Wednesday, June 28, 2023
घनाजीवामृत के प्रयोग
0Sunday, June 25, 2023
जोहाधान:दुनियां का ऐसा चावल है जो कई गंभीर और लाइलाज बीमारियों के रोकथाम
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#जोहाधान #जोहाचावल #JOHAPADDY #JOHARICE
यह दुनियां का ऐसा चावल है जो कई गंभीर और लाइलाज बीमारियों के रोकथाम
व इलाज में सबसे कारगर माना गया है। यह चावल असम में जी आई टैग प्राप्त चावल है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा कराए गए एक शोध में इसमें कई ऐसे तत्व पाए गए हैं जो किसी दूसरे चावल में नहीं होता है। इसका नाम है जोहा चावल। यह किस्म 150-160 दिन में पक कर तैयार होती है।
इसकी अन्य किस्मों में कोला जोहा (काली जीरा, कोला जोहा 1, कोला जोहा 2, कोला जोहा 3), केटेकी जोहा और बोकुल जोहा के दाने मध्यम पतले प्रकार के होते हैं लेकिन कोन जोहा (कुंकिनी जोहा, माणिकी माधुरी जोहा और कोनजोहा) के दाने छोटे पतले प्रकार के होते हैं. इसे हार्ट, कैंसर, डायबिटीज सहित कई गंभीर बीमारियो में प्रभावी माना जाता है।
sabhar facebook.com wallMonday, May 22, 2023
Thursday, May 18, 2023
पशुओं के प्रमुख संक्रामक रोग लक्षण एवं बचाव
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एक पशु से दूसरे पशु में फैलने वाले रोग जो वैक्टीरिया, वाइरस से पनपते हैं को संक्रामक रोग कहते हैं । पशुपालक जानते हैं कि संक्रामक रोगों द्वारा दुधारू पशुओं में भारी आर्थिक हानि होती है।
पशुओं के प्रमुख संक्रामक रोग निम्न हैं
। 1- खुरपका-मुहपका रोग (Foot & Mouth Disease) • यह विषाणु जनित संक्रामक रोग हैं।
इस रोग में तेज बुखार आता है जो 40 डिग्री सेन्टीग्रेड तक पहुँचता है।
मुँह में छाले हो जाते हैं व लार टपकती रहती है ।
खुर में घाव हो जाने के कारण पशु एक स्थान पर खड़ा नहीं रह पाता है।
पशु लंगडाकर चलता है।
घाव में कीड़े पड़ जाते हैं ।
मुँह में छाले पड़ जाने के कारण पशु खाना-पानी छोड़ देता है ।
इस रोग के कारण दुग्ध उत्पादन में अत्याधिक कमी आ जाती है । (गर्भपात भी हो जाता है)
बचाव :
प्रदेश में निःशुल्क टीकाकरण किया जाता है।
टीका वर्ष में दो बार लगाया जाता है । (मार्च / अप्रैल एवं सितम्बर / अक्टूबर) बीमार होने पर उपाय : 1
यदि पशु रोग से ग्रसित हो तो स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखना चाहिए। रोगी
से धोना चाहिये तथा खुर 1 प्रतिशत कापर सल्फेट के घोल से धोना चाहिये । 2- रैबीज (Rabies)
पशु का मुँह 2 प्रतिशत फिटकरी के घोल
यह रोग वाइरस जनित है तथा पागल कुत्ते, सियार, नेवले के काटने से होता है।
प्रमुख लक्षण
पशु को उग्र होना । ●
मुँह से लार टपकना ।
●
● रोगी पशु द्वारा कंकड / मिट्टी को पकड़ कर चबाने का प्रयास करना । ● पशु का लकवा होता है।
पश को लकवा भी हो जाता है ।
ग्रसित पशु के काटने से व लार लगने से मनुष्य में भी यह रोग फैल जाता है।
● रोग संज्ञान में आने पर पशु को अन्य पशुओं से अलग बाँधना चाहिये तथा पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिये ।
3- गला घोटू (Haemorrhagic Septicemia) यह जीवाणु जनित रोग है। इस रोग में 40-41 डिग्री
सेल्सियस तक बुखार होता है।
गले में सूजन आ जाती है। सांस लेने में कठिनाई होती
है तथा घर-घुर की आवाज आती है।
: चिकित्सा न होने पर रोगी पशु की मृत्यु हो जाती है।
यह भी जीवाणु जनित रोग
यह रोग मुख्यतः 6 माह से 2 वर्ष की आयु के स्वस्थ्य पशुओं में अधिक होता है।
प्रमुख लक्षण में :
• तेज बुखार आना
पैर व पुट्ठों में सूजन आना
और सूजन के दबाव से चरचराहट की आवाज आती है। बचाव :
रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में मई-जून में विभाग द्वारा निःशुल्क टीकाकरण विभाग द्वारा लगाया जाता है। .
U बीमार पशुको एन्टी ब्लैक क्वाटर सीरम लगवाना चाहिये ।
· मरे पशु को जमीन में गाड़ देते हैं, जिससे कि अन्य पशुओं में संक्रमण न हो सके।
5 - क्षय रोग (Tuberclosis)
यह जीवाणु जनित रोग है।
प्रमुख लक्षण में :
• रोगी पशु के फेफड़े में गाँठे पड़ जाती हैं।
•
दुधारू पशु में थन के अन्दर गाँठ सी पड़ जाती है । उपरोक्त लक्षण मिलने पर तत्काल नजदीक के पशुचिकित्सालय में सम्पर्क करें। अन्य
यह रोग आम तौर पर बरसात में होता है परन्तु वर्ष में कमी भी हो सकता है।
बचाव : रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में प्रति वर्ष मई-जून माह में टीका निःशुल्क लगाया जाता है। रोग हो जाने पर बीमार पशु को अलग रखना चाहिये तथा उपचार कराये ग्रसित पशुओं को धुंआ नहीं देना चाहिये तथा खुले स्थान पर रखना चाहिये ।
4- लंगडिया बुखार (Black Quarter)
Friday, July 22, 2022
धान की खेती कैसे करें उन्नत आधुनिक खेती
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- स्थानीय परिस्थितियों जैसे क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी, सिंचाई साधन, जल भराव तथा बुवाई एवं रोपाई की अनुकूलता के अनुसार ही धान की संस्तुत प्रजातियों का चयन करें।
- शुद्ध प्रमाणित एवं शोधित बीज बोयें।
- मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों, हरी खाद एवं जैविक खाद का समय से एवं संस्तुत मात्रा में प्रयोग करें।
- उपलब्ध सिंचन क्षमता का पूरा उपयोग कर समय से बुवाई/रोपाई करायें।
- पौधों की संख्या प्रति इकाई क्षेत्र सुनिश्चित की जाय।
- कीट रोग एवं खरपतवार नियंत्रण किया जाये।
- कम उर्वरक दे पाने की स्थिति में भी उर्वरकों का अनुपात 2:1:1 ही रखा जाय।
धान की खेती कैसे करें सम्पूर्ण जानकारी
01. भूमि की तैयारी
गर्मी की जुताई करने के बाद 2-3 जुताइयां करके खेत की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही खेत की मजबूत मेड़बन्दी भी कर देनी चाहिए ताकि खेत में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके। अगर हरी खाद के रूप में ढैंचा/सनई ली जा रही है तो इसकी बुवाई के साथ ही फास्फोरस का प्रयोग भी कर लिया जाय। धान की बुवाई/रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व खेत की सिंचाई कर दें, जिससे कि खरपतवार उग आवे, इसके पश्चात् बुवाई/रोपाई के समय खेत में पानी भरकर जुताई कर दें।
02. धान की प्रजातियों का चयन
प्रदेश में धान की खेती असिंचित व सिंचित दशाओं में सीधी बुवाई एवं रोपाई द्वारा की जाती है। विभिन्न जलवायु, क्षेत्रों और परिस्थितियों के लिए धान की संस्तुत प्रजातियों के गुण एवं विशेषतायें नीचे दिया गया है।
1. असिंचित दशा शीघ्र पकने वाली
- सीधी बुवाई – गोविन्द‚नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97, गोविन्द‚नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97, शुष्क सम्राट,
- रोपाई – गोविन्द‚ नरेन्द्र-80, शुष्क सम्राट, मालवीय धान-2, नरेन्द्र-118
2. सिंचित दशा शीघ्र पकने वाली (100-120) दिन
नरेन्द्र-118 नरेन्द्र-97 शुष्क सम्राट मालवीय धान-2, मनहर, पूसा-169, नरेन्द्र-80, पन्त धान-12, पन्त धान-10
3. मध्यम अवधि में पकने वाली (120-140 दिन)
पन्त धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, पूसा-44, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान-3112-1
4. देर से पकने वाली (140 दिन से अधिक)
- सुगन्धित धान – टा-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा-बासमती-1, पूसा सुगन्ध-4 एवं 5, बल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, तारावडी बासमती, स्वर्णा, महसूरी
- ऊसरीली – साकेत-4‚ झोना-349 साकेत-4, बासमती-370, पूसा बासमती-1, वल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, नरेन्द्र सुगंध
04. शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का चयन
प्रमाणित बीज से उत्पाद अधिक मिलता है और कृषक अपनी उत्पाद (संकर प्रजातियों को छोड़कार) को ही अगले बीज के रूप में सावधानी से प्रयोग कर सकते है। तीसरे वर्ष पुनः प्रमाणित बीज लेकर बुवाई की जावे।
05. उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं विधि
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना उपयुक्त है। यदि किसी कारणवश मृदा का परीक्षण न हुआ तो उर्वरकों का प्रयोग निम्न प्रकार किया जायः
सिंचित दशा में रोपाई (अधिक उपजदानी प्रजातियां : उर्वरक की मात्राः किलो/हेक्टर)
प्रजातियां नत्रजन फास्फोरस पोटाश शीघ्र पकने वाली 120 60 60 प्रयोग विधिः नत्रजन की एक चौथाई भाग तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा कूंड में बीज के नीचे डालें, शेष नत्रजन का दो चौथाई भाग कल्ले फूटते समय तथा शेष एक चौथाई भाग बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें। प्रजातियां नत्रजन फास्फोरस पोटाश मध्यम देर से पकने वाली प्रयोग विधि 150 60 60 सुगन्धित धान (बौनी) प्रयोग विधि 120 60 60 देशी प्रजातियां : उर्वरक की मात्रा-कि०/हे०
शीघ्र पकने वाली 60 30 30 मध्यम देर से पकने वाली 60 30 30 सुगन्धित धान 60 30 30 प्रयोग विधिः रोपाई के सप्ताह बाद एक तिहाई नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें। दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग न करें। सीधी बुवाई
उपज देने वाली प्रजातियाँ
नत्रजन फास्फोरस पोटाश 100-120 50-60 50-60 प्रयोग विधिः फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नत्रजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद, एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा बाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें। देशी प्रजातियां: उर्वरक की मात्राः किलो/हेक्टर
नत्रजन फास्फोरस पोटाश 60 30 30 प्रयोग विधिः तदैव वर्षा आधारित दशा में: उर्वरक की मात्रा- किलो/हेक्टर देशी प्रजातियां : उर्वरक की मात्रा-कि०/हे०
नत्रजन फास्फोरस पोटाश 60 30 30 प्रयोग विधिः सम्पूर्ण उर्वरक बुवाई के समय बीज के नीचे कूंडों में प्रयोग करें। नोटः लगातार धान- गेहूँ वाले क्षेत्रों में गेहूँ धान की फसल के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन/हे० गोबर की खाद का प्रयोग करें।
06. जल प्रबन्ध
देश में सिंचन क्षमता के उपलब्ध होते हुए भी धान का लगभग 60-62 प्रतिशत क्षेत्र ही सिचिंत है, जबकि धान की फसल को खाद्यान फसलों में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने, बाली निकलने फूल, खिलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना चाहिए। फूल खिलने की अवस्था पानी के लिए अति संवेदनशील हैं। परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है।
इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5-7 सेमी० सिंचाई करना उपयुक्त होता है। यदि वर्षा के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई दे तो सिंचाई अवश्य करें। खेत में पानी रहने से फास्फोरस, लोहा तथा मैंगनीज तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते हैं।
धान में फसल सुरक्षा
धान के प्रमुख कीट
- दीमक
- जड़ की सूड़ी
- पत्ती लपेटक
- नरई कीट
- गन्धी बग
- पत्ती लपेटक
- सैनिक कीट
- हिस्पा
- बंका कीट
- तना बेधक
- हरा फुदका
- भूरा फुदका
- सफेद पीठ वाला फुदका
- गन्धी बग
धान में लगने वाले ये प्रमुख कीट है। अगर समय रहते इसका नियंत्रण नहीं किया गया तब फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते है। इसके नियंत्रण के लिए इसे धान में लगने वाले प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के उपाय
प्रमुख रोग
- सफेदा रोग
- खैरा रोग
- शीथ ब्लाइट
- झोंका रोग
- भूरा धब्बा
- जीवाणु झुलसा
- जीवाणु धारी
- मिथ्य कण्ड
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