखित बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए यथा..... 1. साइट चयन  आम के लगाने की जगह ( साइट) को मुख्य सड़क और बाजार के पास होना चाहिए क्योंकि इसमे लगने वाली विभिन्न जैसे खाद , उर्वरक एवं पेस्टीसाइड की समय पर खरीद और फसल की समय पर विक्री के लिए पास होना चाहिए।  आम की वृद्धि और उत्पादन के लिए उचित सिंचाई की सुविधा, उपयुक्त जलवायु और अच्छी मिट्टी का होना आवश्यक है। 2. क्षेत्र की तैयारी  गहरी जुताई के पश्चात हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभुरा एवम् खरपतवार को एकत्र कर लेते है।  भूमि को अच्छी तरह से समतल किया जाना चाहिए और अधिक वर्षा के पानी की उचित सिंचाई और जल निकासी के लिए एक दिशा में हल्का ढलान प्रदान किया जाता है। 3. लेआउट और रोपण दूरी  यह पौधों को सामान्य विकास के लिए पर्याप्त स्थान प्रदान करता है, उचित परस्पर संचालन की अनुमति देता है और हवा और सूरज की रोशनी के पर्याप्त मार्ग प्रदान करता है।  रोपण की दूरी मिट्टी की प्रकृति, सैपलिंग प्रकार (ग्राफ्ट्स / सीडलिंग) और विविधता की शक्ति जैसे कारकों पर निर्भर करती है।  खराब मिट्टी का पौधा धीरे-धीरे बढ़ता है और भारी मिट्टी में, पौधे बौने रह जाते हैं, कम जगह की आवश्यकता होती है। लंबी प्रजाति के आम(मालदा या लंगड़ा, चौसा, फजली)को 12m × 12 के अंतर पर लगाई जाती है बौनी प्रजाति के आम (दशहरी, नीलम, तोतापुरी और बॉम्बे ग्रीन) को 10 मीटर × 10 मीटर की दूरी पर लगाए गए  डबल रो हेज सिस्टम: (5 मी × 5 मी) × 10 मी: 220 पौधे प्रति हेक्टेयर (बौनी किस्में)।  बौनी किस्म: आम्रपाली 2.5m × 2.5 m (1600 पौधे / हेक्टेयर) में लगाया जाता है 4. गड्ढे तैयार करना  गड्ढे का आकार मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है।  यदि हार्ड पैन आधे मीटर की गहराई में है, तो गड्ढे का आकार 1मीटर × 1मीटर × 1मीटर होना चाहिए  यदि मिट्टी उपजाऊ है और हार्ड पैन नहीं है, तो गड्ढे का आकार 30 सेमी × 30 सेमी × 30 सेमी होना चाहिए।  गड्ढे वाली मिट्टी के ऊपरी आधे हिस्से और निचली आधी मिट्टी को अलग-अलग रखा जाता है और अच्छी तरह से सड़ी कम्पोस्ट 50 किग्रा, सुपर फॉस्फेट सिंगल (SSP) 100 ग्रा और मुइरेट ऑफ़ पोटाश ( एमओपी) 100 ग्रा के साथ मिलाया जाता है।  गड्ढे मई -जून के गर्मियों के दौरान खोद कर 2-4 सप्ताह के लिए छोड़ देते है जिससे मिट्टी सूरज के संपर्क में आते हैं और नीचे मिट्टी एवं शीर्ष के मिट्टी के मिश्रण से भर दिए जाते हैं।  भरने के बाद गड्ढों की अच्छी तरह से सिंचाई की जाती है। 5. रोपण का समय  उत्तर भारत और पूर्वी भारत में जून से सितंबर

Read more

Friday, May 27, 2022

ड्रैगन फ्रूट (फल) की खेती से लाभ कमाएं

0

भावनगर/अहमदाबाद। गुजरात के ड्रैगन फ्रूट (फल) को राज्य सरकार ने "कमलम" नाम दिया है। सरकार के इस निर्णय के बाद से उत्तर गुजरात, सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में इसके उत्पादन में रुचि बढ़ी। भावनगर जिले के वावड़ी गांव के एक किसान ने कम पानी और खर्च करके सिर्फ चार बीघा जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती से 3.5 लाख रुपये की कमाई की है। सौराष्ट्र के भावनगर जिले के वावड़ी गांव के किसान ने रमेशभाई मकवाना पारंपरिक खेती की तुलना में कम पानी में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। रमेशभाई जामनगर से ड्रैगन फ्रूट के पौधे लाए। ड्रैगन फ्रूट के एक पौधे की कीमत 48 रुपये है और वर्तमान में रोपण के 15 महीने बाद फल आते हैं। रमेशभाई ने चार बीघा जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सालाना 3.5 लाख रुपये की कमाई की है। इस संबंध में रमेशभाई ने बताया कि वह भावनगर जिले में पिछले एक-दो साल से ड्रैगन फ्रूट की फसल कर रहे हैं। भावनगर में अवनिया, तलाजा, दिहोर, त्रापज, सीहोर और पालिताना ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है। उन्हाेंने बताया कि गुलाबी, लाल और सफेद रंग की तीन तरह के ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है। उन्होंने बताया कि इस फल से प्रति बीघा 1.10 लाख रुपये तक आमदनी होती है। उल्लेखनीय है कि ड्रैगन फ्रूट की कमल जैसी और कांटेदार कैक्टस प्रजाति स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम फल मानी जाती है। ड्रैगन फ्रूट का इस्तेमाल च्युइंग गम और अन्य जड़ी-बूटियों में भी किया जाता है। इसलिए बाजार में भी काफी तेजी आई है। Sabhar www.sanjeevanitoday.com

Read more

Monday, January 24, 2022

खीरे का निर्यात बढ़ा

1

 पहले खीरा और ककड़ी जैसी फसलों की खेती एक खास सीजन में ही होती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्नत किस्मों के बीज और पॉली हाउस जैसे माध्यमों की मदद से अब सालभर खीरा और ककड़ी की खेती होती है। तभी तो भारत दुनिया में ककड़ी और खीरे का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उभरा है। वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार भारत ने अप्रैल-अक्टूबर (2020-21) के दौरान 114 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 1,23,846 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया है। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में कृषि प्रसंस्कृत उत्पाद के निर्यात का 200 मिलियन अमरीकी डालर का आंकड़ा पार कर लिया है, इसे खीरे के अचार बनाने के तौर पर वैश्विक स्तर पर गेरकिंस या कॉर्निचन्स के रूप में जाना जाता है। 2020-21 में, भारत ने 223 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य के साथ 2,23,515 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात किया था। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत वाणिज्य विभाग के निर्देशों का पालन करते हुए, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) ने बुनियादी ढांचे के विकास, वैश्विक बाजार में उत्पाद को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के पालन में कई पहल की हैं। खीरे को दो श्रेणियों ककड़ी और खीरे के तहत निर्यात किया जाता है जिन्हें सिरका या एसिटिक एसिड के माध्यम से तैयार और संरक्षित किया जाता है, ककड़ी और खीरे को अनंतिम रूप से संरक्षित किया जाता है। सबसे पहले कर्नाटक से हुई थी निर्यात की शुरूआत खीरे की खेती, प्रसंस्करण और निर्यात की शुरूआत भारत में 1990 के दशक में कर्नाटक में एक छोटे से स्तर के साथ हुई थी और बाद में इसका शुभारंभ पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी हुआ। विश्व की खीरा आवश्यकता का लगभग 15% उत्पादन भारत में होता है। खीरे को वर्तमान में 20 से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है, जिसमें प्रमुख गंतव्य उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय देश और महासागरीय देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, जापान, बेल्जियम, रूस, चीन, श्रीलंका और इजराइल हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए 65000 एकड़ में होती है खीरे की खेती अपनी निर्यात क्षमता के अलावा, खीरा उद्योग ग्रामीण रोजगार के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में, अनुबंध खेती के तहत लगभग 90,000 छोटे और सीमांत किसानों द्वारा 65,000 एकड़ के वार्षिक उत्पादन क्षेत्र के साथ खीरे की खेती की जाती है। प्रसंस्कृत खीरे को औद्योगिक कच्चे माल के रूप में और खाने के लिए तैयार करके जारों में थोक में निर्यात किया जाता है। थोक उत्पादन के मामले में एक उच्च प्रतिशत का अभी भी खीरा बाजार पर कब्जा है। भारत में ड्रम और रेडी-टू-ईट उपभोक्ता पैक में खीरा का उत्पादन और निर्यात करने वाली लगभग 51 प्रमुख कंपनियां हैं। एपीडा ने प्रसंस्कृत सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह बुनियादी ढांचे के विकास और संसाधित खीरे की गुणवत्ता बढ़ाने, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादों को बढ़ावा देने और प्रसंस्करण इकाइयों में खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणालियों के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। औसतन, एक खीरा किसान प्रति फसल 4 मीट्रिक टन प्रति एकड़ का उत्पादन करता है और 40,000 रुपये की शुद्ध आय के साथ लगभग 80,000 रुपये कमाता है। खीरे में 90 दिन की फसल होती है और किसान वार्षिक रूप से दो फसल लेते हैं। विदेशी खरीदारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए गए हैं। सभी खीरा उत्पादन और निर्यात कंपनियां या तो आईएसओ, बीआरसी, आईएफएस, एफएसएससी 22000 प्रमाणित और एचएसीसीपी प्रमाणित हैं या सभी प्रमाणपत्र रखती हैं। कई कंपनियों ने सोशल ऑडिट को अपनाया है। यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को सभी वैधानिक लाभ दिए जाएं।

Sabhar :
https://www.gaonconnection.com/desh/which-states-maximum-farmers-get-the-benefit-of-msp-it-is-not-haryana-or-punjab-48592?infinitescroll=1

Read more

Wednesday, January 19, 2022

केंचुआ खाद तैयार करने की विधि

0

 



संपादित करें

  • जिस कचरे से खाद तैयार की जाना है उसमे से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक हैं।
  • केचुँआ को आधा अपघटित सेन्द्रित पदार्थ खाने को दिया जाता है।
  • भूमि के ऊपर नर्सरी बेड तैयार करें, बेड को लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का व समतल बना लें।
  • इस तह पर 6-7 से0मी0 (2-3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी की तह बिछायें।
  • बालू रेत की इस तह पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की तह बिछायें। दोमट मिट्टी न मिलने पर काली मिट्टी में रॉक पाऊडर पत्थर की खदान का बारीक चूरा मिलाकर बिछायें।
  • इस पर आसानी से अपघटित हो सकने वाले सेन्द्रिय पदार्थ की (नारीयल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल एवं अन्य) दो इंच मोटी सतह बनाई जावे।
  • इसके ऊपर 2-3 इंच पकी हुई गोबर खाद डाली जावे।
  • केचुँओं को डालने के उपरान्त इसके ऊपर गोबर, पत्ती आदि की 6 से 8 इंच की सतह बनाई जावे। अब इसे मोटी टाट् पट्टी से ढांक दिया जावे।
  • झारे से टाट पट्टी पर आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी छिड़कते रहे, ताकि 45 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे। अधिक नमी/गीलापन रहने से हवा अवरूद्ध हो जावेगी और सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुएं कार्य नहीं कर पायेगे और केचुएं मर भी सकते है।
  • नर्सरी बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए।
  • नर्सरी बेड में गोबर की खाद कड़क हो गयी हो या ढेले बन गये हो तो इसे हाथ से तोड़ते रहना चाहिये, सप्ताह में एक बार नर्सरी बेड का कचरा ऊपर नीचे करना चाहिये।
  • 30 दिन बाद छोटे छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जावेंगे।
  • 31 वें दिन इस बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी तह बिछायें और उसे नम करें।
  • इसके बाद हर सप्ताह दो बार कूडे-कचरे की तह पर तह बिछाएं। बॉयोमास की तह पर पानी छिड़क कर नम करते रहें।
  • 3-4 तह बिछाने के 2-3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे कर देवें और नमी बनाए रखें।
  • 42 दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें।
  • इस पद्धति से डेढ़ माह में खाद तैयार हो जाता है यह चाय के पाउडर जैसा दिखता है तथा इसमें मिट्टी के समान सोंधी गंध होती है।
  • खाद निकालने तथा खाद के छोटे-छोटे ढेर बना देवे। जिससे केचुँए, खाद की निचली सतह में रह जावे।
  • खाद हाथ से अलग करे। गैती, कुदाली, खुरपी आदि का प्रयोग न करें।
  • केंचुए पर्याप्त बढ़ गए होंगे आधे केंचुओं से पुनः वही प्रक्रिया दोहरायें और शेष आधे से नया नर्सरी बेड बनाकर खाद बनाएं। इस प्रकार हर 50-60 दिन बाद केंचुए की संख्या के अनुसार एक दो नये बेड बनाए जा सकते हैं और खाद आवश्यक मात्रा में बनाया जा सकता है।
  • नर्सरी को तेज धूप और वर्षा से बचाने के लिये घास-फूस का शेड बनाना आवश्यक है। sabhar vikipidia

Read more

Wednesday, January 05, 2022

किसान उत्पादक कंपनी स्थापित करें और उद्यमी बनें.

2


🔴किसान उत्पादक कंपनी क्या है?

✅किसान उत्पादक कंपनी (FPC) एक कानूनी इकाई है और कंपनी अधिनियम, 1956 और 2013 के तहत पंजीकृत है। एक किसान उत्पादक कंपनी एक ऐसा संगठन है जिसमें कानून द्वारा केवल किसान ही कंपनी के सदस्य हो सकते हैं और किसान सदस्य स्वयं कंपनी का प्रबंधन करते हैं।

✅किसान उत्पादक कंपनी की अवधारणा विभिन्न प्रकार के किसान उत्पादकों, छोटे और सीमांत किसान समूहों, समूहों को एक साथ लाती है ताकि कई चुनौतियों को एक साथ हल किया जा सके और साथ ही साथ किसान उत्पादक कंपनी के माध्यम से एक प्रभावी संगठन तैयार किया जा सके, जैसे कि निवेश करना, नया अद्यतन करना नए बाजार बनाने के साथ-साथ मौजूदा बाजारों तक पहुंच में सुधार, विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों को लेना और विभिन्न प्रकार के उप-उत्पाद बनाने के लिए विनिर्मित वस्तुओं का प्रसंस्करण, कंपनी के माध्यम से क्रय-विक्रय केंद्रों की स्थापना करना, माल की ब्रांडिंग करना कंपनी के सदस्यों द्वारा कंपनी के नाम पर उत्पादित, सदस्यों के प्राथमिक उत्पादों का निर्यात या वस्तुओं या सेवाओं का आयात करना।


✳️किसान उत्पादक कंपनी के पंजीकरण के लिए न्यूनतम आवश्यकता✳️

📌कम से कम 10 किसान सदस्य।

📌10 सदस्यों में से कम से कम 5 निदेशक होने चाहिए।

📌 प्रत्येक सदस्य की 7/12 या खसरा एवं खतावणी प्रतिलेख और किसान होने का प्रमाण आवश्यक है।

📌प्रत्येक सदस्य द्वारा आवश्यक कानूनी दस्तावेजों और अन्य दस्तावेजों को पूरा करना।


✳️भिन्न किसान उत्पादन कंपनियों के लिए उपलब्ध विभिन्न लाभ और योजनाएं क्या हैं?✳️

📌पंजीकरण की तारीख से अगले 5 वर्षों तक किसान उत्पादक कंपनी के मुनाफे पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा।

📌ऑपरेशन ग्रीन को 2019-20 के बजट में मिली मंजूरी

📌किसान उत्पादक कंपनियों को अधिकतम ऋण प्राप्त करने में आसानी

📌नाबार्ड से रियायती दर पर ऋण * विभिन्न परियोजनाओं के लिए उपलब्धता के साथ-साथ अनुदान

ऋण 

📌नाबार्ड के उत्पादक संगठन विकास कोष (पीओडीएफ) से उपलब्ध विभिन्न प्रकार के ऋण

📌अन्य कंपनियों की तुलना में ऋण पर कम ब्याज दर

📌विभिन्न सहकारी समितियों को दी जाने वाली विभिन्न योजनाएं निर्माण कंपनियों को दी जाती हैं।

📌ग्रुप फार्मिंग के साथ-साथ ग्रुप फार्मिंग के लिए आवश्यक तकनीक आसानी से उपलब्ध कराई जाएगी

📌प्रकल्प निर्माण कंपनियों के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा कई परियोजनाएं और योजनाएं शुरू की जाएंगी

📌इक्विटी अनुदान योजना: एसएफएसी, दिल्ली द्वारा विनिर्माण कंपनियों को 15 लाख रुपये तक का इक्विटी अनुदान दिया जाता है।

क्रेडिट गारंटी फंड: SFAC, दिल्ली निर्माण कंपनियों को उनकी परियोजनाओं के 85% तक या अधिकतम रु.

📌टूल बैंक: महाराष्ट्र राज्य में कई टूल बैंक शुरू किए गए हैं और कृषि कंपनियों को किराये के आधार और आसान किश्तों पर विभिन्न प्रकार के उपकरण और मशीनरी प्रदान की जाती हैं।

📌स्मार्ट प्रोजेक्ट: महाराष्ट्र राज्य कृषि व्यवसाय और ग्रामीण परिवर्तन (स्मार्ट) की महत्वाकांक्षी योजना राज्य के 10,000 गांवों में विश्व बैंक और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की जाएगी। इस योजना के तहत किसान उत्पादक कंपनियों को विभिन्न परियोजनाएं दी जाएंगी।

📌गैर-ब्याज वाला परियोजना ऋण: अन्नासाहेब पाटिल आर्थिक पिछड़ा विकास निगम रुपये का ब्याज मुक्त परियोजना ऋण प्रदान करेगा।


✅ऑल अबाऊट एफपीओ और कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्था, किसान उत्पादक कंपनियों के पंजीकरण और अन्य कानूनी मामलों के प्रबंधन के क्षेत्र में अग्रणी सेवाएं प्रदान करते हैं। पिछले 10 साल से एफपीओ के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आज तक, संगठन ने राज्य भर में और साथ ही राज्य के बाहर 100 से अधिक किसान उत्पादक कंपनियों को पंजीकृत किया है और उन्हें उनकी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने और विभिन्न योजनाओं और सरकारी अनुदानों का लाभ उठाने में मदद करता है।

✅FPO पंजीकरण के साथ FPO प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ सल्ला मुफ्त परामर्श और प्रश्नों और अन्य सुविधाओं को हल करना।

✅NABARD, NAFED, SFAC, और NCDC जैसे प्रमुख राष्ट्रीय संगठनों के साथ इम्पनलमेंट

✅MANAGE हैदराबाद और YCMOU नासिक का एक मान्यता प्राप्त एफपीओ प्रशिक्षण केंद्र।


✅ALL ABOUT FPO और कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थानों के बारे में किसानों को बहुत कम लागत पर 10 से 15 दिनों के भीतर एक किसान उत्पादक कंपनी (FPC) पंजीकृत करने में मदद करते हैं।

✅किसान उत्पादक कंपनी को पंजीकृत करने और उपरोक्त योजनाओं, अनुदानों और सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए आज ही हमसे संपर्क करें।

धन्यवाद


@ ALL ABOUT FPO कार्यालय: कृषि विकास और ग्रामीण प्रशिक्षण संस्था

मलकापुर, जिला- बुलढाणा 443101

ईमेल आईडी:

1) fporegistration@krushivikas.org

2) sudarshan.krushivikas@gmail.com

संपर्क नंबर: 8329694425

9975795695

Read more

Monday, December 20, 2021

बोरियों में अरहर की फसल लगाई

0

 ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है, ज्योति गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग समूह की मदद से कृषि विद्यालय में गए थे, जहां पर इसके बारे में पता चला। हम लोगों की पास इतनी जमीन तो होती नहीं कि जहां ट्रैक्टर से जुताई कर पाएं, इसलिए हमें ये बहुत सही लगा है, हमें इसकी पूरी जानकारी दी गई कि कैसे हम अपने घरों-घरों के

.

.

.ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है, ज्योति गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग समूह की मदद से कृषि विद्यालय में गए थे, जहां पर इसके बारे में पता चला। हम लोगों की पास इतनी जमीन तो होती नहीं कि जहां ट्रैक्टर से जुताई कर पाएं, इसलिए हमें ये बहुत सही लगा है, हमें इसकी पूरी जानकारी दी गई कि कैसे हम अपने घरों-घरों के आसपास बोरियों में फसलें लगा सकते हैं। मैंने 200 बोरियों में राहर (अरहर) की फसल लगाई है, जिसमें जमीन से ज्यादा फलियां लगी हैं।" 'जवाहर मॉडल' को जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जिसमें किसान के जुताई जैसे बहुत से खर्चे बच जाते हैं। इसके जरिए किसान अपनी बेकार और बंजर पड़ी जमीन में फसलें उगा सकते हैं, यही नहीं घर की खाली पड़ी छतों पर भी कई तरह की फसलें लगा सकते हैं।

.

.

.

.

.

.

.

.

.​​

https://tinyurl.com/


Read more

Wednesday, December 15, 2021

बथुआ के गुणकारी लाभ

0



बथुआ साग नहीं एक औषधि है  !

सागों का सरदार है बथुआ, सबसे अच्छा आहार है बथुआ !

बथुआ को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते हैं  !

इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है  !


साग और रायता बना कर बथुआ अनादि काल से खाया जाता रहा है ! लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए पलस्तर में बथुआ मिलाते थे !


हमारी बुजुर्ग महिलायें सिर से ढेरे व फाँस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुए के पानी से बाल धोया करती थीं !


बथुआ गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो हमारा भारत महान है !


बथुए में क्या-क्या है ? मतलब कौन-कौन से विटामिन और मिनरल्स हैं ?

तो सुनें, बथुए में क्या नहीं है !

बथुआ विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और C से भरपूर है तथा बथुए में कैल्शियम, लोहा , मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस , पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं !


100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं ! कुल मिलाकर 43 Kcal होती है !


जब बथुआ मट्ठा, लस्सी या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है ! साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डली हो तो इसे खाने के लिए देवता भी तरसते हैं !


जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डाक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली खाने की सलाह देते हैं ! गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व आयरन की गोली बताई जाती है ! बथुए में वो सब कुछ है ! कहने का मतलब है कि बथुआ पहलवानों से लेकर गर्भवती महिलाओं तक , बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है !


यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती ! बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है ! बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है !


बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें ! नमक न मिलाएँ तो अच्छा है , यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाएँ ! बथुए का उबला हुआ पानी अच्छा लगता है ! तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है !


किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें !

बथुए में जिंक होता है जो कि शुक्राणु वर्धक होता है ! मतलब किसी  को जिस्मानी  कमजोरी हो तो उसको भी दूर कर देता है बथुआ ! बथुआ कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोई भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी ! कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुये का साग मिलता रहे नित्य इसकी सब्जी खाएँ !


बथुये का रस, उबाला हुआ पानी पियें तो यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है ! पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी ! मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें , आधा रहने पर छानकर पी जाएँ , मासिक धर्म खुलकर आएगा ! आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ ! पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें ! बथुए को निचोड़कर पानी निकाल कर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें ! स्वाद के लिए नींबू , जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक डाल लें और पी जाएँ !


आप ने अपने दादा-दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुआ ही है ! मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुआ काम आता है ! हाँ अगर सिर के बाल धोते हैं, क्या करेंगे शेम्पू इसके आगे !


लेकिन अफसोस !


हम ये बातें भूलते जा रहे हैं और इस दिव्य पौधे को नष्ट करने के लिए अपने-अपने खेतों में रासायनिक जहर डालते हैं ! तथाकथित कृषि वैज्ञानिकों (अंग्रेज व काले अंग्रेज) ने बथुए को भी कोंधरा, चौलाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों को खरपतवार की श्रेणी में डाल दिया है और हम भारतीय चूँ भी न कर पाये !

Read more

Ads

 
Design by Sakshatkar.com | Sakshatkartv.com Bollywoodkhabar.com - Adtimes.co.uk | Varta.tv