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Monday, March 07, 2011

खीरा का उत्पादन कैसे करे

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खीरा जिसका वानस्पतिक नाम कुकुमिस सेताइबस है इसका सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान है इसका उपयोग मुख्या रूप से सलाद और अचार के लिए किया जाता है इसके फलो का उपयोग मुख्या रूप से सब्जी और खीर बनाने में किया जाता है |
प्रमुख जातियां - शीतल , प्वईन्सेट ,कल्यानपुर हरा लम्बा , पूना खीरा
बोने का समय - गरमी की फसल फरवरी से मार्च एवम बरसात की फसल जून जुलाई में लगाते है
बीज की मात्रा- एक हेक्टेयर की बुआई के लिए २-२.५ किलोग्राम बीज लगता है
बीज सोधन- बीज को शोधित करने के लिए थिरम या कैप्टान की दवा की ३ ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज के लिए पर्याप्त होती है दवा को बीज में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए
बीज की बुआई - खेत में कतार से कतार १.५- २.० मीटर के अंतर पर ३० सेमी चौड़ी नाली बना लेते है इस नाली के दोनों किनारों पर ३० - ४० सेमी की दूरी पर बीज की बुआई करते है एक जगह पर दो बीजो की बुआई करते है फसल ज़माने पर एक पौधा निकाल देते है तथा आवश्कता नुसार नालियों में सिचाई करते है
फलो की तुड़ाई - जब फल कोमल अवं मुलायम हो तभी तोड़ना चाहिए फलो की तुडाई ४-५ दिन के अंतर पर करना चाहिए
उपज- १५० कुंतल प्रति हेक्टेयर

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Wednesday, February 02, 2011

आलू का खेत में ही करे भण्डारण

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जालंदर स्थित केन्द्रीय आलू अनुसन्धान केंद्र ने आलू आलू स्टोरेज की की एक नयी तकनीक विकसित की है, इसके जरिये किसान आलू की फसल को ९०- १०० दिन तक खेत में ही स्टोरेज कर सकेगा इसके लिए किसान को ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा और बाजार में आलू की अच्छी कीमत ले सकेगा | इस तकनीक में किसान आलू की फसल को खुले में पेड़ के नीचे ढेर ९०- १०० दिन तक रख सकेगा सी आई पी सी (क्लोरो आसो प्रोफाएल फिनायेल कार्बामेट नामक रसायन का छिड़काव करना होगा, बाद में इसे धान की पुआल के नीचे स्टोर किया जा सकता है| इसमे छिद्रयुक्त पी वी सी पाईप खड़े किये जाते है , जिनसे इसमे से कार्बन डाई आक्साईड का विसर्जन होता रहे वैज्ञानिको के अनुसार खुले में स्टोर करने पर फसल को बरसात से बचाने के लिए सरकंडे की छत वाले वाले कच्चे मकान या टीन की ऊंची छत वाले कमरे में भी इसे स्टोर कर सकते है | इसमे लागत कम मुनाफा ज्यादा मिलता है

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Tuesday, March 30, 2010

धिगरी मसरूम का घरो में उत्पादन

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मसरूम या खुम्भ एक पौष्टीक तथा खाने योग्य कवक है इसमे २० - ३० % सुलभ प्रोटीन एवं लेयूसीन तथा ट्रिप्टोफेन नमक दुर्लभ अमीनो अम्ल पाए जाते है प्रोटीन के अलावा विटामीन सी व बी काफी मात्रा में होता है इसमे सर्करा व स्टार्च न होने के कारण मदुमेह एवं मोटापे के रोगीयों के लिए बरदान है ब्यवासायीक दृष्टी से भारत में तीन प्रकार के मसरूम का उतपादन किया जाता है जिसमे धीगरी मसरूम या प्लुरोताश कहते है इसे सितम्बर से मद्य अप्रैल में २० - २८ डिगरी सेटीग्रेट तापमान पर उगाया जा सकता है जिसकी आद्रता ८० से ८५ प्रतिसत तक हो इसे सेलुलोलोज युक्त पदार्थ जैसे गेहूं जौ बाजरा मक्का आदि किसी एक का भूसा लकड़ी का बुरादा रदी कागज़ आदि पर उगाया जा सकता है इसमे भूसा को स्वच्छ पानी में रात भर भिगो दे अगली सुबह अतरिक्त पानी निकाल दे इसे फफुदीनासक तथा फर्मीलीन का प्रयोग करके रोगाणु मुक्त करले इसके लिए १० ग्राम बबीस्तीन ५० यम यल फर्मीलीन को १०० लीटर पानी में दाल कार उपचार करने वाले भूसे को डूबायें भूसे को उपचारित करने के बाद ४० -६० ग्राम स्पान प्रती किलो भूसा चार परतों में में मिलाएं यदि ताप मान कम है तो स्पान की मात्रा २५ % तक बड़ा ले इसे छिद्र युक्त पोलीथीनो में जिनका आकार ४५ गुने ३० आकार की थैलियों में भरें दो तिहाई भरने के बाद इसके मुह को बांध दे इन थैलियो को अँधेरे हवादार स्थान या झोपणी में रख दे चार सप्ताह में मसरूम की फसल तैयार हो जाती है पहली कटाई करने के के बाद हल्का पानी का छिड़काव करना चाहिये १०-१२ दीं बाद दोसरी फसल तैयार हो जारी है सामान्यतः १ किलोग्राम मसरूम तैयार करने में २० रुपया का खरचा आता है १०० रू की दर से बेच कर ५ गुना मुनाफा कमाया जासकता है

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Friday, February 19, 2010

कृषि और रोजगार ब्लॉग में स्वागत

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कृषि और रोजगार में आप का स्वागत है

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