गर्मियों में अगेती किस्म की बेल वाली सब्जियों को मचान विधि से लगाकर किसान अच्छी उपज पा सकते हैं। इनकी नर्सरी तैयार करके इनकी खेती की जा सकती है। पहले इन सब्जियों की पौध तैयार की जाती है और फिर मुख्य खेत में जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाये रोपण किया जाता है। इन सब्जियों की पौध तैयार करने
मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है। मचान विधि से खेती करने से कई लाभ हैं। मचान में खेत में बांस या तार का जाल बनाकर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है। मचान का प्रयोग सब्जी उत्पादक बेल वाली सब्जियों को उगाने में करते हैं। मचान के माध्यम से किसान 90 प्रतिशत फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है।
करेला।
मचान की खेती के रूप में सब्जी उत्पादक करेला, लौकी, खीरा, सेम जैसी फसलों की खेती की जा सकती है। बरसात के मौसम में मचान की खेती फल को खराब होने से बचाती है। फसल में यदि कोई रोग लगता है तो तो मचान के माध्यम से दवा छिड़कने में भी आसानी होती है।
उद्यान विभाग के शाक सब्जी विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. एमपी यादव बताते हैं, ''मचान विधि से खेती करने से किसानों को बहुत से फायदे होते हैं, किसान अपने जि़ले के उद्यान अधिकारी से जायद मौसम की लौकी, खीरा, करेला, तरबूज जैसी बेल वाली सब्जियों की उन्नतशील बीजों को खरीद सकते हैं।
बाराबंकी जि़ले के मसौली ब्लॉक के मेढ्यिा गाँव के किसान रिंकू वर्मा पिछले कई साल से मचान विधि से ही सब्जियों की खेती करते आ रहे हैं। रिंकू वर्मा कहते हैं, ''पहले मैं जमीन पर ही सब्जी की फसलें बोता था, लेकिन जब से मचान विधि से खेती कर रहा हूं, इससे ज्यादा लाभ हो रहा है।''
खेत की अन्तिम जुताई के समय 200-500 कुन्तल सड़ी-गली गोबर की खाद मिला देना चाहिए। सामान्यत: अच्छी उपज लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 240 किग्रा यूरिया, 500 किग्रा सिगंल सुपर फास्फेट एवं 125 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटास की आवश्यकता पड़ती है। इसमे सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटास की पूरी मात्रा और युरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालते है।
लौकी।
यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20-25 दिन बाद देकर मिट्टी चढ़ा देते है तथा चौथाई मात्रा 40 दिन बाद टापड्रेसिंग से देना चाहिए। लेकिन जब पौधों को गढढ़े में रोपते है तो प्रत्येक गढढ़े में 30.40 ग्राम यूरियाए 80.100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 40.50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास देकर रोपाई करते है।
पौधों को मिट्टी सहित निकाल कर में शाम के समय रोपाई कर देते है। रोपाई के तुरन्त बाद पौधों की हल्की सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए। रोपण से 4-6 दिन पहले सिंचाई रोक कर पौधों का कठोरीकरण करना चाहिए। रोपाई के 10-15 दिन बाद हाथ से निराई करके खरपतवार साफ कर देना चाहिए और समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। पहली गुड़ाई के बाद जड़ो के आस पास हल्की मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
मचान बनाने की विधि
इन सब्जियों में सहारा देना अति आवश्यक होता है सहारा देने के लिए लोहे की एंगल या बांस के खम्भे से मचान बनाते है। खम्भों के ऊपरी सिरे पर तार बांध कर पौधों को मचान पर चढ़ाया जाता है। सहारा देने के लिए दो खम्भो या एंगल के बीच की दूरी दो मीटर रखते हैं लेकिन ऊंचाई फसल के अनुसार अलग-अलग होती है सामान्यता करेला और खीरा के लिए चार फीट लेकिन लौकी आदि के लिए पांच फीट रखते है ।
इन सब्जियों में कई प्रकार के कीड़े व रोग नुकसान पहुचाते है। इनमें मुख्यत:लाल कीड़ा, फलमक्खी, डाउनी मिल्डयू मुख्य है।लाल कीड़ा, जो फसल को शुरु की अवस्था में नुकसान पहुचाता है, को नष्ट करने के लिए इन फसलो में सुबह के समय मैलाथियान नामक दवा का दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर पौधों एवं पौधों के आस पास की मिट्टी पर छिड़काव करना चाहिए।
चैम्पा तथा फलमक्खी से बचाव के लिए एण्डोसल्फान दो मिली लीटर दवा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बना कर पौधों पर छिड़काव करें। चूर्णिल आसिता रोग को नियंत्रित करने के लिए कैराथेन या सल्फर नामक दवा 1.2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। रोमिल आसिता के नियंत्रण हेतु डायथेन एम-45, 1-5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। दुसरा छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करना चाहिए।
उपज
इस विधि द्वारा मैदानी भागो में इन सब्जियो की खेती लगभग एक महीने से लेकर डेढ़ महीने तक अगेती की जा सकती है तथा उपज एवं आमदनी भी अधिक प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार खेती करने से टिण्डा की 100-150 कुंतल लौकी की 450-500 कुंतल तरबूज की 300-400 कुंतल, खीरा, करेला और तोरई की 250-300 कुंतल उपज प्रति हेक्टेयर की जा सकती है।Sambhar gaavconection.com
बैंगन की खेती भारत और चीन में ज्यादा की जाती है. ऊंचे पहाड़ि इलाकों को छोड़कर पुरे देश में इसकी खेती की जा सकती है. क्यों की भारत की जलवायु गर्म होती है और ये began ki kheti के लिए उपयुक्त रहती है. बैंगन की बहुत सारी किस्में होती है. में कुछ विशेष किस्मों के बारे में यहाँ पर बताउगा जो hiybird है. और अच्छा उत्पादन देने वाली होती है. 1 पूसा hibird 5 इसमे पौधा बड़ा और अच्छी शाखाओं युक्त होता है. ये फसल 80 से 90 दिनों आ जाती है. प्रति हेक्टेयर 450 से 600 क्विंटल होती है. 2 पूसाhibird 6 गोल फल लगते है. 85 से 90 दिनों की औसत प्रति हेक्टेयर 500 से 600 क्विंटल 3 पूसा hibird 9 85 से 90 दिनों में फल लगते है. औसत 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इसके अलावा पूसा क्रांति,पूसा भैरव,पूसा बिंदु,पूसा उत्तम ,पूसा उपकार,पूसा अंकुर, जो की प्रति हेक्टेयर 200 से 400 क्विंटल तक उत्पादन देते है.
margin: 0px; padding: 0px; font-family: inherit; border: none;">कैसे करें नर्सरी तैयार नर्सरी तैयार करने के लिए खेत की मिट्टी को अच्छे से देसी खाद् (गोबर) को मिट्टी की सतह पर बिखेर कर फिर जुताई करे. (अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अवश्य करावे ताकि उचित मात्रा में खाद् दे सके) जुताई होने के बाद उठी हुई क्यारियां बना ले फिर एक हेक्टेयर के लिए hibird बीज 400 ग्राम तक काफी होता है. बनी हुई क्यारियों में 1 से.मी. की गहराई में 6 से 7 सेमी. की दूरी पर बीजो को डाल दे. फिर उसे पर्याप्त मात्रा में पानी देते रहे . कब करे बुआई उसे तो इस फसल को पुरे वर्ष में सभी ऋतुओ में लगाया जा सकता है. लेकिन में आपको माह से बता देता है. नर्सरी मई जून में करने पर बुआई 1 या डेढ़ माह में यानि जून या जुलाई तक कर सकते है. जो नर्सरी नवम्बर में लगाते है उसे जनवरी में शीत लहर और पाले का प्रकोप से बचा कर लगा सकते है. जो नर्सरी फरवरी और मार्च में लगाते है उसे मार्च लास्ट और अप्रैल तक की जा सकती है. कैसे करे खेत तैयार नर्सरी में पौधे तैयार होने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण कार्य होता है खेत को तैयार करना . मिट्टी परीक्षण करने के बाद खेत में एक हेक्टेयर के लिए 4 से 5 ट्रॉली पक्का हुआ गोबर का खाद् बिखेर दे.उसके बाद 2 बेग यूरिया 3 बेग सिंगल सुपर फास्फेट और पोटेशियम सल्फ़ेट की मात्रा ले कर जुताई करे. फिर खेत में 70 सेमी. की दूरी पर क्यारियां बना लीजिए अब पोधों को 60×60 सेमी. या 60×50 में पोधों की रोपाई करे. बैंगन की फसल में लगने वाले रोग
none;">नर्सरीमेंलगनेवालेरोग आद्रगलन(डम्पिंगऑफ़) यह एक कवक है जो पोधों को बहार से निकलने से पूर्व ही ख़त्म कर देता है. और बहार निकलने के बाद भी पोधों को सूखा देता है. रोपाईकेबादलगनेवालेरोग झुलसा sabar palpalindia.com
खीरा जिसका वानस्पतिक नाम कुकुमिस सेताइबस है इसका सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान है इसका उपयोग मुख्या रूप से सलाद और अचार के लिए किया जाता है इसके फलो का उपयोग मुख्या रूप से सब्जी और खीर बनाने में किया जाता है | प्रमुख जातियां - शीतल , प्वईन्सेट ,कल्यानपुर हरा लम्बा , पूना खीरा बोने का समय - गरमी की फसल फरवरी से मार्च एवम बरसात की फसल जून जुलाई में लगाते है बीज की मात्रा- एक हेक्टेयर की बुआई के लिए २-२.५ किलोग्राम बीज लगता है बीज सोधन- बीज को शोधित करने के लिए थिरम या कैप्टान की दवा की ३ ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज के लिए पर्याप्त होती है दवा को बीज में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए बीज की बुआई - खेत में कतार से कतार १.५- २.० मीटर के अंतर पर ३० सेमी चौड़ी नाली बना लेते है इस नाली के दोनों किनारों पर ३० - ४० सेमी की दूरी पर बीज की बुआई करते है एक जगह पर दो बीजो की बुआई करते है फसल ज़माने पर एक पौधा निकाल देते है तथा आवश्कता नुसार नालियों में सिचाई करते है फलो की तुड़ाई - जब फल कोमल अवं मुलायम हो तभी तोड़ना चाहिए फलो की तुडाई ४-५ दिन के अंतर पर करना चाहिए उपज- १५० कुंतल प्रति हेक्टेयर
जालंदर स्थित केन्द्रीय आलू अनुसन्धान केंद्र ने आलू आलू स्टोरेज की की एक नयी तकनीक विकसित की है, इसके जरिये किसान आलू की फसल को ९०- १०० दिन तक खेत में ही स्टोरेज कर सकेगा इसके लिए किसान को ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा और बाजार में आलू की अच्छी कीमत ले सकेगा | इस तकनीक में किसान आलू की फसल को खुले में पेड़ के नीचे ढेर ९०- १०० दिन तक रख सकेगा सी आई पी सी (क्लोरो आसो प्रोफाएल फिनायेल कार्बामेट नामक रसायन का छिड़काव करना होगा, बाद में इसे धान की पुआल के नीचे स्टोर किया जा सकता है| इसमे छिद्रयुक्त पी वी सी पाईप खड़े किये जाते है , जिनसे इसमे से कार्बन डाई आक्साईड का विसर्जन होता रहे वैज्ञानिको के अनुसार खुले में स्टोर करने पर फसल को बरसात से बचाने के लिए सरकंडे की छत वाले वाले कच्चे मकान या टीन की ऊंची छत वाले कमरे में भी इसे स्टोर कर सकते है | इसमे लागत कम मुनाफा ज्यादा मिलता है