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Tuesday, March 04, 2025

चीना का भात

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 🍁चीना(चीणा) शायद अब ये फसल विलुप्त हो चुकी है या बहुत कम मात्रा में उगाई जा रही है, कई वर्षों से देखा नही इस फसल को❣️

🌾चीना का भात खाने का जिसे भी सौभाग्य मिला है वह जानता है कि यह कितना टेस्टी होता है। पहले यह चावल का विकल्प था। इसको खाने में सबसे बड़ी सावधानियां है कि अगर आप इसे दाल या दही के साथ खा रहे हैं तो अपनी अपने साथ रखिए। चीना भारत में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण लघु फसल है। फसल जल्दी पकने के कारण सूखे से बचने में सक्षम है। अपेक्षाकृत कम पानी की आवश्यकता वाली कम अवधि की फसल (60 -90 दिन) होने के कारण, यह सूखे की अवधि से बच जाती है और इसलिए शुष्क भूमि क्षेत्रों में गहन खेती के लिए बेहतर संभावनाएं प्रदान करती है। असिंचित परिस्थितियों में, बाजरा आमतौर पर खरीफ मौसम के दौरान उगाया जाता है, लेकिन जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहां उच्च तीव्रता वाले चक्रों में ग्रीष्म फसल के रूप में इसे लाभप्रद रूप से उगाया जाता है।यह एक सीधा शाकीय वार्षिक पौधा होता है जो प्रचुर मात्रा में उगता है। इसका पौधा 45-100 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। तना स्पष्ट रूप से सूजे हुए गांठों के साथ पतला होता है। जड़ें रेशेदार और उथली होती हैं। पत्तियाँ रेखीय, पतली होती हैं और पत्ती आवरण पूरे इंटर्नोड को घेरता है।चीना की पौष्टिकता प्रमुख अनाज की फसलों से बेहतर है। यह कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज, आयरन और जस्ता जैसे खनिजों का एक अच्छा स्त्रोत है। इसमें सभी आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं। इसका आवश्यक अमीनो एसिड इंडेक्स 51 प्रतिशत है जो गेहूं की तुलना में अधिक है।

🌾 चीना का सेवन ब्लडप्रेशर और मधुमेह के मरीजों के लिए रामबाण होता है. चीना भिंगोकर, सुखाकर और भूनकर खा सकते हैं. इसे भात, खीर, रोटी आदि बनाकर खाया जाता है. पोषक तत्वों और फाइबर से भरपूर है. प्रति 100 ग्राम चीना में 13.11 ग्राम प्रोटीन और 11.18 ग्राम फाइबर के अतिरिक्त बड़ी मात्रा में आयरन और कार्बोहाइड्रेट पाये जाते हैं. इसलिए इसे पोषक तत्व फसल कहते हैं। इसका भात दही के साथ गजब का स्वाद देता है और भूनकर गुड मिलाकर खाने में भी  मज़ेदार होता है @highlight #viralpage #indianwedding #hindustan #quotes #memes #indian #धरोहर साभार Facebook 

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Monday, March 03, 2025

बारहों महीने फूल देने वाले ये पौधे -- चमेली, गुड़हल, रंगून क्रीपर, अपराजिता और विंका

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 12 महीने फूल देने वाले ये पौधे -- चमेली, गुड़हल, रंगून क्रीपर, अपराजिता और विंका


—सही देखभाल करने पर सालभर खिलते रहते हैं। इनसे अधिक फूल पाने के लिए नीचे दिए गये सुक्षाव के बारे में अवश्य पढ़ें।


1. चमेली (Jasmine)


धूप: पूरे दिन की धूप (कम से कम 5-6 घंटे) जरूरी है।


पानी: गमले में हो तो रोज हल्का पानी दें; ज़मीन में लगे हों तो 2-3 दिन में एक बार पानी दें।


खाद: हर महीने गोबर की खाद डालें और 2 महीने में एक बार फ़ॉस्फोरस युक्त खाद (जैसे हड्डी चूर्ण या डीएपी) दें।


छंटाई: सूखी और पुरानी टहनियों को काटें ताकि नई कोंपलें निकलें और ज्यादा फूल आएं।


2. गुड़हल (Hibiscus)


धूप: कम से कम 4-5 घंटे की धूप में रखें।


पानी: रोज पानी दें, लेकिन मिट्टी में जलभराव न होने दें।


खाद: हर 15 दिन में एक बार गोबर खाद या वर्मी कंपोस्ट डालें। हर महीने सरसों खली और पोटाश युक्त खाद डालने से अधिक फूल आते हैं।


छंटाई: नियमित रूप से हल्की छंटाई करने से ज्यादा फूल लगते हैं।


3. रंगून क्रीपर (Rangoon Creeper)


धूप: पूरी धूप में रखें, यह छायादार जगह में अच्छे फूल नहीं देता।


पानी: गर्मी में रोज और सर्दियों में 2-3 दिन में एक बार पानी दें।


खाद: हर महीने गोबर की खाद और बोन मील डालें।


छंटाई: बेल को समय-समय पर काटकर आकार दें, ताकि यह घनी और फूलों से भरपूर बनी रहे।


4. अपराजिता (Butterfly Pea)


धूप: 5-6 घंटे की धूप जरूरी है।


पानी: हल्की नमी बनाए रखें, लेकिन मिट्टी में पानी जमा न हो।


खाद: हर 15 दिन में जैविक खाद (गाय का गोबर, सरसों खली) डालें।


छंटाई: नई शाखाओं को बढ़ावा देने के लिए बेल की हल्की छंटाई करें।


5. विंका (Sadabahar / Periwinkle)


धूप: सीधी धूप में रखें, इससे ज्यादा फूल आते हैं।


पानी: गर्मियों में रोज और सर्दियों में 2-3 दिन में एक बार पानी दें।


खाद: हर महीने जैविक खाद डालें। फॉस्फोरस और पोटाश युक्त खाद देने से अधिक फूल लगते हैं।


छंटाई: जब पौधा लंबा हो जाए, तो ऊपर से हल्की कटाई करें ताकि नए फूल आएं।


 सुझाव:-


गर्मी में अधिक पानी दें और सर्दियों में पानी कम करें।


कीट नियंत्रण: नीम तेल का स्प्रे करें ताकि कीड़े न लगें।


गमले का चुनाव: बड़े गमले में पौधा तेज़ी से बढ़ता है और ज्यादा फूल देता है।


जैविक खाद का उपयोग करें, जैसे गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट, हड्डी चूर्ण, और सरसों खली। साभार Facebook आशियाना ख्यालों का 

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दुर्लभ देशी सब्जियों के बीजों का संरक्षण

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 तमिलनाडु के मंगलम गांव के 32 वर्षीय किसान सलाई अरुण ने अपनी मेहनत और समर्पण से 300 से अधिक दुर्लभ देशी सब्जियों के बीजों का संरक्षण


किया है। बचपन से खेती में रुचि रखने वाले अरुण ने 2011 में जैविक कृषि वैज्ञानिक जी. नम्मालवर से प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिससे उनका खेती के प्रति जुनून और बढ़ गया। 


अरुण ने देखा कि किसानों के पास देसी सब्जियों के बीजों की कमी है। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने 2021 में देशभर की यात्रा करने का निर्णय लिया, हालांकि उस समय उनकी जमा पूंजी मात्र 300 रुपये थी। इसके बावजूद, उन्होंने लगभग 80,000 किलोमीटर की यात्रा की और 500 से अधिक किसानों से मिलकर 300 से अधिक दुर्लभ सब्जियों के बीज एकत्रित किए। 


अपने गांव में अरुण ने एक छोटे से बगीचे में इन लुप्तप्राय देशी फल-सब्जियों को उगाना शुरू किया। उन्होंने 'कार्पागथारू' नाम से एक बीज बैंक की स्थापना की, जिसके माध्यम से वे लौकी की 15, बीन्स की 20, टमाटर, मिर्च और तोरई की 10-10 किस्मों सहित कई अन्य सब्जियों के बीज उपलब्ध करा रहे हैं। 


अरुण की यह पहल न केवल जैविक खेती को बढ़ावा देती है, बल्कि देशी बीजों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। उनकी कहानी प्रेरणादायक है और यह दर्शाती है कि समर्पण और मेहनत से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। साभार Facebook wall

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Sunday, March 02, 2025

रजनीगंधा उगाने का तरीका

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 रजनीगंधा (Tuberose) उन फूलों में से एक हैं जो सबसे ज्यादा खुशबूदार होते हैं और इनकी खुशबू इतनी ज्यादा होती हैं कि एक बार ये घर पर उगने लगें तो पूरा घर महकने लगता हैं। रजनीगंधा को बहुत आसानी से गमले में उगा सकते हैं।


■ रजनीगंधा उगाने का तरीका


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रजनीगंधा के पौधे को आखिरी ठंड के बाद बसंत में लगाना चाहिए। भारत में मार्च से अप्रैल के बीच रजनीगंधा के पौधे का रोपण करना अच्छा रहता हैं। आप इसे उगाने के लिए इसके कंद (bulbs) किसी नर्सरी या फिर ऑनलाइन स्टोर से खरीद लीजिए। इसके कंद को लगाने के लिए वेल-ड्रेन मिट्टी चाहिए। अगर आपके पास नॉर्मल गार्डन की मिट्टी हैं तो आप उसे 60% लें और बाकी 40% में कोकोपीट, कम्पोस्ट और रेत मिलाएं। फिर इस मिट्टी को गमले में भरें और रजनीगंधा के कंद को मिट्टी में तीन से चार इंच की गहराई में डालें। ध्यान दें कंद का नुकीला सिरा ऊपर की ओर रहे। फिर इसे मिट्टी से पूरी तरह ढ़क दें और पानी डालकर गमले को ऐसी जगह रखें, जहां कम से कम 4-5 घंटे की धूप आती हो। हफ्ते में केवल दो-तीन बार ही पानी डालें, ज्यादा पानी डालने से कंद सड़कर खराब भी हो सकते हैं, लगभग 10 से 15 दिन में रजनीगंधा के कंद अंकुरित होने लगते हैं।


■ रजनीगंधा के पौधे की देखभाल कैसे करें :-


▪︎ रजनीगंधा लगाने के बाद उसकी मेंटेनेंस के लिए आपको सबसे पहले ये ध्यान रखना हैं कि इसे मीडियम पानी दें। न तो बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम, इसकी मिट्टी सूखनी नहीं चाहिए। हां, जब ये जर्मिनेट हो जाए तो थोड़ा और पानी दे सकते हैं।


▪︎ रजनीगंधा के पौधे को ऐसी जगह पर रखें जहां कम से कम 4-5 घंटे की धूप पड़ती हो। रजनीगंधा 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे का तापमान बर्दाश्त नहीं कर सकता और इसलिए इसे सर्दियों में न उगाएं। 


▪︎ इसमें ज्यादा पोटैशियम वाला कोई भी फर्टिलाइजर डाल सकते हैं। आप चाहें तो इसमें केले के छिलके का लिक्विड फर्टिलाइजर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।


▪︎ इसका ग्रोइंग सीजन करीब 4 महीने का रहता हैं और एक बार पौधा फूल देने लगे तो आप उन्हें काटकर अपने घर को डेकोरेट कर सकते हैं। इससे पौधे की ग्रोथ पर या आने वाले फूलों पर कोई असर नहीं होगा। पोस्ट पसंद आया हो तो Like करके इस पेज को Follow जरूर करें, धन्यवाद 


#rajnigandha #fragrantplants #flowerplants #plants #flowers #gardening #ashiyanakhayalonka साभार 

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Saturday, March 01, 2025

आम के पेड़ में आने लगे मंजर, कीट से बचाव के लिए अपनाएं ये उपाय

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 आम के पेड़ में आने लगे मंजर, कीट से बचाव के लिए अपनाएं ये उपाय


आम के पेड़ों में मंजर (बौर) लगने का समय आ गया है, लेकिन इसके साथ ही कीट और बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। अगर सही समय पर रोकथाम नहीं की गई, तो उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इसलिए किसान अभी से आम के मंजरों की सही देखभाल शुरू कर दें, ताकि फसल अच्छी हो और बाजार में ऊंचे दाम मिल सकें।


मंजर को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीट और रोकथाम


फूलों की झुलसा (पाउडरी मिल्ड्यू)


लक्षण: फूलों पर सफेद पाउडर जैसा धब्बा


उपाय: 0.1% कार्बेन्डाजिम या 0.2% गंधक घोल का छिड़काव


माहू (एफिड्स)


लक्षण: मंजरों पर छोटे हरे-भूरे कीड़े जो रस चूसते हैं


उपाय: 1.5 मिली डाइमिथोएट 30% EC या 2 मिली इमिडाक्लोप्रिड प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव


फल छेदक कीट


लक्षण: छोटे कीड़े जो कच्चे फलों में छेद कर देते हैं


उपाय: 5% नीम तेल या 2 मिली साइपरमेथ्रिन प्रति लीटर पानी में छिड़काव


बंपर पैदावार के लिए जरूरी सुझाव


✔ संतुलित उर्वरक प्रबंधन: 1-1.5 किलो नाइट्रोजन, 500 ग्राम फॉस्फोरस, और 1 किलो पोटाश प्रति पेड़ दें।

✔ सिंचाई: मंजर आने के समय हल्की सिंचाई करें, ताकि फूल झड़ने न पाएं।

✔ फूलों की गिरावट रोकने के लिए: बोरॉन (0.5%) और नापथलिन एसिटिक एसिड (NAA) का छिड़काव करें।


अगर किसान इन उपायों को अपनाते हैं, तो आम की बंपर पैदावार हो सकती है और बाजार में अच्छी कीमत मिलने से शानदार मुनाफा भी होगा।

#mangotree #mangoseason #viral2025シ #viral2025post #devendrasinghdev #GardenDecor #viral2025 #gardening #gardeningtips #gardeninspiration #gardendesign #garden #gardenlife साभार देवेन्द्र सिंह देव Facebook 

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काले टमाटर का गुण

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 काले टमाटर के बारे में आपने शायद ही सुना होगा। पिछले 2 सालों से भारत में भी इसकी खेती शुरू हो गई हैं। ब्रिटेन के रास्ते भारत पहुंचा इस टमाटर की खेती भी लाल टमाटर के जैसे ही होती हैं। यह टमाटर सिर्फ अपने रंग के लिए विख्यात नहीं हैं बल्कि इसमें मौजूद गुणकारी तत्वों के कारण भी विख्यात हैं।

 

■ कई रंग बदलता हैं ये खास टमाटर


यह टमाटर आम टमाटर की तरह ही उगता हैं। सबसे पहले यह हरा होता हैं, उसके बाद लाल, फिर नीला होते-होते काला हो जाता हैं। जब आप इसे काटेंगे तो इसका गूदा लाल टमाटर की तरह लाल ही होता हैं। बस फर्क ये हैं कि इसमें पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।


■ जानिए कौन-कौन से फायदे हैं इस काले टमाटर में


• ब्लड प्रेशर

काले टमाटर में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाये जाते हैं और इसके साथ ही इसमें प्रोटीन, विटामिन ए, सी, मिनरल्स पाये जाते हैं जोकि आपके ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखने में मदद करते हैं।


• शुगर

अगर आप शुगर से लड़कर थक चुके हैं तो काला टमाटर आपके लिए रामबाण साबित हो सकता हैं। काला टमाटर खाने से आपका शुगर लेवल कंट्रोल रहता हैं।


• कैंसर

काले टमाटर में फ्री रेडिकल्स से लड़ने की क्षमता होती हैं, फ्री रेडिकल्स बहुत ज्यादा सक्रिय सेल्स होते हैं जो स्वस्थ सेल्स को नुकसान पहुंचाते हैं और इसी वजह से ये काला टमाटर कैंसर से लड़ने में भी फायदेमंद हैं।


• हार्ट अटैक

काला टमाटर खाने से आपके हार्ट अटैक के चांस भी कम हो जाते हैं क्योंकि इसमें एंथोसाइनिन पाया जाता हैं जो आपको हार्ट अटैक से बचाता हैं। नियमित रूप से काले टमाटर का सेवन आपको कभी दिल से जुड़ी बीमारियां नहीं होने देगा।


• आंखों की रोशनी

ये टमाटर आपकी आंखों के लिए बहुत लाभदायक हैं क्योंकि ये आपके शरीर में विटामिन A और विटामिन C की कमी को पूरा कर देता हैं। आपको पता ही होगा कि विटामिन A आंखों के लिए कितना फायदेमंद होता हैं।


• वजन

काले टमाटर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होती हैं जोकि वजन कम करने में मददगार साबित होती हैं। अगर आप भी अपने मोटापे से परेशान हैं तो इसे जरूर 


#blacktomato #tomato #healthylifestyle #plants #herbal #indiasgardening साभार Facebook 

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Friday, February 28, 2025

मालभोग केला : बिहार का गौरव एक परिचय

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 मालभोग केला : बिहार का गौरव - अगर आपने मालभोग का स्वाद नहीं चखा है, तो आपने वास्तव में केले का स्वाद नहीं चखा है!" भारत में लगभग 500 किस्में उगायी जाती हैं लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 74 से ज्यादा प्रजातियाँ  संग्रहित हैं।

मालभोग केला सिल्क (एएबी) समूह का एक सदस्य  है ,इसमें मालभोग, रसथली, मोर्तमान, रासाबाले, पूवन (केरल) एवे अमृतपानी, आदि प्रजातियों के केला आते है । यह बिहार एवं बंगाल की एक मुख्य किस्म है जिसका अपने  विशिष्ट स्वाद एवं सुगन्ध की वजह से विश्व  में एक प्रमुख स्थान है। यह अधिक वर्षा को सहन कर सकती है। बिहार में यह प्रजाति पानामा विल्ट की वजह से लुप्त होने के कगार पर है। फल पकने पर डंठल से गिर जाता है। इसमें फलों के फटने की समस्या भी अक्सर देखी जाती है। मालभोग केला को प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है , जहां ड्वार्फ केवेंडिश समूह के केला 50 से 60 रुपया दर्जन बिकता है वही मालभोग केला 150 से 200 रुपया दर्जन बिकता है।आज के तारीख में बिहार में  मालभोग प्रजाति के केले वैशाली एवं हाजीपुर के आसपास के  मात्र 15 से 20 गावों में सिमट कर रह गया है इसकी मुख्य वजह इसमें लगने वाली एक प्रमुख बीमारी जिसका नाम है फ्यूजेरियम विल्ट जिसका रोगकारक है फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ एसपी क्यूबेंस  रेस  1 है।


1. वनस्पति विज्ञान विशेषताएँ

मालभोग केला सिल्क केले के समूह से संबंधित है। यह केले के AAA जीनोम समूह का हिस्सा है, जिसकी विशेषता ट्रिपलोइडी है, जिसका अर्थ है कि इसमें गुणसूत्रों के तीन सेट हैं। इस केले की किस्म को मुख्य रूप से इसके मीठे फल के लिए उगाया जाता है, जिसे ताजा खाया जाता है लेकिन इसे विभिन्न उत्पादों में भी संसाधित किया जा सकता है।


आभासी(छद्म) तना

मालभोग केले का छद्म तना मध्यम ऊंचाई का होता है, जो 2.5 से 3 मीटर तक होता है। इसका आकार मजबूत, बेलनाकार होता है, जो इसे कुछ पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना करने सक्षम होता है, हालांकि यह हवा से होने वाले नुकसान के प्रति मध्यम रूप से संवेदनशील है।


पत्तियाँ

केले का पौधा प्रमुख मध्य शिराओं के साथ बड़ी, हरी पत्तियाँ पैदा करता है। पत्तियों का लेमिना चौड़ा होता है, जो विकास के लिए कुशल प्रकाश संश्लेषण प्रदान करता है। हालाँकि, कई केले की किस्मों की तरह, मालभोग की पत्तियाँ सिगाटोका जैसे पर्ण रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं।


फूल और पुष्पक्रम

मालभोग केले का पुष्पक्रम लटकता हुआ होता है, जिसमें बड़े, लाल-बैंगनी रंग के सहपत्र होते हैं जो फल के विकासशील फलों  के हाथों की रक्षा करते हैं। फूल गुच्छों में व्यवस्थित होते हैं, जिसमें मादा फूल केले में विकसित होते हैं और नर फूल पुष्पक्रम के अंत में निकलते हैं।


2. कृषि संबंधी विशेषताएँ

मालभोग केले की खेती आम तौर पर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए उपयुक्त है।  यह अच्छी तरह से वितरित वर्षा और 20 डिग्री सेल्सियस से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान वाले क्षेत्रों में पनपता है। निम्नलिखित कृषि संबंधी विशेषताएं इस केले की किस्म की सफल वृद्धि को परिभाषित करती हैं....


मिट्टी की आवश्यकताएँ

मालभोग अच्छी तरह से सूखा, अच्छी जैविक सामग्री वाली उपजाऊ मिट्टी में सबसे अच्छा बढ़ता है। पर्याप्त नमी बनाए रखने वाली दोमट मिट्टी आदर्श होती है। इष्टतम विकास के लिए पीएच रेंज 6.5 और 7.5 के बीच है।


पानी की आवश्यकताएँ

इष्टतम विकास और फलों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से पानी देना महत्वपूर्ण है, खासकर शुष्क अवधि के दौरान। हालाँकि, अत्यधिक पानी से जलभराव हो सकता है, जिससे जड़ सड़न और अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं। मालभोग केला फ्यूजरियम ऑक्सिस्पोरम एफ.एसपी.क्यूबेंस रेस 1के प्रति बहुत ही संवेदनशील होने की वजह से लुप्तप्राय होने की कगार पर है। इसे पुनः स्थापित करने के लिए आवश्यक है की इसके टिश्यू कल्चर पौधे बना कर इसकी खेती की जाय एवं एक जगह पर केवल एक ही फसल ली जाय।


उर्वरक

केले का पौधा बहुत ज़्यादा खाद लेता है। संतुलित NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम) उर्वरकों के साथ जैविक खाद का उपयोग, जोरदार विकास और अधिक उपज को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है।


रोपण और अंतराल

आमतौर पर, मालभोग केले के पौधों को 2.5 मीटर गुणा 2.5 मीटर के अंतराल पर लगाया जाता है ताकि पर्याप्त धूप और हवा का प्रवाह सुनिश्चित हो सके, जो रोग की घटनाओं को कम करने और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है।


कीट और रोग संवेदनशीलता

हालाँकि मालभोग का बहुत महत्व है, लेकिन यह कई कीटों और बीमारियों के प्रति संवेदनशील है, जिसमें केले का घुन, नेमाटोड और फ्यूजेरियम विल्ट और बंची टॉप वायरस जैसी बीमारियाँ शामिल हैं। सफल खेती के लिए प्रभावी कीट और रोग प्रबंधन रणनीतियाँ, जैसे कि फसल चक्रण, जैविक मिट्टी संशोधन और जैव नियंत्रण एजेंटों का उपयोग, महत्वपूर्ण हैं।


3. फल की विशेषताएँ

मालभोग केला अपने ऑर्गेनोलेप्टिक गुणों के लिए जाना जाता है, जो स्थानीय और क्षेत्रीय बाजारों में इसकी लोकप्रियता के कुछ कारण हैं।


आकार और आकृति

फल मध्यम आकार का होता है, आमतौर पर 12-15 सेमी लंबा, थोड़ा घुमावदार, बेलनाकार आकार का। छिलका मोटा होता है और पूरी तरह पकने पर चमकीला पीला हो जाता है।


छिलका और गूदा

छिलका आसानी से हटाया जा सकता है, जिससे इसे ताजा खाने में आसानी होती है। गूदा मलाईदार, कोमल और मुलायम होता है, जिसमें थोड़ी दृढ़ता होती है जो इसकी बनावट को बढ़ाती है।


स्वाद और सुगंध

मालभोग केले की सबसे खास विशेषताओं में से एक इसकी सुखद सुगंध है। इसका स्वाद मीठा होता है, जिसमें भरपूर स्वाद होता है जो अम्लता और मिठास को संतुलित करता है, जिससे यह एक पसंदीदा मिठाई केला बन जाता है।


उपज

इष्टतम परिस्थितियों में मालभोग केले के पौधों की औसत उपज लगभग 30 से 40 टन प्रति हेक्टेयर होती है। प्रत्येक गुच्छा का वजन 15 से 20 किलोग्राम के बीच हो सकता है, जिसमें प्रति गुच्छा 8 से 12 केले होते हैं।


4. पोषण सामग्री

मालभोग केला एक पौष्टिक फल है जो कई आवश्यक विटामिन और खनिज प्रदान करता है। मुख्य पोषण घटकों में शामिल हैं:


कैलोरी: यह प्रति 100 ग्राम में लगभग 90 से 110 किलो कैलोरी प्रदान करता है, जो इसे ऊर्जा-घने भोजन बनाता है।


कार्बोहाइड्रेट: मालभोग केला कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है, मुख्य रूप से फ्रुक्टोज, सुक्रोज और ग्लूकोज जैसी प्राकृतिक शर्करा के रूप में, जो त्वरित ऊर्जा बढ़ावा प्रदान करते हैं।


विटामिन: यह विटामिन का एक उत्कृष्ट स्रोत है, विशेष रूप से विटामिन सी, जो प्रतिरक्षा कार्य का समर्थन करता है, और विटामिन बी 6, जो मस्तिष्क के स्वास्थ्य और चयापचय में सहायता करता है।


खनिज: इसमें पोटेशियम जैसे आवश्यक खनिज होते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य और रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है, और मैग्नीशियम, जो मांसपेशियों के कार्य के लिए महत्वपूर्ण है।


आहार फाइबर: केला आहार फाइबर भी प्रदान करता है, जो पाचन स्वास्थ्य में योगदान देता है और नियमित मल त्याग को बनाए रखता है।


5. आर्थिक महत्व

मालभोग केला छोटे और बड़े पैमाने पर किसानों दोनों के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक मूल्य रखता है। स्थानीय और शहरी दोनों बाजारों में इसकी उच्च मांग इसे एक आकर्षक फसल बनाती है।  किसान अक्सर इस किस्म को पसंद करते हैं क्योंकि:


बाजार की मांग: फल का अनूठा स्वाद, सुगंध और बनावट इसे अत्यधिक बिक्री योग्य बनाती है। यह सीधे उपभोग के लिए मांग में है, साथ ही चिप्स, प्यूरी और आटे जैसे प्रसंस्कृत केले के उत्पादों के उत्पादन में भी।


आय स्रोत: मालभोग केला अपने साल भर की खेती के चक्र के कारण किसानों के लिए एक स्थिर आय स्रोत प्रदान करता है, जिसमें रोपण शेड्यूल के आधार पर अलग-अलग फसलें संभव हैं।


मूल्य संवर्धन: ताजा खपत से परे, मालभोग केला खुद को केला-आधारित स्नैक्स और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों सहित मूल्य-वर्धित उत्पादों के लिए उधार देता है, जो इसकी आर्थिक क्षमता को और बढ़ाता है।


6. कटाई के बाद की हैंडलिंग

परिवहन और भंडारण के दौरान मालभोग केले की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए, कटाई के बाद सावधानीपूर्वक हैंडलिंग आवश्यक है:


भंडारण की स्थिति: केले आमतौर पर तब काटे जाते हैं जब वे परिपक्व होते हैं लेकिन अभी भी हरे होते हैं। उचित हैंडलिंग में उन्हें समय से पहले पकने या खराब होने से बचाने के लिए लगभग 13°C से 14°C के तापमान पर अच्छी तरह हवादार जगहों पर रखना शामिल है।


 पकने की प्रक्रिया: बाजार के उद्देश्यों के लिए, केले को अक्सर एथिलीन गैस या पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके कृत्रिम रूप से पकाया जाता है ताकि पकने की गति को नियंत्रित किया जा सके, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे बाजार में बेहतरीन स्थिति में पहुँचें।


सारांश


मालभोग केला एक ऐसी किस्म है जिसमें बेहतरीन विशेषताएँ हैं जो इसे उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के बीच लोकप्रिय बनाती हैं। इसका मीठा स्वाद, सुखद सुगंध और पोषण संबंधी लाभ इसकी व्यावसायिक व्यवहार्यता और विभिन्न बढ़ती परिस्थितियों के अनुकूल होने से पूरित होते हैं। हालांकि कीटों और बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील, उचित प्रबंधन अभ्यास स्वस्थ फसलों और इष्टतम पैदावार सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। जिन क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है, विशेष रूप से बिहार में, वहां के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने में इसकी भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है।


"Malbhog Banana: The Pride of Bihar – If You Haven't Tasted Malbhog, You Haven't Truly Tasted a Banana"


सौजन्य :

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह

सह निदेशक अनुसंधान

विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर बिहार साभार बिहार गौरव Facebook 


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